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नीतीश कुमार की महागठबंधन सरकार बनते ही बिहार में तेज हुआ पिछड़ों के बीच सत्ता संघर्ष, 6 माह में हुए कई उलटफेर

नीतीश कुमार ने जब भाजपा से गठबंधन तोड़कर राजद के साथ बिहार में महागठबंधन की सरकार बनायी थी तो यह माना जा रहा था कि नयी सरकार बनने के बाद बिहार की सियासत में कई उलटफेर होंगे. बेशक नीतीश कुमार की इस सरकार को सदन में सात दलों का समर्थन है, लेकिन इस गठबंधन को लेकर दलों के अंदर आम सहमति जैसी बात नहीं थी.

पटना. नीतीश कुमार ने जब भाजपा से गठबंधन तोड़कर राजद के साथ बिहार में महागठबंधन की सरकार बनायी थी तो यह माना जा रहा था कि नयी सरकार बनने के बाद बिहार की सियासत में कई उलटफेर होंगे. बेशक नीतीश कुमार की इस सरकार को सदन में सात दलों का समर्थन है और भाजपा पूरी तरह अकेले विपक्ष में बैठी हुई है, लेकिन इस गठबंधन को लेकर महागठबंधन के दो प्रमुख दलों के अंदर आम सहमति जैसी बात नहीं दिखी. ऐसे में राजनीतिक गठबंधन और दल के अंदर का समीकरण दोनों बदलने की उम्मीद पहले से ही थी. बेशक यह दूसरा मौका है, जब नीतीश कुमार ने अपने पुराने सहयोगी भाजपा से नाता तोड़ा है. इससे पहले नीतीश कुमार 2013 में भाजपा से अलग हुए थे. हालांकि, 2017 में वे महागठबंधन का साथ छोड़कर भाजपा के साथ आ गये थे. इस बार जदयू का नीतीश सबके हैं का नारा उस वक्त अप्रासंगिक हो गया जब राजद के अंदर से ही उनके विरोध में स्वर मुखर होने लगे.

आरसीपी सिंह के बाद कुशवाहा

बिहार में अब सवर्ण समुदाय के बीच सत्ता का संघर्ष मंडल के पहले ही खत्म हो चुका था. सवर्ण और पिछड़ों के बीच हो चुका है. पिछड़ी जातियों के बीच सत्ता की हिस्सेदारी की लड़ाई अब सत्ता के संघर्ष तक पहुंच चुका है. नीतीश कुमार की नयी सरकार बनने के बाद जदयू में उपेंद्र कुशवाहा इस लड़ाई को मुखर किये. इस गठबंधन का सबसे ज्यादा विरोध उन्होंने ही किया. उपेंद्र कुशवाहा उस वक्त और आक्रामक हो गये जब नीतीश कुमार में 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के नेतृत्व में लड़ने की बात कह दी. जदयू में नीतीश कुमार के बाद खुद को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करनेवाले कुशवाहा को नीतीश कुमार का यह एलान इतना व्याकुल कर दिया कि वो पार्टी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिये. उन्होंने तेजस्वी यादव को नेता मानने से साफ इनकार कर दिया. इधर, जीतनराम मांझी ने भी तेजस्वी की जगह अपने बेटे को उचित उम्मीदवार बता कर सत्ता पर अपना दावा ठोंक दिया. आरसीपी सिंह के बाद उपेंद्र कुशवाहा ऐसे दूसरे नेता हैं, जो नीतीश कुमार के न केवल बेहद करीब माने जाते रहे हैं, बल्कि पार्टी में कभी उनकी नंबर दो की पोजिशन रही है. दोनों सत्ता संघर्ष में जदयू से अलग हो गये.

