आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में से एक थे महाकवि वियोगी- जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने श्रद्धा से याद किया, आयोजित हुई कवि-गोष्ठी पटना. आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में से एक महाकवि मोहन लाल महतो ‘वियोगी’ बीसवीं सदी के महानतम कवियों में अग्र-पांक्तेय हैं. उनकी अद्भुत साहित्यिक-प्रतिभा ने आलोचकों को अचंभित कर रखा था. वे मौलिक-लेखन के विलक्षण साहित्यकार थे. साहित्य की प्रत्येक विधा में उन्होंने अधिकार पूर्वक लिखा. साहित्यालोचकों के लिए यह निर्धारित करना कठिन हो गया कि उन्हें कवि कहें कि कथाकार. एक तरफ उन्होंने महाकाव्यों की झड़ी लगा दी, तो दूसरी ओर उपन्यास, नाटक, संस्मरण और बाल-साहित्य की ढेर. महाकाव्य ‘आर्यावर्त’ हो या ‘आर्य जीवन दर्शन’, उनकी दर्जनों प्रकाशित पुस्तकों में से हर एक अपनी अलग विशिष्टता के लिए जानी जाती है. यह विचार गुरुवार को कवि के जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डॉ अनिल सुलभ ने व्यक्त किये. डॉ सुलभ ने कहा कि 88 वर्ष की अपनी कुल आयु का लगभग 70 वर्ष उन्होंने हिंदी साहित्य को दिया और खूब लिखा. कहना चाहिये कि वियोगी जी ने हिंदी साहित्य को एक नया तेवर और एक अलग पहचान दी. उनके विपुल साहित्य का मूल स्वर एक संसार और एक सपना है. अपने बिहार को उन पर सदा नाज रहेगा. इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के प्रधानमंत्री आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव ने कहा कि वियोगी जी हिंदी संसार के लिए गौरव थे. वे जितने बड़े कवि थे, उतने ही बड़े गद्यकार भी थे. वे साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे और इस रूप में उन्होंने अपनी प्रशासनिक-क्षमता का भी परिचय दिया. अंगिका अकादमी के अध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ लखन लाल सिंह आरोही ने कहा कि वियोगी जी बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे. उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर अधिकार पूर्वक लिखा, जबकि उन्हें कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी. उन्होंने स्वाध्याय और साधना से प्रतिभा अर्जित की थी.सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेन्द्र नाथ गुप्त, राम लखन सिंह मयंक, बी पी सिंह, अजय कुमार, सुल्तान अहमद और राम नंदन पासवान ने भी अपने उद्गार व्यक्त किये. इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन भी निराला रहा. लगभग दो दर्जन कवि-कवैत्रियों ने एक से बढ़ कर एक, गीत-गजलों का पाठ किया. गये शाम तक शेरो-सुखन का दिलचस्प दौर चला. पाठक और श्रोता सभी रस में भीगते रहे. वरिष्ठ शायर नाशाद औरंगावादी ने अपने इस शेर से वियोगी जी को याद किया कि, ‘तुम्हारे जाने से नाशाद हैं गुल के बुलबुल/ चमन से तुम हुए रुखसत उदासियां देकर’. कवि डॉ भगवान सिंह ‘भास्कर’ ने नौजवानों को इन पंक्तियों से जगाया कि ‘खून देकर चमन को सजा दीजिये/ जान-ओ-तन इस वतन पर लुटा दीजिये’. कवि दिनेश दिवाकर ने दुनिया से खोते जा रहे प्रेम को इन पंक्तियों में पाने की चेष्टा की कि, ‘चलो क्षितिज के पार/ यार हम ढूंढ के लाएं/ कहीं खो गया है प्यार/ यार हम ढूंढकर लाए’.वरिष्ठ कवि बलभद्र कल्याण, पं शिवदत्त मिश्र, दिनेश दिवाकर, डॉ नरेश पाण्डेय चकोर, डॉ मेहता नगेन्द्र सिंह, बच्चा ठाकुर, कवयित्री अर्चना त्रिपाठी, राज कुमार प्रेमी, ओम प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, शंकर शरण मधुकर, डॉ विनय कुमार विष्णुपुरी, कमलेन्द्र झा ‘कमल’, कुमारी मेनका, रेखा झा, नेहाल सिंह, कुंदन आनंद, श्याम बिहारी प्रभाकर, शशि भूषण उपाध्याय ‘मधुकर’, प्रभात धवन तथा भागवत झा ‘अनिमेष’ ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया. मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने किया.
BREAKING NEWS
आधुनिक हिंदी साहत्यि के नर्मिाताओं में से एक थे महाकवि वियोगी
आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में से एक थे महाकवि वियोगी- जयंती पर साहित्य सम्मेलन ने श्रद्धा से याद किया, आयोजित हुई कवि-गोष्ठी पटना. आधुनिक हिंदी साहित्य के निर्माताओं में से एक महाकवि मोहन लाल महतो ‘वियोगी’ बीसवीं सदी के महानतम कवियों में अग्र-पांक्तेय हैं. उनकी अद्भुत साहित्यिक-प्रतिभा ने आलोचकों को अचंभित कर रखा था. […]
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement