पुलिस जीप ने पहुंचाया सदर अस्पताल
सदर अस्पताल में मरीज व डॉक्टरों को करती रही परेशान
सहरसा:मुङो पीने का शौक नहीं, पीता हूं गम भुलाने को.. हिंदी सिनेमा का यह गीत रील लाइफ में जरुर सटीक बैठता है. लेकिन रियल लाइफ में इसका कोई सरोकार नहीं है. हालांकि रात के समय सड़कों पर नशे में टल्ली पुरुष को आप अक्सर देखते होंगे. क्या आपने दिन के उजाले में किसी मां-बेटी को शराब के नशे में सराबोर बाजार में सरेआम हंगामा करते देखा है.
यह बातें जरूर बहकी-बहकी लग रही होगी. लेकिन यह सच्चई है नशे के गर्त में जा रहे सभ्य समाज की. कुछ दिन पूर्व शहर की सड़कों पर शराब के विरोध में उतरी महिलाएं पहले पóो की खबर बनी थी, वहीं सोमवार को नशे में डूबी महिलाएं किरकिरी व मजाक का केंद्र बनी हुई थी.
यह है शराब की सच्चई
सोमवार को प्रथम कार्यदिवस होने की वजह से लोग जहां अपने कार्यस्थल की ओर जा रहे थे. वहीं शहर के मुख्य मार्ग पर शराब के नशे में धुत दो मां-बेटी राहगीरों से जबरन उलझ रही थी. जब लोगों ने इसका विरोध करना शुरू किया तो नशेड़ी महिलाएं नाचने गाने पर उतारू हो गयी. हालांकि वे दोनों नशे में थी, लेकिन गाने के बोल सीधा आपके और हमारे मत से चल रही सियासत पर हमला बोल रही थी. मीडियाकर्मियों ने जब महिला से शराब पीने की वजह जानना चाहा तो महिलाओं ने कहा सस्ती है पीती हूं.. तुम्हारे.. का क्या जाता है.. जितनी फोटो लेनी है ले लो, मैं पीती रहुंगी.
आखिर दोषी कौन है
पुलिस प्रशासन ने महिलाओं को सदर अस्पताल पहुंचा कर अपने कर्तव्य की इतिश्रि तो कर ली. लेकिन अस्पताल में घंटों हंगामा करती महिलाओं की सुधि लेने की जहमत डॉक्टर से लेकर स्वास्थ्यकर्मी में से किसी ने नहीं उठायी.
अस्पताल में जमा दर्जनों लोगों की भीड़ तमाशबीन कर हंसी व उपहास उड़ाते रहे, लेकिन बच्चों को खिलाने के दो कौर रोटी की जगह हाथ में शराब के पाउच पर किसी को अफसोस हुआ, ऐसा नजर नहीं आ रहा था. सस्ती और सहज उपलब्ध शराब का यह नजारा शहर में पहली बार दिखा. हालांकि देशी शराब के पाउच को लहराते गरीब व फटेहाल महिला की हालत सबकुछ बयां कर रही थी.
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