तीन उपचुनाव में दो हारे

नीतीश कुमार की नयी सरकार बनने के बाद जिस वोट प्रतिशत का दावा महागठबंधन की ओर से किया जाता रहा है, वो पूरी तरह ध्वस्त होता दिखा. बिहार में नयी सरकार बनने के बाद तीन उपचुनाव हुए. तीन में से केवल एक मोकामा की सीट पर राजद ने जीत दर्ज की, जबकि गोपालगंज में राजद और कुढ़नी में जदयू भाजपा से हार गयी. इन दो उपचुनावों से भाजपा का आत्मविश्वास बढ़ा, वहीं राजद और जदयू के अंदर जनाधार बिखड़ने की बात कही जाने लगी. राजनीतिक हलकों में भी यह बात चर्चा में रही कि 2015 जैसा महागठबंधन का प्रभाव इस बार देखने को नहीं मिल रहा है. राजद और जदयू समेत सात विपक्षी दलों की एकता भी दो उपचुनावों में भाजपा को हराने में सफल नहीं हो पायी. ऐसे में 2024 की लड़ाई के लिए कई मोरचे पर महागठबंधन को मजबूत होने की जरुरत है.

चिराग की वापसी और मजबूत हुआ औवेशी फैक्टर

नीतीश की नयी सरकार बनने के बाद बिहार की राजनीति में दो महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं. पहला चिराग की राजग में वापसी हुई और दूसरा औवेशी फैक्टर बिहार की राजनीति में एक बड़ी ताकत बनकर उभरी है. विधानसभा चुनाव में जदयू की हार का कारण चिराग पासवान को पहले ही बताया जाता रहा है. नीतीश कुमार खुद इस बात को कहते रहे हैं कि भाजपा चिराग के माध्यम से जदयू को कमजोर करने की साजिश रचती रही. गठबंधन टूटने का यह एक मुख्य कारण बताया गया था. नयी सरकार बनने के बाद चिराग एनडीए के करीब होते गये, वैसे चाचा से उनके संबंध अभी भी मधुर नहीं हुए हैं. इधर औवेशी के बढ़ते जनाधार से महागठबंधन खासकर राजद के मुस्लिम वोट काफी प्रभावित हुए हैं.

रोजगार पर फोकस, लेकिन अपराध को लेकर आलोचना

नीतीश कुमार की नयी सरकार में रोजगार को लेकर फोकस दिखता है. उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के 10 लाख नौकरी देने की बात न केवल कैबिनेट से पास हुई बल्कि 10 लाख स्वरोजगार पैदा करने की बात भी नीति में शामिल की गयी. लाखों नौकरी के लिए सरकार ने विभागीय स्तर पर काम भी शुरू कर दिया है. नयी सरकार की जिस मसले में सबसे अधिक आलोचना हो रही है वो अपराध है. भाजपा ने इस सरकार को जंगलराज-2 की संज्ञा दी है. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री ने तो पूरे आंकड़ों के साथ इसे साबित करने की कोशिश की है. अगस्त में बनी इस नयी सरकार के बाद बिहार में हत्या के कुल 1352 मामले दर्ज हो चुके हैं. ऐसे ही हत्या के प्रयास के 492, दुराचार के 210, अपहरण के 95, लूट के 339, गोलीबारी के 180 व चोरी के 448 मामले दर्ज हो चुके हैं.

दो मंत्री दे चुके हैं इस्तीफा

नीतीश कुमार की सरकार से अब तब दो मंत्रियों का इस्तीफा हो चुका है. पहला इस्तीफा कानून मंत्री कार्तिकेय का हुआ. अनंत सिंह के खासे करीब कार्तिकेय को आपराधिक मामलों के कारण पद छोड़ना पड़ा. वैसे भाजपा का आरोप है कि सुरेंद्र यादव और रामानंद यादव जैसे कई आरोपित मंत्री बने हुए हैं. नीतीश सरकार में दूसरा इस्तीफा कृषिमंत्री सुधाकर सिंह का हुआ. नीतीश को लेकर राजद के अंदर आम सहमति नहीं दिखी. जगदानंद सिंह मौके से नदारद रहे तो सुधाकर सिंह राजद कोटे से मंत्री रहते हुए नीतीश को नेता मानने से इनकार कर दिया. दोनों बाप-बेटों ने इस नयी सरकार को कभी पसंद नहीं किया. जगदानंद सिंह और सुधाकर सिंह लगतार नीतीश कुमार पर हमलावर रहे हैं. इसके अलावा राजद कोटे के एक और मंत्री चंदेशेखर ने भी अपने बयानों से नीतीश कुमार को काफी असहज किया. माना जा रहा है कि नीतीश कुमार को परेशान करने के लिए ही शिक्षामंत्री उस तरह का बयान देते रहे हैं.

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