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बिहार : सावधान! अनफिट पहियों पर दौड़ रहीं एक्सप्रेस ट्रेनें

पटना : भारतीय परिवहन की ‘ लाइफ लाइन ‘ कही जानेवाली रेलवे के परिचालन में संरक्षा मानकों की जबरदस्त अनदेखी की जा रही है. इसके चलते रोजाना हजारों यात्रियों की जान खतरे में रहती है. यह बात और है कि यात्रियों को इसकी भनक तक नहीं होती. लहाल रविवार को जंक्शन से रवाना हुई सुविधा […]

पटना : भारतीय परिवहन की ‘ लाइफ लाइन ‘ कही जानेवाली रेलवे के परिचालन में संरक्षा मानकों की जबरदस्त अनदेखी की जा रही है. इसके चलते रोजाना हजारों यात्रियों की जान खतरे में रहती है. यह बात और है कि यात्रियों को इसकी भनक तक नहीं होती.

लहाल रविवार को जंक्शन से रवाना हुई सुविधा एक्सप्रेस के तमाम कोचों को अनफिट पहियों (ऐसे अनफिट पहिये, जिनमें ट्रैक पर ज्यादा चलने की वजह से छोटे-छोटे कम गहराई के छेद हो जाते हैं या पहिया असमतल हो जाते हैं) के साथ मुंबई के लिए रवाना किया गया. संरक्षा मानकों की अनदेखी कर चलायी जानेवाली ऐसी तमाम ट्रेनें हैं.

ऐसे में दुर्घटनाओं की आशंका कई गुना मौजूद रहती है. राजेंद्र नगर कोचिंग कॉम्प्लेक्स (आरएनसीसी) में ट्रेनों की मेंटेनेंस के दौरान संरक्षा मानकों के साथ अनदेखी होती है. अगर रेलवे लाइन के प्वाइंट पर चक्का का गड्ढा आ गया, तो डिरेल होने की आशंका अधिक रहती है.

चक्काें में गड्ढे कभी भी खतरनाक

जानकारी के मुताबिक वर्ष 2017 में आरएनसीसी (राजेंद्र नगर कोचिंग काॅम्प्लेक्स) में जितने एलएचबी कोच के डिब्बे सप्लाई किये गये, उन सभी डिब्बों में लगे पहिये अब तक दो बार छीले जा चुके हैं.

दरअसल पहियों में पड़े गड्ढों को दूर करने के लिए पहियों को विशेष ब्लेड से समतल किया जाता है, जबकि नियमानुसार ऐसा नहीं होना चाहिए. दरअसल नये और दुरुस्त डिब्बे नहीं होने की वजह से गड्ढे वाले अनफिट पहिया लगे डिब्बे ट्रेन में जोड़े जा रहे हैं. आलम यह है कि संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस के जनरल और स्लीपर डिब्बों के साथ-साथ अर्चना व सुविधा एक्सप्रेस के स्लीपर डिब्बे के चक्काें में गड्ढे होने के बावजूद रोज आ-जा रही है.

डिरेल की आशंका अधिक : आरएनसीसी में मेंटेनेंस होनेवाली सुविधा एक्सप्रेस, अर्चना एक्सप्रेस और संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस को खराब चक्काें के सहारे रेल खंडों पर दौड़ायी जा रही है.

आरएनसीसी में कार्यरत मैकेनिकल कर्मी बताते हैं कि चक्के में गड्ढ़ा हो जाने के बाद डिब्बे में आवाज के साथ जर्क अधिक करता है. इससे स्प्रिंग, एक्सल बॉक्स कवर, कंट्रोल आर्म्स को नुकसान पहुंचता है. इसके मेंटेनेंस में तीन से चार लाख का खर्च बढ़ जाता है. इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो डिरेल का खतरा बढ़ जाता है.

ब्रेक पैड बदलने में भी की जाती है अनदेखी

ट्रेन के प्रत्येक डिब्बों के चक्के में ब्रेक पैड या फिर ब्रेक शू लगाया जाता है, ताकि ब्रेक लेने पर गाड़ी खड़ी हो जाये और सिग्नल क्रॉस नहीं करे. रेलवे का मानक है कि ब्रेक पैड या ब्रेक शू पांच एमएम से पतला हो गया है, तो नया ब्रेक पैड लगाये. लेकिन, ट्रेन मेंटेनेंस में लगे मैकेनिक ब्रेक पैड की मांग करता है, तो आपूर्ति नहीं की जाती है.

कोचिंग कॉम्प्लेक्स के वरीय अधिकारी बताते

हैं कि चक्के में गड्ढा हो या फिर ब्रेक पैड का मामला. इसे मानक तक ही चलाया जाता है. हालांकि ट्रेनों के मेंटेनेंस की हकीकत कुछ और ही है.

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