भागलपुर : वह तारीख थी तीन अप्रैल 2017, जिस दिन देश के तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विक्रमशिला की धरती पर कहा कि विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान विक्रमशिला देखने की इच्छा हुई थी. विक्रमशिला को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की जब उन्होंने बात की, तो तालियों की गड़गड़ाहट दूर से सुनी गयी थी.
प्रणव दा को देखने की उत्सुकता कैसी रही होगी कि जिन्हें पंडाल में जगह नहीं मिली, वे पेड़ों की छांव और मकई खेत में पौधों की आड़ लेकर घंटों जमे रहे थे. इस पर उन्होंने खुशी जाहिर करते हुए कहा भी था कि यह जानकारी नहीं थी कि इतने लोग उन्हें देखने आयेंगे. एक जमाना था, जब नालंदा में पढ़ने-पढ़ाने के लिए लोग विदेशों से आते थे.
चाहे नालंदा हो, तक्षशिला हो या फिर विक्रमशिला, इन विश्वविद्यालयों ने दुनिया का मार्गदर्शन किया. भागलपुर यात्रा के दौरान श्री मुखर्जी अपने माता-पिता के गुरु भूपेंद्रनाथ सान्याल की कर्मस्थली बांका के बौंसी स्थित गुरुधाम भी गये थे. उनके माता-पिता तो यहां दो-तीन बार आये थे, पर श्री मुखर्जी को यहां आने का कभी मौका नहीं मिल पाया था.
उनके कार्यक्रम में खास बातें एक और थी कि दलगत राजनीति को भूल हर पार्टी के नेता कहलगांव के अंतीचक स्थित समारोह स्थल में शामिल होने पहुंचे थे. श्री मुखर्जी ने विक्रमशिला महाविहार का दर्शन किया. यहां के भग्नावशेष को देखा, तो संग्रहालय में भी भ्रमण किया था.
महाविहार परिसर में रैंप से उतरने के बाद उन्होंने बैट्री चालित कार का इस्तेमाल न कर मुख्य स्तूप तक पैदल ही गये. संग्रहालय के रजिस्टर पर उन्होंने लिख कर विदाई ली थी कि ‘विक्रमशिला जल्द प्राप्त करे अपना गौरव’.
posted by ashish jha