सहरसा : पेट की भूख व परिवार की गरीबी के कारण आज भी सड़कों पर बच्चों द्वारा प्लास्टिक की बोतलें को चुनने व सूखे जलावन चुनने का कार्य बदस्तूर जारी है. ये बच्चे स्कूल जाने के बजाय अपनी गरीबी से लड़ने के काम में लगे हैं. जबकि सरकारी विद्यालयों से बच्चों को जोड़ने के लिए काफी प्रयास किया जा रहा है.
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ट्रेनों में पानी की बोतल चुन कर कई अनाथ व असहाय करते हैं गुजारा
सहरसा : पेट की भूख व परिवार की गरीबी के कारण आज भी सड़कों पर बच्चों द्वारा प्लास्टिक की बोतलें को चुनने व सूखे जलावन चुनने का कार्य बदस्तूर जारी है. ये बच्चे स्कूल जाने के बजाय अपनी गरीबी से लड़ने के काम में लगे हैं. जबकि सरकारी विद्यालयों से बच्चों को जोड़ने के लिए […]
लेकिन गरीबी इन बच्चों को विद्यालय नहीं जाने दे पा रहा है. शहरी क्षेत्रों में सुबह होते ही छोटे-छोटे बच्चे टोली बना अपने प्रतिदिन के दिनचर्या में लग जाते हैं. स्टेशनों, सड़कों किनारे पड़े प्लास्टिक के बोतलों को वे अपने कंधे पर पड़े बड़े थैले में जमा कर कबाड़ में बेच अपने-अपने परिवार के लिए राशन खरीदने का काम करते हैं.
कच्ची उम्र में यह कार्य करने व गलत संगत में पड़ ये बच्चे नशे के भी आदी बन रहे हैं. अमीर व मध्यम वर्गीय रेलयात्रियों द्वारा ट्रेनों में बोतलबंद पानी का उपयोग कर फेंक दिये जानेवाले प्लास्टिक बोतल चुनकर कई अनाथ व असहाय अपना पेट पालने को मजबूर हैं.
स्टेशन पर लगभग दर्जनों परिवार और उसके छोटे छोटे बच्चे बोतल चुनने के काम में लगे हुए हैं. जंक्शन पर जब भी कोई ट्रेन आती है ये बच्चे बोतल चुनने के लिए बोगियों को चुन कर एक के आगे खड़े होकर बोतल चुनते हैं. इस बीच एक दूसरे के बोगियों में बोतल चुनने के कारण बच्चे आपस में लड़ते भी हैं. बच्चों द्वारा रेलवे प्लेटफॉर्म पर ही बोतल चुनकर इकठ्ठा किया जाता है.
जिसे कोई रोक टोक करने वाला नहीं है. जिसके कारण प्लेटफॉर्म पर यत्र-तत्र बोतल का ढेर देखा जा सकता है. पानी की प्लास्टिक बोतल चुनकर जीवन यापन कर रहे बच्चों ने बताया कि पूरी दिन सभी ट्रेनों में कड़ी मशक्कत के बाद कुछ पैसे मिलते हैं. जिससे किसी तरह पेट की ज्वाला को शांत करते हैं.
बाल श्रम पर सरकार की पूरी तरह पाबंदी के बाद भी नौनिहालों द्वारा अपने व अपने परिवार के गुजर बसर के लिए कोई न कोई काम करने को विवश होना पड़ रहा है. बाल श्रम के प्रतिबंध का कोई भी असर शहरी क्षेत्र में देखने को नहीं मिल रहा है. विभाग सिर्फ खानापूर्ति में लगा रहता है. जबकि जमीनी हकीकत कुछ और बयां करती है. बच्चों की टोली स्टेशन पर खडी ट्रेनों से प्लास्टिक के बोतल चुनने का काम धड़ल्ले से जारी है.
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