पटना : मानो तो मैं गंगा मां हूं, ना मानो तो बहता पानी हूं… शहर के काली घाट पर इस गीत को सुरीली आवाज में गाती एक बुजुर्ग महिला अक्सर लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है. करीब 76 वर्ष की पूर्णिमा देवी लंबे अरसे से यहां गाकर अपना और अपने एक मनोरोगी बेटे का पेट पालती हैं.
यह मां की ममता ही है कि इस उम्र में भी बेटे के लिए वह घंटों घाट पर बैठ कर गाती है. बिहार की लता मंगेश्कर कही जाने वाली इस मां की जिंदगी पूरी फिल्मी कहानी की तरह है. पूर्णिमा देवी दार्जलिंग महाकाल मंदिर के पुजारी की बेटी थी. इनकी शादी कोलकाता के फिजिशियन डॉक्टर से हुई. शादी के बाद अपने पति के साथ 1984 में लखनऊ चली गयी. पति की प्रैक्टिस वहां जमने लगी थी.
जिंदगी में सब अच्छा चल रहा था इसी बीच एक दिन पति की हत्या हो गयी. तब तक तीन बच्चे हो गये थे. पति के परिवार वालों ने घर पर कब्जा कर लिया और इन्हें घर से निकाल दिया. दो बेटे और एक बेटी को लेकर वह पटना आ गयी. जिंदगी के इम्तहान यहां भी खत्म नहीं हुए थे.
यहां आने के बाद एक बेटा 13 साल की उम्र में बीमारी से मर गया. परिवार चलाने के लिए शिक्षिका बनी. जिंदगी थोड़ी आगे बढ़ी तो बेटी ने भी साथ छोड़ दिया. वह टीवी सीरियल में काम करने के लिए मुंबई चली गयी. पूर्णिमा कहती हैं कि जब पहली बार मैंने बेटी को टीवी में देखा तो देख कर आत्मा रोने लगी थी. एक परिचित जब उससे मुंबई में मिले, तो मेरे बारे में बताया, बेटी ने मुझे पहचानने से ही इंकार कर दिया. कहा कि मेरी कोई मां नहीं है. यह सुन परिचित भी सन्न रह गये, लेकिन आज भी बेटी को टीवी पर देखती हूं, खुद को समझा रखा है कि वह जहां भी रहे खुश रहे.
प्रदीप साथ रहकर भी नहीं है
पूर्णिमा देवी कहती हैं कि एक बेटा प्रदीप साथ था, उसे भी गाना गाने का शौक था. वह ऑरकेस्ट्रा में गाता था. उसने शादी रचा ली, लेकिन जब उसकी पत्नी ने उसे धोखा दे छोड़ दिया तब से वह अपना मानसिक संतुलन खो बैठा है.
वह साथ रह कर भी नहीं है. न कुछ कहता है और न ही कुछ बोलता है. अब हमारी जिंदगी काली घाट पर ही गुजरती है. ईश्वर ने मेरा सब कुछ छीन लिया, लेकिन मेरा कंठ मेरे साथ है. उसी सहारे जी रही हूं और सिर्फ इसलिए जिंदा हूं ताकि इस बेटे का ख्याल रख सकूं. मुझे चिंता है तो बस इस बात कि मेरे बाद बेटे का क्या होगा.