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बेटियों के जन्म पर जश्न मनाया

बेटियों के जन्म पर जश्न मनाया लाइफ रिपोर्टर पटना बेटियां होती हैं बहुत प्यारी, इनसे मिलती हैं खुशियां सारी. पराया धन होते हुए भी अपने परिवार की खुशियों का ख्याल रखती हैं. बेटियां अपने मां-बाप के हर दुख-दर्द को समझती हैं. उनसे ही सारे शौक पूरे होते हैं. बेटियां सचमुच होती हैं बहुत प्यारी. इनके […]

बेटियों के जन्म पर जश्न मनाया लाइफ रिपोर्टर पटना बेटियां होती हैं बहुत प्यारी, इनसे मिलती हैं खुशियां सारी. पराया धन होते हुए भी अपने परिवार की खुशियों का ख्याल रखती हैं. बेटियां अपने मां-बाप के हर दुख-दर्द को समझती हैं. उनसे ही सारे शौक पूरे होते हैं. बेटियां सचमुच होती हैं बहुत प्यारी. इनके रहने से घर-आंगन हंसता-खिलखिलाता रहता है. ये हैं तो घर की रौनक है. कुछ इसी बात को सोचते हुए फेसबुक के संस्थापक एवं मुख्य कार्यकारी अधिकारी मार्क जुकरबर्ग ने अपनी बेटी के जन्म पर कंपनी में अपनी एवं पत्नी की हिस्सेदारी में से 99 प्रतिशत दान करने का संकल्प लिया है. कई लोगों से बातचीत में यह बात सामने आयी कि बेटा-बेटी में कोई अंतर नहीं है. बेटियों से ही सारा घर संसार है, ये ही मान-सम्मान हैं. इनकी खुशी लोगों के लिए काफी मायने रखती है. हमारे शहर में भी ऐसे बहुत से लोग हैं जिनके लिए बेटा-बेटी एक बराबर हैं. और कहीं न कहीं इन्होंने भी अपनी बेटियों के जन्म को जश्न में बदल डाला है. मन्नत में बेटी की इच्छा रखने वाले भी ऐसे बहुत से लोग हैं, जिनका घर बेटियों की वजह से गुलजार है. बातचीत1. पाटलिपुत्र निवासी मीनाक्षी कनोडिया कहती हैं, जब पहली बार मां बनने का अनुभव किया था, तो उस वक्त मैंने सोचा भी नहीं था लड़का होगा या लड़की. लड़की होने की बात जब सुनी तो काफी खुश भी हुई. उस वक्त ही सोचा कि अपनी बेटी को वो सारे संस्कार दूंगी जो एक मां अपनी बेटी को देती है. बेटी के जन्म के बाद धूमधाम से माता का जागरण कराया, गरीब बच्चों को खाना खिलाया, कपड़े भी दिये. बेटियों के बिना तो घर बिल्कुल अधूरा सा लगता है. मैं अपनी बेटी के साथ बिल्कुल एक दोस्त की रहती हूं. यहां तक कि बेटे से ज्यादा बेटी को मानती हूं. 2. बाेरिंग रोड की पूनम शौनक एकराट का कहना है कि मेरे लिए बेटा-बेटी दोनों एक समान हैं. पहली बार मां बनने की खुशी का अनुभव याद करके आज भी दिल खुश हो जाता है. ससुराल के सभी लोग बेटी की कामना करते थे. यहां तक कि मैं खुद चाहती थी कि मुझे बेटी हो. बेटी वीरा के होने पर सभी ने खुशियां मनायीं. ससुराल में 25 साल बाद कोई लड़की हुई तो खुशी और दोगुनी हो गयी. तब ही मैं अौर मेरे पति ने डिसाइड किया कि बेटी के नाम का स्टॉल लगायेंगे. आज फक्र से कहती हूं कि बोरिंग रोड में फेमस पावभाजी ‘वीरा द ढाबा’ पर उपलब्ध है. वीरा के हर बर्थ डे को काफी भव्य तरीके से मनाती हूं. 3. बेली रोड के कुणाल केसरी कहते हैं, बेटे के बाद बेटी की तमन्ना थी जो कि पूरी हुई. बेटी काव्या के जन्म को लेकर काफी मन्नतें भी मांगी. बेटी के जन्म पर काफी खुशियां मनायी गयी. काव्या का जन्म कुर्जी हॉस्पिटल में हुआ. जन्म के दिन खूब जश्न मनाया गया. हॉस्पिटल में सभी लोगों को मिठाई भी खिलायीं. पत्नी रेखा केसरी ने खुद खाना बना कर पटना स्टेशन स्थित महावीर मंदिर के पास के गरीबों को खाना खिलाया एवं कंबल बांटे. अाज भी मुझे याद है, ठंड का दिन था और बेटी हाेने की चाहत में रात भर हॉस्पिटल का चक्कर काटते रह गया. आखिर में भगवान ने मेरी सुन ली. बेटियां वैसे भी पापा की दुलारी होती हैं. 4. कंकड़बाग की पूनम चौधरी कहती हैं, जब पहली बार मां बनने को थी तो मैं काफी खुश रहती थी. बेटा हो या बेटी, मेरे लिए काेई मायने नहीं रखता था. लेकिन घरवालों को बेटा की इच्छा थी. मुझे बेटी की चाहत थी. कहीं न कहीं बेटियां ही मां-बाप के सम्मान, अरमान एवं विश्वास पर खरा उतरती हैं. बेटी की खुशी में कई जगहों के मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना भी की. वहीं इस बात की भी इच्छा रखी थी कि बेटी की शादी धूमधाम से करने के बाद अमरनाथ की यात्रा करूंगी. हाल ही में बेटी की शादी करने के बाद अमरनाथ के दर्शन करके आयी हूं.

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