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धान की रोपनी कौन कहे, बिचड़ा बचाना हो रहा मुश्किल
मॉनसून की बेरुखी. बारिश के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाये बैठे किसान भूजल स्तर में गिरावट कृषि कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव मसौढ़ी : पूर्व से ही अनुमंडल के तीनों प्रखंडों के किसान मॉनसून पर पूरी तरह निर्भर रह अपनी खेती करते आ रहे है. लेकिन हाल के कुछ वर्षों से मॉनसून किसानों को […]
मॉनसून की बेरुखी. बारिश के इंतजार में आसमान की ओर टकटकी लगाये बैठे किसान
भूजल स्तर में गिरावट कृषि कार्य पर प्रतिकूल प्रभाव
मसौढ़ी : पूर्व से ही अनुमंडल के तीनों प्रखंडों के किसान मॉनसून पर पूरी तरह निर्भर रह अपनी खेती करते आ रहे है. लेकिन हाल के कुछ वर्षों से मॉनसून किसानों को दगा दे रही है. मॉनसून के फेल होने या देर से आने से किसानों की धान की फसल प्रभावित तो ही रही है.
आने वाले अगले फसल की भी लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं हो पाती. आमतौर पर किसान रोहनी नक्षत्र में धान के बिचड़े गिराने का कार्य करते है, लेकिन खेतों में नमी का आभाव व भूजलस्तर में लगातार गिरावट की वजह से इन किसानों को कृषि कार्य मसलन धान की रोपनी कौन कहे इनके द्वारा डाले गये बिचड़े को बचाना ही चुनौती बन गया है. अब तो धान के बिचड़े ( नर्सरी ) वाले खेतों में भी दरार पड़ने लगे है और बिचड़ा लाल होने लगा है .
धनरूआ प्रखंड के कोल्हाचक निवासी प्रगतिशील किसान धर्मवीर प्रसाद का कहना है कि अद्रा नक्षत्र शुरू हो गया है. इस नक्षत्र में धान की रोपनी शुरू हो जाती है, लेकिन मॉनसून के नहीं आने से कोई भी किसान धान की रोपनी नहीं कर पाया है. नतीजतन खेतों में धूल उड़ रहे है. उन्होंने बताया कि रोहनी व मृगशिरा नक्षत्र समाप्त हो गया, अद्रा शुरू हो गया, लेकिन मॉनसून के नहीं आने की वजह से लोगों के द्वारा दिये गये धान के बिचड़े को बचाना भी चुनौती हो गयी है.
लोग किसी तरह अपने निजी पंप सेटों की बदौलत बिचड़े को बचाने का प्रयास कर रहे है, लेकिन उसमें उन्हें कितनी सफलता मिल पाती है. यह तो भविष्य ही बतायेगा.
नका मानना है कि अगर दो चार दिनों में बारिश नहीं होती है, तो किसानों के बिचड़े भी खत्म हो जायेगा और वे बिचड़े के अभाव में बारिश होने के बावजूद धान की फसल नहीं लगा पायेंगे. इधर मसौढ़ी के नहवां निवासी संजय कुमार का कहना था कि बारिश की देरी ने किसानों के होश उड़ा दिये हैं. अभी तक एक बार भी झमाझम बारिश न होने से किसान खासे परेशान है. वहीं गर्मी के तीखे तेवर भी अपनी जलवा दिखाने से पीछे नहीं है. हालांकि दो चार दिनों से आसमान पर बादल तो छा रहे है लेकिन बिन बरसे ही उड़ जाते है, ऐसे में किसान अपनी धान के बिचड़े (नर्सरी) को लेकर चिंतित हो उठे है.
पुनपुन चिनियाबेला के अंजनी कुमार सुदन का कहना था कि आमतौर पर पूर्व के वर्षों में गंगा दशहरा के आसपास से बारिश का दौर शुरू हो जाता था ,लेकिन इस वर्ष अब तक एक भी अच्छी बारिश नहीं हुई है. उनका कहना था कि कुछ किसानों ने बारिश के इंतजार में धान के बिचडे भी नहीं डाले है, इस स्थिति में आगे मॉनसून की बारिश हो भी जाती है तो उनके लिये धान का फसल लगाना मुश्किल हो जायेगा.
अनुमंडल के तीनों प्रखंडों में 20 हजार हेक्टेयर धान की रोपनी का है लक्ष्य
अनुमंडल के तीनों प्रखंडों मसौढ़ी, धनरूआ और पुनपुन प्रखंडों में इस वर्ष धान की फसल लगाने का लक्ष्य 20 हजार हेक्टेयर रखा गया है. अनुमंडल कृषि पदाधिकारी राजीव रंजन कुमार ने बताया कि मॉनसून के नहीं आने व भूजलस्तर के नीचे चले जाने से किसान काफी परेशान है.
उन्होंने बताया कि मॉनसून की देरी की वजह से अब तक धनरूआ और पुनपुन में 60 प्रतिशत व मसौढ़ी में 50 प्रतिशत किसानों के द्वारा धान के बिचड़े (नर्सरी) लगाये जा चूूके है. पानी की वजह से उनके बिचड़े भी लाल होने लगे है.
मॉनसून की भरपाई के लिये जमीनी स्तर पर सरकार द्वारा किया गया प्रयास नाकाफी
मॉनसून के नहीं आने या विलंब से निपटने के लिये केंद्र व राज्य सरकार ने जल संरक्षण के लिए विगत दो तीन वर्षों में कई उपाय किये है.
ताकि इस विकट परिस्थिति में किसानों को पानी उपलब्ध हो सके. इसके लिए गांव-गांव में पईन की उड़ाही, तालाब का निर्माण जैसे कई कार्य कराये जा चुके है, लेकिन जल संरक्षण के इस प्रयास को यहां केवल खानापूर्ति कर छोड़ दिया गया है, जिससे इस योजना का लाभ अभी तक किसी किसानों को मिलता नजर नहीं आ रहा है.
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