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युवाओं का सही दिशा में काम करना जरूरी

युवाओं का सही दिशा में काम करना जरूरी आंखों में अच्छे भविष्य के सपने, उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने की इच्छा और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला ‘युवा’ कहलाता है. युवा शब्द ही मन में उड़ान और उमंग पैदा करता है. आज के भारत को ‘युवा भारत’ कहा […]

युवाओं का सही दिशा में काम करना जरूरी आंखों में अच्छे भविष्य के सपने, उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने की इच्छा और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला ‘युवा’ कहलाता है. युवा शब्द ही मन में उड़ान और उमंग पैदा करता है. आज के भारत को ‘युवा भारत’ कहा जाता है क्योंकि हमारे देश में असंभव को संभव में बदलनेवाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है. ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुनौती? यह सवाल महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाये, तो इनका जरा-सा भी भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है. लाइफ रिपोर्टर @ पटनाआज हमारे सामने दो तरह के युवा हैं. एक वे हैं, जो आगे बढ़ना चाहते हैं, राष्ट्रहित में कुछ करना चाहते हैं, समाज सेवा कर रहे हैं, पढ़ाई में नयी उपलब्धियां हासिल कर रहे हैं, देश का नाम रोशन कर रहे हैं, तो दूसरी तरह ऐसे युवा भी हैं, जो गलत रास्तों पर चल पड़े हैं, चकाचौंध वाली दुनिया को देख अपने लक्ष्य से भटक गये हैं, जो अपनी भलाई के लिए धोखा देने लगे हैं, बड़ी-बड़ी घटनाओं को रुपयों के लिए अंजाम दे रहे हैं. ऐसे युवा हैं चिंता का विषय1) मनमानी करते हैं युवाआज का एक सच यह भी है कि युवा बहुत मनमानी करते हैं और किसी की सुनते नहीं. दिशाहीनता की इस स्थिति में युवाओं की ऊर्जाओं का नकारात्मक दिशाओं की ओर भटकाव होता जा रहा है. लक्ष्यहीनता के माहौल ने युवाओं को इतना भ्रमित कर दिया है कि उन्हें सूझ ही नहीं पड़ रही कि करना क्या है, हो क्या रहा है और आखिर उनका होगा क्या? अब हमारे युवाओं की शारीरिक स्थिति भी ऐसी नहीं रही है कि कुछ कदम ही पैदल चल सकें. धैर्य की कमी, आत्मकेन्द्रिता, नशा, लालच, हिंसा, कामुकता तो जैसे उनके स्वभाव का अंग बनते जा रहे हैं.2) इंटरनेट के हो गये हैं आदी एक ताजा शोध के अनुसार अब युवा अधिक रूखे स्वभाव के हो गये हैं. वह किसी से घुलते-मिलते नहीं. इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के इस युग में रोजमर्रा की जिंदगी में आमने-सामने के लोगों से रिश्ते जोड़ने की अहमियत कम हो गयी है. मर्यादाहीनता के इस भयानक दौर में हम अनुशासन की सारी सीमाएं लांघ कर इतने निरंकुश, स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी और उन्मुक्त हो चले हैं कि अब समाज को किसी लक्ष्मण रेखा में बांधना शायद बहुत बड़ा मुश्किल हो गया है.3) नौकरी करनेवाले माता-पिता कैसे देंगे संस्कारआज की शिक्षा ने नयी पीढ़ी को संस्कार और समय किसी की समझ नही दी है. अपनी चीजों को कमतर करके देखना और बाहरी सुखों की तलाश करना इस जमाने को और बिगाड़ रहा है. परिवार से दूरी भी इसकी खास वजह है. संयुक्त परिवारों का टूटना, नौकरी करते माता-पिता, फ्लैट्स में