कहां गये जिम्मेवार. होटलों के खाने की गुणवत्ता की नहीं होती है जांच
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बाजार कर रहा सेहत से खिलवाड़
कहां गये जिम्मेवार. होटलों के खाने की गुणवत्ता की नहीं होती है जांच बाजार में स्वाद नहीं, बीमारियां िबक रही हैं. नगर परिषद के पास स्वास्थ्य पदाधिकारी नहीं हैं. जिला प्रशासन को फुरसत नहीं है अौर स्वास्थ्य विभाग को इससे कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में आम लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है. सहरसा […]
बाजार में स्वाद नहीं, बीमारियां िबक रही हैं. नगर परिषद के पास स्वास्थ्य पदाधिकारी नहीं हैं. जिला प्रशासन को फुरसत नहीं है अौर स्वास्थ्य विभाग को इससे कोई लेना देना नहीं है. ऐसे में आम लोगों का स्वास्थ्य भगवान भरोसे है.
सहरसा नगर : आप जो खा रहे हैं, वह कितना शुद्ध है. क्या आप ने कभी जानने की कोशिश की है कि होटलों में जो खाना परोसा जा रहा है, वह आपकी सेहत के कितना अनुकूल है. किराना की दुकानों में बिकने वाली खाद्य सामग्री की गुणवत्ता क्या है. क्या आइसक्रीम आपकी सेहत के लायक है.
खाने वाली वस्तुओं की गुणवत्ता की जांच करने के लिए प्रशासन या सरकार की तरफ से कोई अधिकारी नहीं है़ अब आप बाजार से मिठाई की जगह जहर भी खा रहे हो तो भगवान भरोसे ही है़ एक अधिकारी के जिम्मे पूरे कोसी प्रमंडल के तीन जिले हैं. उसके अनुसार अकेले के लिए संभव नहीं कि पूरे प्रमंडल पर नजर रखी जाये़ जांच प्रयोगशाला भी बंद है़
जम कर हो रही मिलावट : शहर के होटलों व फुटपाथ की दुकानों पर क्या बिक रहा. उसे कोई देखने वाला नहीं है. किराना दुकानदार किस हद तक मिलावट कर रहे हैं. कोई पूछने वाला नहीं है. ऐसे में लोगों को होटलों, फुटपाथ व किराना की दुकानों पर कितनी गुणवत्ता की खाद्य सामग्री मिल रही है,
यह भगवान ही जाने. होटल, फुटपाथी व किराना दुकानदार स्वच्छंद हो चुके हैं. कारण भी है. उनकी नकेल कसने वाला मात्र एक व्यक्ति माह में कुछेक दिन भी पूरे शहर के लिये समय नहीं दे सकता. खाद्य सामग्री की दुकानें सड़क किनारे खुले में लगती हैं. फुटपाथ की दुकानें तो खुले में ही लगती है. लेकिन, शहर के कई बड़े होटल वाले भी अपनी रसोई सड़क किनारे स्थापित किये हैं. वहां पकने वाले खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता कितनी होगी. इसका अंदाजा लगाया जा सकता है.
इन दुकानदारों को रोकने वाला कोई नहीं. नगर परिषद के पास कोई स्वास्थ्य पदाधिकारी नहीं है. जिला प्रशासन को फुरसत नहीं है और स्वास्थ्य विभाग को इससे कोई लेना देना नहीं है. तभी तो सबके सामने खुले में एक दो नहीं दर्जनों की संख्या में रसोई स्थापित हैं.
बाजार के खाने से बीमार हो रहे हैं लोग
पटना में बंद है प्रयोगशाला
खाद्य सामग्रियों की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. आप चौकिये नहीं, प्रशासन के पास भी खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता की जांच के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. पटना स्थित खाद्य सामग्री की जांच करने वाला एक मात्र प्रयोगशाला भी करीब तीन वर्ष से बंद है. आलम यह है कि एक व्यक्ति के जिम्मे पूरे प्रमंडल को सौंप दिया गया है. ऐसे में खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता की जांच किस स्तर तक हो सकती है, यह विचारणीय विषय है.
पहले से मानी हार : दुकानदारों पर नजर रखना कठिन
खाद्य संरक्षा पदाधिकारी के कार्यालय के कर्मी स्वयं स्वीकार करते हैं कि एक व्यक्ति पूरे प्रमंडल के बाजारों पर कैसे नजर रख सकता है. तीन वर्ष से गुणवत्ता की जांच करने वाला पटना का प्रयोगशाला बंद है. खाद्य सामग्री को जांच के लिए कोलकाता भेजना पड़ता है. दुकानदारों को लाइसेंस भी निर्गत करना है. ऐसे में दुकानदारों पर नजर रखना बहुत कठिन है.
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