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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस : घूंघट की आड़ से निकल कर सीख रहीं हारमोनियम व तबला

मसौढ़ी : आठ मार्च हमारे लिए विशेष दिन के रूप में आता है. इस दिवस को महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक उपलब्धियों के रूप में उत्सवी माहौल के साथ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस की अलग पहचान महिला सशक्तीकरण के रूप में भी की जाने लगी है . […]

मसौढ़ी : आठ मार्च हमारे लिए विशेष दिन के रूप में आता है. इस दिवस को महिलाओं की आर्थिक, राजनीतिक एवं सामाजिक उपलब्धियों के रूप में उत्सवी माहौल के साथ अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिवस की अलग पहचान महिला सशक्तीकरण के रूप में भी की जाने लगी है .

महिला सशक्तीकरण को सूबे की सरकार हो या केंद्र की सरकार बढ़ावा देने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है. इसी का नतीजा है कि आज समाज में महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही हैं .पूर्व में जहां पुरुष प्रधान हमारे समाज में महिलाओं को चौका-बर्तन तक ही सीमित कर दिया गया था .

वहीं समय के साथ-साथ इसमें काफी परिवर्तन आया और घर के भीतर तक सीमित रहने वाली महिलाएं अपने चौखट को लांघ कर बाहर निकलीं और आज हर क्षेत्र में पुरुषों से कंधे-से कंधा मिलाकर चल रही हैं. मसौढ़ी में भी लोकलाज की घूंघट से बाहर निकल कर ग्रामीण परिवेश की घरेलू विवाहित दर्जनों महिलाएं गायन व वादन का विधिवत शिक्षा ग्रहण कर रही हैं. वे हारमोनियम और तबला के अलावा ढोलक व नाल बजाना सीख रही हैं.

अनुमंडल के विभिन्न क्षेत्रों की करीब दो दर्जन से ऊपर विवाहित महिलाएं नगर के सती स्थान स्थित भारती संगीत महाविद्यालय संस्थान में हारमोनियम,तबला एवं ढोलक और नाल समेत अन्य वाद्य यंत्रों की शिक्षा बीते चार माह से ले रही हैं . इन्हें सप्ताह में तीन दिन प्रशिक्षण के लिए बुलाया जाता है.रविवार को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है .

मायके वालाें ने अटकाया था रोड़ा, ससुराल वाले दे रहे प्रोत्साहन

संगीत की शिक्षा ले रहीं इन महिलाओं में बरनी रोड निवासी 30 वर्षीया विवाहिता मधुमाला, थाना रोड की 22 वर्षीया पूनम कुमारी, सती स्थान मोहल्ले की 24 वर्षीया अंजू रानी ,नदवां की रोहनी कुमारी एवं रहमतगंज की सुरभि कुमारी समेत दर्जनों महिलाओं ने बताया कि हमलोगों की रुचि पहले से ही संगीत के क्षेत्र में थी. इस क्षेत्र से ही अपने कैरियर की शुरुआत करने की योजना भी बनायी थी ,लेकिन इसमें परिवार के सदस्यों द्वारा रोड़ा अटका दिया गया .

परिजनों का कहना था कि बेटी अगर नाच-गान करेगी तो इसकी शादी में परेशानी होगी .लाख समझाने और आग्रह के बावजूद परिजनों ने इसकी इजाजत नहीं दी . शादी के बाद जब वह ससुराल पहुंची तो अपनी इच्छा पति व ससुराल के लोगों से जाहिर की . पति व ससुराल के लोगों ने वह काम किया जो मायके वालों को करना चाहिए था.

उन्हें संगीत महाविद्यालय में संगीत की शिक्षा ग्रहण करने की अनुमति दे दी . हालांकि, उस वक्त तक ससुराल वालों इनसे यह जानने की कोशिश नहीं की कि संगीत की शिक्षा ग्रहण करने के बाद भविष्य में इनकी क्या योजना है. इस बीच इन महिलाओं द्वारा संगीत की शिक्षा ग्रहण करते चार माह बीत चुके हैं. इन महिलाओं ने ससुराल के लोगों को बताया कि संगीत की शिक्षा पूरी करने के बाद सरकारी विद्यालय में बतौर कला (संगीत ) के रूप में होने वाली कला शिक्षक की नियुक्ति में इस प्रशिक्षण का लाभ मिलेगा.

गौरतलब है कि संगीत के बदौलत इस महाविद्यालय के निदेशक नीरज नंदन भारती समेत आधा दर्जन से ऊपर महिला व पुरूष सरकारी विद्यालयों बतौर शिक्षक के रूप में कार्य कर रहे हैं.

इस संबंध में भारती संगीत महाविद्यालय के निदेशक नीरज नंदन भारती ने बताया कि उनकी संस्था प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से पंजीकृत है .यहां प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रतिभागियों को लिखित परीक्षा पास करने के बाद उन्हें प्रमाणपत्र दिया जाता है .उन्होंने बताया कि फिलवक्त उनके यहां दो सौ छात्र संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ,जिनमें तीस विवाहित महिलाएं हैं.

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