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प्रैक्टिकल एग्जाम में पैसों की ‘थ्योरी’

इंटर काउंसिल के और भी कारनामे. प्रैक्टिकल में बिन परीक्षा दिये ही मिले जाते हैं अच्छे अंक प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक देने में भी स्कूल व कॉलेज खूब खेल खेलते हैं. पैसा खर्च करने पर खूब नंबर देते हैं. पटना : इंटर की परीक्षा में जहां उत्तर पुस्तिकाओं के बदलने का काम परीक्षा और मूल्यांकन […]

इंटर काउंसिल के और भी कारनामे. प्रैक्टिकल में बिन परीक्षा दिये ही मिले जाते हैं अच्छे अंक
प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक देने में भी स्कूल व कॉलेज खूब खेल खेलते हैं. पैसा खर्च करने पर खूब नंबर देते हैं.
पटना : इंटर की परीक्षा में जहां उत्तर पुस्तिकाओं के बदलने का काम परीक्षा और मूल्यांकन केंद्रों के स्तर पर होता है, उसी तरह से प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक देने में भी होम सेंटर वाले स्कूल-कॉलेज खूब खेल खेलते हैं. जो परीक्षार्थी स्कूल द्वारा मांगे गये पैसे देता है, उसे प्रैक्टिकल में अंक अच्छे मिलते हैं. पैसा लेकर प्रैक्टिकल की परीक्षा में ज्यादा अंक देने का धंधा ज्यादातर संस्थानों में होता है.
आये दिन बिहार विद्यालय परीक्षा समिति के पास इस तरह के मामले आते रहते हैं. लेकिन, बोर्ड यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लेता है कि प्रैक्टिकल परीक्षा स्कूल और कॉलेज स्तर पर लिया जाता है. बोर्ड इसमें कुछ नहीं कर सकता है. ज्ञात हो कि 100 अंक की इंटर साइंस की परीक्षा में 30 अंक की प्रैक्टिकल परीक्षा ली जाती है.
शिवम सत्या (रोल नंबर 10001, रोल कोड 16025) को इंटर साइंस 2015 की परीक्षा में 81 फीसदी अंक आया, लेकिन उसका अपने ही स्कूल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, बिछिया, कैमूर पर आरोप है कि पैसे नहीं देने के कारण उसे प्रैक्टिकल में कम अंक दिये गये. इससे आॅल इंडिया रैंकिंग में वह पिछड़ गया. उसने 2015 में नामांकन नहीं लिया.
रोहित अंकुर इंटर साइंस 2016 की परीक्षा में शामिल हुआ. थ्योरी पेपर में अच्छे अंक मिले हैं और प्रैक्टिकल में अंक कम दिये गये हैं. रोहित अंकुर (रोल नंबर 10034, रोल काेड 16028) के पिता प्रवीण चौधरी ने बताया कि प्रैक्टिकल परीक्षा होने के पहले कॉलेज ने प्रैक्टिकल के लिए अंक देने को लेकर 400 रुपये मांगे थे, हमने नहीं दिया. इससे रोहित को फिजिक्स में मात्र 17 अंक दिये.
बोर्ड नहीं करता है कोई निरीक्षण
प्रैक्टिकल परीक्षा लेने वाले होम सेंटरों बोर्ड की ओर से केवल प्रैक्टिकल एग्जाम के मेटेरियल भेज दिये जाते हैं. इसके बाद की सारी व्यवस्था स्कूल और कॉलेज अपने स्तर पर करता है. प्रैक्टिकल परीक्षा किस तरह से ली गयी, इसका बोर्ड कभी भी निरीक्षण नहीं करता है.
कोई प्रक्रिया नहीं, बस मार्क्स का खेल
स्कूल या कॉलेज स्तर पर होनेवाली प्रैक्टिकल परीक्षा में केवल अंक दिये जाते हैं. न तो लिखित परीक्षा सही से ली जाती है और न ही वाइवा ही लिया जाता है. स्कूल वाले अपनी मरजी से प्रैक्टिकल परीक्षा में अंक देते हैं. यही नहीं, होम सेंटर वाले बोर्ड में भी प्रैक्टिकल का केवल अंक ही भेजते हैं.
प्रैक्टिकल परीक्षा में कम अंक देने और पैसा लेकर अंक बढ़ाने के मामले अक्सर अभिभावक लेकर आते हैं. चूंकि प्रैक्टिकल परीक्षा की सारी प्रक्रिया होम सेंटरों के स्तर पर ही होती है. ऐसे में हम कुछ नहीं कर पाते हैं.
प्रो लालकेश्वर प्रसाद सिंह, अध्यक्ष, बिहार विद्यालय परीक्षा समिति

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