पटना : भवानी प्रसाद मिश्र हमारे लिए कवि नहीं, पिता थे. वे गांधीवादी थे या नहीं, मुझे मालूम नहीं, हां एक अहिंसक पिता थे. साधारण परिवार में जैसे हर एक पिता अपने बच्चों की परवरिश करते हैं, वैसा ही.
कवि का वजन उन्होंने कभी घर में नहीं आने दिया. फिल्मों में गीत लिखे, लेकिन कभी इसकी चर्चा तक घर में नहीं हुई. हमारे घर में कभी कोरा कागज नहीं आया. यह परंपरा आज भी चल रही है. कोरा कागज पर लिखते हुए मुझे डर लगता है. जब तक कागज पर एक ओर लिखा न हो, कलम नहीं चल पाती है. ये बातें पर्यावरणविद अनुपम मिश्र ने शनिवार को एएन सिन्हा इंस्टीट्य़ूट में कहीं.
मौका था ओरियंटल कॉलेज, पटना सिटी के हिंदी विभाग की ओर से ‘भवानी प्रसाद मिश्र : जीवन, सहजता एवं प्रतिरोध के कवि’ पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का. उन्होंने कहा कि मेरे पिता भवानी प्रसाद मिश्र बस के टिकट पर भी कविता लिखा करते थे. वे पोस्टकार्ड से हमेशा अपने पाठकों से जुड़े रहते थे. उनकी आदत थी कोई चिठ्ठी आयी, तो तुरंत जवाब देते थे.
* बस के टिकट पर भी कविता लिखते थे भवानी प्रसाद मिश्र
‘भवानी प्रसाद मिश्र : जीवन, सहजता एवं प्रतिरोध के कवि’ पर राष्ट्रीय सेमिनार शुरू
स्मारिका का हुआ विमोचन
– मिश्र की कविताएं बोलती हैं
साहित्यकार डॉ रामवचन राय ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र दूसरे सप्तक के कवि हैं. नयी कविता के मैथिली शरण गुप्त के कवि हैं उनकी कविता बोलती है. लक्ष्मण केडिया ने कहा कि सहजता और जीवनमुखी कविता लिखनेवाले भवानी प्रसाद मिश्र सहज कवि थे. मिश्र अपने युग के सर्वाधिक विशिष्ट कवि हैं.
प्रतिरोध चेतना उनमें शुरू से रही थी. कवि आलोक धन्वा ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र ने गणराज्य की नींव में ईंट डाली. गांधी के सक्रिय अनुयायी थे. प्रो अमरनाथ सिन्हा ने कहा कि भवानी प्रसाद मिश्र को पहले न पढ़ कर मैंने बहुत बड़ी चूक की थी. कविता को अनुभव में उतारना चाहते हैं तो रस छंद की जानकारी आवश्यक नहीं है.
अगर कविता को समझना चाहते हैं, तो रस और छंद का ज्ञान होना जरूरी हो जाता है. इस मौके पर आयोजन सचिव आशुतोष पाथ्रेश्वर ओरियंटल कॉलेज, पटना सिटी के प्राचार्य डॉ फैज अहमद, आलोचक खगेंद्र ठाकुर आदि उपस्थित थे.