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निगम के पांच करोड़ आखिर गये कहां ?
कोषागार भी चक्कर में नगर निगम व ट्रेजरी की बची राशि के आकलन में पांच करोड़ का अंतर पटना : नगर निगम के वित्तीय कुप्रबंधन से पटना का कोषागार चकरा गया है. नगर निगम के हिसाब में इतनी गलती है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद निगम के खाते में कितनी राशि शेष बच […]
कोषागार भी चक्कर में
नगर निगम व ट्रेजरी की बची राशि के आकलन में पांच करोड़ का अंतर
पटना : नगर निगम के वित्तीय कुप्रबंधन से पटना का कोषागार चकरा गया है. नगर निगम के हिसाब में इतनी गलती है कि वित्तीय वर्ष की समाप्ति के बाद निगम के खाते में कितनी राशि शेष बच गयी, इसकी सटीक जानकारी नगर निगम के पास नहीं है. कहां-कहां कितना पैसा खर्च किया गया है. इसकी भी सटीक जानकारी वे कोषागार को नहीं दे पाते हैं.
अब सारे आंकड़े को मिलान करने के बाद भी जब कोषागार पदाधिकारी के मन में कन्फ्यूजन रहा तो उन्होंने निगम को पत्र लिखा. पत्र का जब जवाब आया तो फिर से आंकड़े मिलाये गये और निगम का वित्तीय कुप्रबंधन सामने आ गया. इसके बाद हिसाब तो मिल गया लेकिन कर विपत्र समेत अन्य मामलों में हिसाब किताब स्पष्ट नहीं हो पाया. निगम को कर विपत्र के जरिये जितनी राशि आती है, उसको कोषागार को दिये आंकड़े में नहीं सम्मिलित करता है.
साथ ही यह भी नहीं बताता कि किस-किस टैक्स के जरिये कितनी आमदनी हुई. कोषागार कार्यालय के मुताबिक ये वित्तीय कुप्रबंध की श्रेणी में आता है, अब इस के लिए कोषागार पदाधिकारी ने महालेखाकार से सलाह मांगी है कि आखिरकार लेखा संधारण किस प्रकार किया जाये, इसके लिए आवश्यक दिशा निर्देश मांगा गया है.
उन्होंने शुक्रवार को इस संबंध में पत्र बिहार सरकार के महालेखाकार को भेज कर सलाह मांगी है.
शेष राशि में अंतर
मालूम हो कि वित्तीय वर्ष 2014-15 की समाप्ति के बाद नगर निगम ने कहा कि कुल बची हुई राशि 130 करोड़ 85 लाख है जबकि कोषागार कार्यालय द्वारा तैयार रपोर्ट में कुल शेष राशि 125 करोड़ 37 लाख रुपये थी.
कोषागार पदाधिकारी विजय कुमार आजाद का कहना है कि दोनों कार्यालयों में पहले भी राशि में अंतर देखी गयी है. अक्तूबर 2014 में निगम के मुख्य प्रशासक को कहा गया था कि इस अंतर को दूर कर लिया जाये. मुख्य प्रशासक ने अपनी रिपोर्ट भी सात अप्रैल को दी है.
उनकी रिपोर्ट पर जब ध्यान से मिलान किया गया, तो टैक्स की राशि का पता नहीं चल पाया. टैक्स की राशि निगम के पास जा रही थी, लेकिन वे इसका अपने लेखा में संधारण नहीं करते हैं व इस बारे में अनभिज्ञता भी प्रकट करते हैं.
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