सिकुड़ते परिवार, प्यार को तरसते बच्चे, नौकरों, दाईयों एवं ड्राइवरों के सहारे जवान होती नयी पीढ़ी हमें क्या संदेश दे रही है? यह बिखरते परिवारों का भी जमाना है. इस जमाने ने अपनी नयी पीढ़ी को अकेला होते और बुजुर्गों को अकेला करते भी देखा है. बदलते समय ने लोगों को ऐसी गलत बात सिखा दी है, जहां लोगों को हिंदी बोलने पर मूर्ख और अंग्रेजी बोलने पर समझदार समझा जाता है.4) व्हॉट्सएप्प, फेसबुक की लत ने किया बेकारमोबाइल कॉलेज जाने वाले युवाओं के हाथ में ही नहीं, बल्कि स्कूल जानेवाले बच्चों की जिंदगी का अहम हिस्सा बन रहा है. व्हॉट्सएप्प, फेसबुक और वीडियो का शौक इतना बढ़ चुका है कि वे उसी में मस्त हैं और अपने भविष्य को लेकर बेखबर. ऐसे में पढ़ाई का क्या अर्थ रह जाता है. हमारे मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभावों विषय पर निकोलस कार की चर्चित पुस्तक है द शैलोज. इसे पुलित्जर पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था. का मत है कि इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें इस ओर ले जाता है कि हम इस पर ही निर्भर हो जायें. चीन, ताइवान और कोरिया में इंटरनेट व्यसन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में लिया है और इससे निबटने की तैयारी भी शुरू कर दी है.5) पश्चिमी सभ्यता को अपनाने में लगे हैं युवाऐशो-आराम की जिंदगी पाने की अंधी दौड़ में युवा भी फंसता चला जा रहा है. विदेशी सभ्यता, उसके पहनावे और संस्कृति को अपनाने में उसे कोई हिचक नहीं होती है. आज 14-15 वर्ष की आयु में ही स्टूडेंट्स ड्रग्स और डिस्को के आदी हो रहे हैं. नशे की बढ़ती प्रवृत्ति ने हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों को जन्म दिया है. जिससे इस युवा शक्ति का कदम अंधकार की तरफ बढ़ता हुआ दिख रहा है. युवा पीढ़ी में आज धार्मिक क्रियाकलापों और सामाजिक कार्यों के प्रति उदासीनता दिखती है. ऐसे समय में युवाओं को जागने की जरूरत है. दुःखद आश्चर्य तो यह है कि वर्तमान समय में चरित्र-निर्माण की चर्चा ना के बराबर है. हम सभी अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, सीए और न जाने, क्या-क्या तो बनाना चाहते हैं, पर उन्हें चरित्रवान, संस्कारवान बनाना भूल चुकेे हैं. यदि इस ओर ध्यान दिया जाए, तो विकृत सोच वाली अन्य समस्याएं शेष ही न रहेंगी.6) हर काम के लिए चाहिए गाड़ीयह सत्य है कि ‘पहले तो हम स्वयं-ही अपने बच्चों को जरूरत से ज्यादा छूट देते हैं, पैसा देते हैं और भूल कर भी उनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखते. लेकिन बाद में, उन्हीं बच्चों को कोसते हैं कि वे बिगड़ गये. आखिर यह मानसिकता हमें कहां ले जा रही है? आज शहरों का हर युवा छोटे-से-छोटे काम के लिए गाड़ी ले जाता है. शारीरिक श्रम और चंद कदम भी पैदल चलना शान के खिलाफ समझा जाता है. आश्चर्य तो तब होता है जब हम घर से महज कुछ मीटर दूर पार्क में सैर करने के लिए भी कार में जाते हैं. यह राष्ट्रीय संसाधनों के दुरुपयोग से ज्यादा-चारित्रिक तथा मानसिक पतन का मामला है, इसकी तरफ कितने लोगों का ध्यान हैं? विज्ञापनों का बहुत बड़ा दोष है, जो युवाओं को ऐसे कामों के लिए उत्तेजित करते हैं.

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