शहरों की स्थिति तो थोड़ी ठीक-ठाक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अफरा-तफरी की स्थिति है. दिन भर कतार में खड़े रहने के बाद जब रुपया बैंक से नहीं निकाल पाते हैं जिससे उनका आक्रोश बढ़ता जा रहा है. दूर-दराज से आनेवाले ग्रामीण रात में बैंक में ही इस आस में रुक जाते हैं कि अगले दिन पहले उनका नंबर आयेगा और पैसा मिल जायेगा.
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बैंक में ही रात गुजार रहे लोग नोटबंदी. ग्रामीण इलाके में है अफरा-तफरी की स्थिति
शहरों की स्थिति तो थोड़ी ठीक-ठाक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अफरा-तफरी की स्थिति है. दिन भर कतार में खड़े रहने के बाद जब रुपया बैंक से नहीं निकाल पाते हैं जिससे उनका आक्रोश बढ़ता जा रहा है. दूर-दराज से आनेवाले ग्रामीण रात में बैंक में ही इस आस में रुक जाते हैं कि अगले […]
बायसी (पूिर्णया) : केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के 27 दिन बीत चुके हैं. राहत के नाम पर हर रोज नयी घोषणाएं और नये नियम बनाये जा रहे हैं. शहरों की स्थिति तो थोड़ी ठीक-ठाक है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में अफरा-तफरी की स्थिति है और लोगों का धैर्य अब जवाब देने लगा है. दिन-दिन भर कतार में खड़े रहने के बाद जब अपनी ही गाढ़ी कमाई ग्राहक बैंक से नहीं निकाल पाते हैं तो उनका गुस्सा फूट जा रहा है. चंद दिनों पहले ही आक्रोश का इजहार लोगों ने एनएच 31 को घंटों जाम कर किया था.
ग्रामीण क्षेत्रों में एटीएम बंद पड़ी है और बैंकों में ग्राहकों की तुलना में नोट कम पड़ रहे हैं. लिहाजा अब नोट की मारामारी में ग्राहकों ने नया तरीका इजाद कर लिया है. अब देर शाम ही लोग बिस्तर और भोजन के साथ बैंक पहुंच रहे हैं और कतार में ही रात गुजार रहे हैं. मकसद केवल यह है कि जरूरत के अनुसार उनको उनका रुपया बैंक से मिल जाये. लोगों की इस कतार में वैसे भी लोग शामिल हैं, जिनके पास कालाधन नहीं है और ई बैंकिंग से लेकर क्रेडिट कार्ड और पेटीएम से अनभिज्ञ है. प्रभात खबर टीम ने रविवार की रात बायसी स्थित सेंट्रल बैंक का जब जायजा लिया तो लोगों की मुश्किलें सामने आयी.
जा तले टका नी मिलबे, ता तले घोर नी जाम : कल तक जो महिलाएं दिन में ही केवल घर से बाहर निकलती थी, उन्हें अब बैंकों के आगे अकेले रात गुजारनी पड़ रही है. आसजा मवैया पंचायत के पुंडालय गांव की संजरी खातून ने बताया कि रात को घर से निकलना मजबूरी है. दिन में दो बार पहले रुपये निकालने का प्रयास कर चुकी हूं,
लेकिन काम नहीं हुआ. इसलिए रात में ही कतार में लगने का फैसला किया. कतार में रजिया बेगम और सहरा बेगम भी मौजूद थी. रजिया ने बताया कि रुपये के अभाव में सब काम चौपट हो गया है और अब तो करो या मरो की हालत हो गयी है. वह कहती है ‘ जा तले टका नी मिलबे, ता तले घोर नी जाम ’ .
सुबह होते ही लाइन में लग जाते हैं ग्राहक
रात के करीब 08 बज रहे थे. धीरे-धीरे लोगों का जमावड़ा सेंट्रल बैंक परिसर में होने लगा था. लोग अपने साथ भोजन और बिस्तर भी लाये थे. ठंड की वजह से लोगों ने बिछाने से लेकर ओढ़ने तक का सामान साथ लाया था. कुछ देर तक लोग कतार में खड़े रहे, फिर अपने जगह को ही बिस्तर में तब्दील कर दिया. उसी जगह उन लोगों ने अपना बिछावन बिछाया और लेट गये. कुछ ही देर में ऐसे ग्राहकों की संख्या दो दर्जन तक पहुंच गयी. वे लोग सुबह होते ही लाइन में लग जाते हैं.
बैंक पहुंचे मीनापुर पंचायत के गोडफर गांव के मो फरीजुद्दीन ने बताया कि शनिवार की सुबह से कतार में खड़े थे और शाम में जब उनकी बारी आयी तो बैंक में रुपया ही समाप्त हो गया. आगे फरीजुद्दीन कहते हैं ‘ इससे बड़ा दुर्दिन और क्या होगा कि अपने ही रुपये के लिए रात-दिन बैंक का चक्कर लगाना पड़ रहा है ‘ .
किसी को खाद-बीज, तो किसी को इलाज के लिए चाहिए पैसे
खपरा पंचायत से आयी बीबी जहरून भी बोरिया-बिस्तर के साथ बैंक के बरामदे पर डटी हुई थी. उसका भी शौहर गंभीर बीमारी से ग्रसित है. उसने बताया कि वह लगातार दो दिन से बैंक की चक्कर लगा रही है, लेकिन हर दिन खाली हाथ लौटना पड़ रहा है. अपने शौहर की जान बचाने के लिए जब तक वह रुपया नहीं लेगी, तब तक वह बैंक से बाहर नहीं निकलने की प्रण लेकर बैठी हुई थी. वहीं सुगवा महानंदपुर पंचायत के बागडोभ गांव निवासी मो कालू का भी बिस्तर एक कोने में लगा है.
कालू बताते हैं कि जैसे-तैसे वह खेतों में मक्के की बुआई कर चुके हैं. आगे सिंचाई और खाद आदि के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं. खेती को बचाने के लिए वह कड़ाके की ठंड में रात बिताने को तैयार है. इसके अलावा मुहर्रम, अनेसुल हक आदि जैसे कई लोग थे, जो रुपया निकासी के लिए बैंक के आगे रात्रि पड़ाव डाल चुके थे.
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