पांच हजार हेक्टेयर में जैविक खेती को चालू वित्तीय वर्ष में दिया जा रहा है बढ़ावा
पटना : राज्य में जैविक लीची के उत्पादन को बढ़ावा दिया जायेगा. लीची न सिर्फ एक प्रमुख फल है, बल्कि बिहार लीची उत्पादन में अग्रणी राज्य भी है. लीची की खेती मुजफ्फरपुर व इसके आसपास के जिलों में बड़े पैमाने पर हो रही है. लीची को अधिक समय तक सुरक्षित व संरक्षित रखा जा सके, इसकी व्यवस्था हो रही है.
इसी कड़ी में जैविक लीची की खेती को बढ़ावा देने की योजना बनायी गयी है. मुजफ्फरपुर के शाही लीची के स्वाद व सुगंध का दीवाना देश व विदेश के लोग भी हैं. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर द्वारा लीची की खेती से संबंधित विशेष अनुसंधान व प्रसार का काम किया जा रहा है. इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य लीची उत्पादन में जैविक कीटनाशक का उपयोग, गुणवत्तायुक्त जैविक फल का उत्पादन और अंतरराष्ट्रीय बाजार में निर्यात कर उत्पादकों की आय में वृद्धि करना है.
सात जिलों में जैविक उत्पादन पर रहेगा फोकस
सात जिलों मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, समस्तीपुर, सीतामढ़ी, वैशाली एवं शिवहर में पांच हजार हेक्टेयर में जैविक खेती को चालू वित्तीय वर्ष में बढ़ावा दिया जा रहा है. अभी राज्य में करीब 32 हजार हेक्टेयर में लीची के बगीचे हैं. जबकि, राज्य में 198 हजार टन लीची का उत्पादन हो रहा है. लीची की खेती में सबसे बड़ी परेशानी यह है कि इसका फल एक सप्ताह से अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रह पाता है. लीची दो माह तक सुरक्षित रह सके इसकी व्यवस्था हो रही है, इससे किसानों को लाभकारी मूल्य मिलेगा और लोग भी अधिक दिनों तक इसका स्वाद ले सकेंगे. सरकार जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए अनुदान भी दे रही है.
लीची के बागों में समय-समय पर उपयोग किये जाने वाले नीम आधारित कीटनाशक, वर्मी कंपोस्ट, बोरॉन, फेरोमैनट्रैप व अन्य बायोपेस्टिसाइड के लिए 5,000 रुपये प्रति हेक्टेयर की दर से सरकार सहायता अनुदान दे रही है. इसके अतिरिक्त उत्पादित लीची को अधिक दिनों तक सुरक्षित रखने के लिए भी योजना स्वीकृत की गयी है. इसके माध्यम से लीची को 60 दिनों तक सुरक्षित रखा जा सकता है.
इससेे किसानों को अधिक मूल्य प्राप्त हो सकेगा. कृषि मंत्री डाॅ प्रेम कुमार ने बताया कि लीची उत्पादक किसान सरकारी योजना का लाभ उठा कर अपनी आमदनी में वृद्धि कर सकते हैं.