अस्पताल में है कुव्यवस्था का आलम
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बेड को चादर का और मरीज को है डॉक्टर का इंतजार
अस्पताल में है कुव्यवस्था का आलम सप्ताह में एक दिन आते हैं चिकित्सक पूर्णिया : कोसी और सीमांचल की उम्मीद सदर अस्पताल दूर-दराज से आने वाले गरीब मरीजों की उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है. एक तरफ अस्पताल में चिकित्सक और पारा कर्मियों की कमी है तो दूसरी तरफ जो संसाधन मौजूद है, उसका […]
सप्ताह में एक दिन आते हैं चिकित्सक
पूर्णिया : कोसी और सीमांचल की उम्मीद सदर अस्पताल दूर-दराज से आने वाले गरीब मरीजों की उम्मीद पर खरा नहीं उतर रहा है. एक तरफ अस्पताल में चिकित्सक और पारा कर्मियों की कमी है तो दूसरी तरफ जो संसाधन मौजूद है, उसका भी बेहतर इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है. अस्पताल में न तो मरीजों को दवाइयां यहां समुचित रूप से मिल पाती है और न ही यहां समुचित उपचार ही हो पाता है. अस्पताल की कुव्यवस्था का आलम यह है कि अस्पताल में भर्ती मरीजों को डाॅक्टर साहब के दर्शन भी साप्ताहिक होते हैं. अस्पताल में ऑपरेशन में उपयोग होने वाली दवा की भी कमी है. हैरानी की बात यह है
कि सदर अस्पताल का स्थायी दवा भंडार गृह भी नहीं है और यह अक्सर बदलता रहता है. अस्पताल में व्याप्त कुव्यवस्था के लिए जितना जिम्मेदार अस्पताल प्रबंधन है, उतना ही जिम्मेवार यहां आने वाले मरीज के परिजन भी हैं, जो साफ-सफाई से लेकर अन्य नियम-कायदे की धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं.
साप्ताहिक राउंड पर आते हैं चिकित्सक
आर्थोपेडिक वार्ड में भर्ती मरीजों का कहना है कि सदर अस्पताल में तैनात डाॅक्टर साप्ताहिक राउंड पर आते हैं और खानापूर्ति कर चले जाते हैं. मरीज राजकुमार महतो ने बताया कि उनके उपचार का पूरा जिम्मा वार्ड में तैनात नर्सों पर होता है.
इधर अस्पताल में मरीजों के बेड के पास उनके उपचार का कोई ब्योरा नहीं होता है. इससे डाॅक्टरों द्वारा मरीज को कौन सी दवाई दी जा रही है, इसकी जानकारी नहीं मिल पाती है. मरीज बताते हैं कि वे कम पढ़े लिखे हैं और डाॅक्टर जब उन्हें दी जाने वाली दवाइयों के बारे में पूछते हैं तो उनके पास कोई जवाब नहीं होती है. अस्पताल के ऑर्थोपेडिक वार्ड का ये हाल तब है जब सिविल सर्जन खुद हड्डी रोग विशेषज्ञ है और वे इस क्षेत्र के जाने-माने चिकित्सक माने जाते हैं.
बेड पर बिछाने को नहीं मिलता चादर
सदर अस्पताल भर्ती होने वाले मरीजों को बिछाने के लिए बेड सीट तक नहीं दी जाती. अगर कुछ खुशनसीब मरीजों को बोड सीट मिल भी जाती है तो उसपर खून की धब्बे साफ नजर आते हैं. मरीजों के अनुसार उन्हें मजबूरी में अपने घर से बेडसीट लाना पड़ता है. वहीं जो घर से चादर लाने में समर्थ नहीं है, वे खाली बेड पर ही अपना वक्त बिताते हैं. मरीजों ने बताया कि चादर मांगने पर अस्पताल प्रबंधक द्वारा उन्हें फटकार लगा दी जाती है. इस संबंध में जब अस्पताल प्रबंधक शिम्पी चौधरी से इस संबंध में जब पुछा गया तो उन्होंने बताया कि मरीजों को चादर मुहैया कराना उनका काम नहीं है.
अस्पताल में ढूंढ़ते रह जायेंगे डीएस स्टोर
सदर अस्पताल में दवाई की आपूर्ति का जिम्मा संभालने के लिए एक डीएस स्टोर बनाया जाता है. जहां से अस्पताल के वार्डों में दवाइयां उपलब्ध करायी जाती है. मगर सदर अस्पताल के महिला वार्ड में बने डीएस स्टोर पर ताला लटका रहता है. इसके बरे में पड़ताल करने पर पता चला की वार्ड की छत जर्जर हो चुकी है जिससे बरसात के दिनों में पानी टपकता है. इसकी वजह से डीएस स्टोर को बंद कर दिया गया है. सूत्रों की माने तो डीएस स्टोर के बंद होने के बाद से दवाओं के रखने के लिए कोई जगह निर्धारित नहीं हो सकी है.
एक माह से लालचन को है प्लास्टर होने का इंतजार
धमदाहा बिशनपुर के रहने वाले बारह वर्षीय लालचन कुमार का पैर की हड्डी खेलने के दौरान टूट गयी थी. गरीब लालचन की मां लीला देवी अस्पताल प्रबंधन द्वारा उसके पुत्र के उपचार में बरती जा रही लापरवाही के बारे में बताते हुए रो पड़ी. उन्होंने बताया कि वे अपने बेटे के साथ एक महीने से अस्पताल में पड़ी हुई है. दीवाली और छठ बेटे की तीमारदारी में अस्पताल में ही बीत गया. लेकिन डाॅक्टर बेटे के पैर का न तो प्लास्टर कर रहे हैं और न ही उसके बेटे की चिकित्सा के बारे में खुल कर बता रहे हैं. अस्पताल के आर्थोपेडिक वार्ड में भर्ती काजल उरांव बताते हैं कि उनका पैर भी किसी हादसे में टूट गया था और वे यहां 15 दिनों से भर्ती है और उनके पैर पर कच्चा प्लास्टर कर उसमें ईंट बांध कर लटका दिया गया है.
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