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बदहाली की कगार पर डस्टिेंस एजुकेशन

बदहाली की कगार पर डिस्टेंस एजुकेशनफ्लैग : बदहाल : पीयू की उपेक्षा के कारण डिस्टेंस एजुकेशन निदेशालय की हालत खराब – जबरदस्त आर्थिक तंगी से भी जूझ रही है संस्था – पुरानी सेंट्रल लाइब्रेरी भवन का बुरा हाल, किसी तरह चल रहा दफ्तर अमित कुमार, पटना पटना विश्वविद्यालय काे कभी काफी हद तक आर्थिक सहयोग […]

बदहाली की कगार पर डिस्टेंस एजुकेशनफ्लैग : बदहाल : पीयू की उपेक्षा के कारण डिस्टेंस एजुकेशन निदेशालय की हालत खराब – जबरदस्त आर्थिक तंगी से भी जूझ रही है संस्था – पुरानी सेंट्रल लाइब्रेरी भवन का बुरा हाल, किसी तरह चल रहा दफ्तर अमित कुमार, पटना पटना विश्वविद्यालय काे कभी काफी हद तक आर्थिक सहयोग करने वाले दूरस्थ शिक्षा निदेशालय (डीडीई) की हालत खस्ता हो चुकी है. विवि की उपेक्षा के कारण यह संस्था एक साथ कई परेशानियों से जूझ रहा है, पर इस ओर ध्यान देने के बजाय ऐसे काम किये जा रहे हैं कि उलटे पीछे ही जा रहा है. पिछले कई सालों से यहां आधी सीटें भी मुश्किल से भर पा रही हैं और वर्तमान में यह जबरदस्त आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. डिस्टेंस एजुकेशन की सबसे पुरानी संस्था पीयू का डीडीई राज्य के डिस्टेंस एजुकेशन की सबसे पुरानी संस्था है. 1974 से यह विवि का अभिन्न अंग रहा है. यूजीसी की अनुसंशा पर इसकी स्थापना की गई थी. यहां स्नातक में आर्ट्स व कॉर्मस की पढ़ाई हाेती है. 5 हजार सीटों में आधी में एडमिशन हो भी नहीं पाता है. कई वोकेशनल कोर्स भी चलते हैं. हर स्ट्रीम में सौ-सौ सीटे हैं, पर सबका कमोवेश एक ही हाल है. किसी-किसी वोकेशनल कोर्स में पांच या दस छात्र भी अब नामांकन नहीं लेते हैं, जबकि 2003 तक यहां सभी सीटें हमेशा फुल रहा करती थीं. भवन का मामला भी वर्षों से पेंडिंगडीडीइ का अपना भवन तक नहीं है और यह पुरानी सेंट्रल लाइब्रेरी के भवन में चल रही है, जिसकी हालत जर्जर है. भवन के सैदपुर में बनाने की बात थी, पर यह मामला भी वर्षों से पेंडिंग है. कार्यालय जैसे-तैसे अव्यवस्थित चल रहा है. काउंटर की हालत खराब है. लाइब्रेरी में किताबें सड़ रही हैं. दीवारों पर पेंट कई वर्षों से नहीं हुआ है. जगह के अभाव में स्टडी मेटेरियल का भी ठीक प्रकार से रखरखाव नहीं है. पीजी बंद, अब यूजी भी तोड़ रहा दम पीजी की पढ़ाई तो यहां चार वर्ष पहले ही बंद हो गई है और अब तो यूजी कोर्स भी दम तोड़ने की स्थिति में आ गया है. पीजी के बंद होने का कारण था उसके लिए अपडेट सिलेबस के अनुसार स्टडी मेटेरियल का ना होना. यही वजह थी कि जब डेक (डिस्टेंस एजुकेशन काउंसिल) की टीम ने इसका दौरा किया था और सही स्टडी मेटेरियल को नहीं पाया, तो उस कोर्स पर रोक लगा दी गई. उस समय यहां समाजशास्त्र और इतिहास में पीजी की पढ़ाई होती थी. वर्षों पुराने मेटेरियल पढ़ने को मजबूर डीडीई में वर्षों पुराने सिलेबस और स्टडी मेटेरियल को पढ़ने को छात्र मजबूर हैं. वोकेशनल कोर्स में तो सिलेबस चेंज होने के बाद ही पुराने स्टडी मेटेरियल से ही छात्रों को पढ़ाया जा रहा है. इसके पीछे का कारण यह है कि स्टडी मेटेरियल प्रीपेयर करने के लिए एक्सपर्ट की बैठक वर्षों से नहीं हुई है. न ही नये स्टडी मेटेरियल को तैयार कराने को लेकर विवि द्वारा कोई ठोस पहल ही की गई है. एक तो पुराना स्टडी मेटेरियल और उसका भी शॉर्टेज ही रहता है. छात्र एक तो कम संख्या में नामांकन लेते हैं, उसकी किताबें भी यहां पर्याप्त नहीं रहती हैं. किताबों की छपाई के लिए पीयू के प्रेस पर यह संस्था निर्भर रहती है खुद ही बोझ तले दबी रहती है. बाहर से छपाई कराने पर विवि द्वारा रोक लगा हुआ है. वित्तीय स्वायत्तता नहीं मिलतीडीडीई को वित्तीय स्वायत्तता नहीं होने की वजह से यहां छोटे-छोटे मद में खर्च करने के लिए भी सोचना पड़ता है. एक तो यह संस्था आर्थिक तंगी से जूझ रहा है उस पर किसी कार्य के लिए यहां फंड लेने के लिए विवि से गुहार लगानी पड़ती है, फाइल आगे बढ़ती है और जब तक पैसा सैंक्शन होता है तब तक कोई और नई समस्या आ जाती है. एक समय जब यहां सीटें फुल रहा करती थी तो विवि को भी अच्छा शेयर मिलता था और एक बड़ा आर्थिक सहयोग विवि के मुख्यालय को इस संस्था के माध्यम से होती थी. दूसरे जिले में सेंटर खोलने की योजना ठंडे बस्ते में डीडीई के जरिए विवि द्वारा कई नये वोकेशनल कोर्स खोलने की विवि को योजना थी, लेकिन पर्याप्त साधन, अधिकारी, शिक्षक और कर्मचारियों के नहीं होने की वजह से इस ओर कुछ नहीं हो सका. न ही विवि ने ही कभी इस पर गंभीरता से काम किया. डीडीई द्वारा दूसरे जिले में शाखा या सेंटर खोलने की भी बात थी, लेकिन उस ओर भी कुछ नहीं हुआ. विवि की उपेक्षा का आलम इसी से समझा जा सकता है कि इसके निदेशक का पद पिछले छह महीने से खाली है, लेकिन पीयू के कुलपति को इसके लिए सोचने तक की फुरसत नहीं है. वर्तमान में डिप्टी डायरेक्टर ही पूरा काम संभाल रहे हैं.

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