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पटना : मालखाने का चार्ज लेने से डरते हैं दारोगा
पटना : राजधानी के थानों का हाल बुरा है. मालखाने के हिसाब में घोटाले ही घोटाले हैं. किसी भी अपराध में पकड़े गये आरोपित का सीज किया गया सामान मालखाना प्रभारी जमा नहीं कर रहे, बल्कि उड़ा देते हैं. खास करके जब्त किये हुए नोट, शराब आदि का मालखाने के कागजी रेकाॅर्ड और मालखाने के […]
पटना : राजधानी के थानों का हाल बुरा है. मालखाने के हिसाब में घोटाले ही घोटाले हैं. किसी भी अपराध में पकड़े गये आरोपित का सीज किया गया सामान मालखाना प्रभारी जमा नहीं कर रहे, बल्कि उड़ा देते हैं.
खास करके जब्त किये हुए नोट, शराब आदि का मालखाने के कागजी रेकाॅर्ड और मालखाने के सामान का मिलान करा दिया जाये, तो लाखों के हिसाब में हेर-फेर मिलेगा.
इस बिगड़ी व्यवस्था में कोई भी ‘नया दारोगा’ मालखाने का चार्ज नहीं लेना चाहता है. क्योंकि चार्ज के नाम पर उसे सीजर सूृची तो मिलेगी, मालखाने में वे सामान नहीं मिलेंगे.
नकदी नोट तो बिल्कुल नहीं मिलेंगे. फिर चार्ज लेने पर दो तरह के खतरे सामने होते हैं. इसमें एक जांच में फंसने के और दूसरा सीजर का हिसाब जेब से भरने का. इसलिए राजधानी के कई ऐसे थाने हैं जहां मालखाने का चार्ज लेने और देने में पेच फंसा हुआ है.
इस बिगड़े सिस्टम को सुधारना वरीय पुलिस पदाधिकारियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है. मालखाने का चार्ज रिटायर्ड होने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ती है. ड्यूटी में इनका प्रभार पेचिदा रहता ही है, लेकिन रिटायर्ड होने के बाद चार्ज को लेने और देने में काफी परेशानी होती है. हाल में दीघा थाने का मामला सामने आया था.
यहां से रिटायर्ड दाराेगा मालखाने का चार्ज देने के लिए परेशान थे, लेकिन थाना प्रभारी चार्ज नहीं ले रहे थे. मालखाने का चार्ज नहीं देने के कारण रिटायर्ड होने के बाद विभाग की तरफ से मिलने वाला पैसा भी उन्हें नहीं मिल पा रहा था.
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