पटना: अरवल के बभना गांव निवासी व लुधियाना में फैक्टरी में काम करनेवाले मनोज कुमार उर्फ रणविजय का नवजात पत्नी दीपू द्विवेदी के ऑपरेशन के बाद मृत निकला. नवजात को खोने का दर्द तो मनोज ने किसी तरह सह लिया, लेकिन जब अस्पताल प्रशासन ने इलाज का बिल दिया, तो उसके होश उड़ गये. मनोज अस्पताल प्रशासन से कुछ पैसे छोड़ देने के लिए गिड़गिड़ाता रहा, लेकिन उसकी एक न सुनी गयी और अस्पताल से बिना पैसे दिये पत्नी को घर ले जाने से मना कर दिया गया. अंत में हार कर पति मनोज एसएसपी मनु महाराज के पास पहुंचा, जहां उन्होंने कार्रवाई का आश्वासन दिया.
एसएसपी से मिलने के बाद वह जक्कनपुर थानाध्यक्ष मनोज कुमार सिंह के पास पहुंचा. सूचना मिलते ही जक्कनपुर थानाध्यक्ष दल-बल के साथ अस्पताल में पहुंचे और तब जाकर मामला सलटा. अस्पताल प्रशासन ने पत्नी को ले जाने की इजाजत दे दी. मनोज ने पुलिस के समक्ष आरोप लगाया था कि मीठापुर बस स्टैंड के समीप न्यू बाइपास पर स्थित निजी अस्पताल में अपनी पत्नी के इलाज के लिए अब तक 25 हजार जमा करा दिया, लेकिन अब भी अस्पताल प्रशासन उन लोगों से इलाज व दवा के नाम पर 22 हजार और अस्पताल का खर्च मांग रहा है.
वह काफी गरीब है और पहले ही किसी तरह 25 हजार जमा कर पाया. लेकिन अब उसके पास देने को उतने पैसे नहीं हैं. वे लोग चाहते हैं कि कुछ पैसा भी छोड़ दिया जाये, तो उनकी मदद हो जायेगी. लेकिन पूरे पैसे लेने के बाद ही पत्नी को घर ले जाने की बात अस्पताल द्वारा कही जा रही है. हालांकि देर रात मामला सुलझ गया.
दलालों के चक्कर में पड़ कर कराया था भरती
दीपू द्विवेदी को गर्भवती हालत में इलाज के लिए पहले अरवल के सदर अस्पताल में भरती कराया गया था. लेकिन तबीयत खराब होने के कारण उसे पीएमसीएच रेफर कर दिया. वहां से वे लोग एंबुलेंस से लेकर पीएमसीएच पहुंचे, लेकिन फिर वहां से मरीज को लेकर एक निजी अस्पताल पहुंचे और इलाज के लिए भरती करा दिया.
मनोज के भाई सियाराम पांडेय ने बताया कि अरवल से ही एक व्यक्ति एंबुलेंस के साथ पाली तक पहुंचा और वह वहां उतर गया. इसके बाद वहां एक और व्यक्ति उसके बदले में एंबुलेंस पर चढ़ा और वह पीएमसीएच तक साथ में आया. लेकिन पीएमसीएच में एडमिट कराने के बजाय उसने दूसरे एंबुलेंस में मरीज को रख दिया और कम खर्च में अच्छा इलाज का दावा करते हुए वहां ले आया. उन्होंने कहा कि वह संभवत: दलाल था और उसी के चक्कर में हमलोग फंस गये.
अस्पताल प्रशासन का तर्क
अस्पताल के संतोष कुमार ने बताया कि उन्होंने अभी तक इलाज के लिए 25 हजार दिया है, जिसमें नौ हजार दवाओं के लिए, छह हजार ब्लड के लिए और दस हजार ऑपरेशन के लिए दिया. उन्हें पहले ही बता दिया गया था कि ऑपरेशन के लिए बीस हजार देना है. इसके अलावा दवाइयों व ब्लड के लिए व बेड चार्ज अलग से देना है. इस पर उनलोगों ने अपनी सहमति दी थी. ऑपरेशन के बाद उन्होंने मात्र दस हजार ही दिया, जो अभी भी बाकी है.
महिला की हालत इतनी खराब थी कि काफी मशक्कत के बाद उनकी जान बचायी गयी. इसके लिए चार चिकित्सकों की टीम मौजूद थी. अभी उन लोगों के पास ऑपरेशन का बकाया दस हजार, दवाइयों का नौ हजार व जांच का ढाई हजार का बिल बकाया है. इस बिल में वे लोग कहां गलत है. इलाज में यह वास्तविक खर्च आया है.
अस्पताल के समीप दलालों का जमावड़ा
पीएमसीएच, एनएमसीएच और आइजीआइएमएस के आसपास ऐसे दलाल मंडराते रहते हैं, जो गंभीर मरीजों के अभिभावकों की परेशानी का फायदा उठाते हैं. ऐसे दलाल किसी न किसी निजी नर्सिग होम या अस्पताल से जुड़े होते हैं. प्रत्येक रोगी के एवज में उन्हें मोटी रकम मिलती है. दूसरे शहरों या गांवों से आने वाले लोग सरकारी अस्पतालों में इतनी फजीहत ङोलते हैं कि वे फौरी राहत के लिए ऐसे दलालों के चंगुल में फंस जाते हैं. झगड़ा-झंझट की नौबत त्ब आती है, जब अस्पताल प्रबंधन की ओर से मोटा बिल थमा दिया जाता है.