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नीतीश कुमार : बिहार की राजनीति के चाणक्य से सुशासन बाबू तक का सफर

पटना : देश की राजनीति में सुशासन बाबू के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले नीतीश कुमार आज एक बार फिर बिहार के मुख्‍यमंत्री के रूपमें शपथ ले रहे हैं. जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने वाले नीतीश बिहार के 31वें मुख्यमंत्री हैं. आज वे बिहार के 32वें मुख्यमंत्री के रूप में राज्य के ऐतिहासिक […]

पटना : देश की राजनीति में सुशासन बाबू के नाम से अपनी पहचान बनाने वाले नीतीश कुमार आज एक बार फिर बिहार के मुख्‍यमंत्री के रूपमें शपथ ले रहे हैं. जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने वाले नीतीश बिहार के 31वें मुख्यमंत्री हैं. आज वे बिहार के 32वें मुख्यमंत्री के रूप में राज्य के ऐतिहासिक मैदान में शपथ लेने वाले हैं. वह आज पांचवीं बार मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने वाले हैं. बिहार में पिछले पांच सालों के नीतीश के सुशासन ने उन्हें इस बार भी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाया है.नीतीश कुमार को कुशल राजनीतिक रणनीतियां तय करने के कारण बिहार की राजनीति का चाणक्य भी कहा जाता है.

1 मार्च 1951 को तब के पटना जिले के हकीकतपुर गांव(बख्तियारपुर) में स्वतंत्रता सेनानी कविराज रामलखन सिंह और परमेश्वरी देवी के घर नीतीश कुमार का जन्म हुआ था. बढती उम्र के साथ ही उनका झुकाव राजनीति की ओर खुद-ब-खुद बढ़ता चला गया. नीतीश कुमार ने 1974 में जेपी आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभायी. इस दौरान 1974 में आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के उन्हें गिरफ्तार भी किया गया. वर्ष 1975 में आपातकाल के दौरान ही वे समता पार्टी आंदोलन के संस्थापक सदस्य भी चुने गए थे.

बीएससी (मेकेनिकल) करने के बाद उन्होंने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पटना में रहकर पूरी की. 1985 में उन्होंने पहली बार बिहार विधानसभा में बतौर विधायक कदम रखा. 1987 में वे युवा लोकदल के अध्यक्ष चुने गए. 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया, साथ ही उसी वर्ष वे नौंवी लोकसभा के सदस्य भी चुने गये थे. 1990 में वे पहली बार केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बतौर कृषि राज्यमंत्री के रूप में शामिल हुए. 1991 में वे एक बार फिर लोकसभा के लिए चुने गये और उन्हे इस बार जनता दल का राष्ट्रीय सचिव चुना गया तथा संसद में वे जनता दल के उपनेता का पद भी उन्हें प्रदान किया गया. 1989 और 2000 में उन्होंने बाढ़ लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. 1998-1999 में कुछ समय के लिए वे केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री भी रहे, और अगस्त 1999 में गैसाल में हुई रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया था.

पहली बार वे 3 मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक बिहार के मुख्‍यमंत्री रहे. यह कार्यकाल केवल सात दिनों का था. इसके बाद उन्होंने 2005 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली. उनकी इस सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. 2010 में भी उन्होंने राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन कार्यकाल के पूरा होने के पहले ही 2014 के लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार का जिम्मा लेते हुए उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और जीतन राम मांझी को मुख्‍यमंत्री पद का कार्यभार दिया था. बिहार विधानसभा चुनाव के ठीक पहले यानी 22 फरवरी 2015 को उन्होंने एक बार फिर बिहार की कमान संभाली औरनरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाले राजग की चुनौती को मुंहतोड़ जवाब देते हुए बिहार की सत्ता पर काबिज हुए. इस बार जदयू ने चुनाव के पहले राजद और कांग्रेस के साथ महागंठबंधन बनाया और बिहार की जनता के दिलों में उतर गए.

Prabhat Khabar Digital Desk
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