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हाल केबी सहाय मध्य विद्यालय का : नाम एक, पर मान्यता अलग-अलग

पटना: नाम एक, पर मान्यता आैर पहचान अलग-अलग. बुनियाद हमारी और नाम दूसरे का. अस्तित्व हमारा और अधिकार दूसरे को. पहला होकर भी, दूसरे को सब कुछ मिला और हमें कुछ भी नहीं. कुछ इसी तरह की कहानी बयां कर रहा है केबी सहाय उच्च विद्यालय शेरूल्लाहपुर, जो पिछले 47 वर्षों से अपने अस्तित्व की […]

पटना: नाम एक, पर मान्यता आैर पहचान अलग-अलग. बुनियाद हमारी और नाम दूसरे का. अस्तित्व हमारा और अधिकार दूसरे को. पहला होकर भी, दूसरे को सब कुछ मिला और हमें कुछ भी नहीं. कुछ इसी तरह की कहानी बयां कर रहा है केबी सहाय उच्च विद्यालय शेरूल्लाहपुर, जो पिछले 47 वर्षों से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. इसका नाम तो एक है, पर स्कूल अलग-अलग हैं. एक की पहचान है, तो दूसरा उपेक्षित है.

किराये के मकान में शुरू किया गया था विद्यालय : वर्ष 1968 में केबी सहाय नाम से शास्त्रीनगर स्थित डाॅ शिवनंदन मंडल के मकान में मध्य विद्यालय की स्थापना की गयी थी. इसमें पहली से लेकर सातवीं तक की पढ़ाई होती थी. इसमें पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या 13 थी. इसके बाद वर्ष 1970 में उसी स्कूल में हाई स्कूल की पढ़ाई होने लगी. मिडिल स्कूल से पास होने के बाद बच्चे हाईस्कूल में दसवीं तक की पढ़ाई करने लगे. वर्ष 1981 में कमेटी को एक एकड़ 20 कट्ठा जमीन भी उपलब्ध करायी गया.

इसके बाद कमेटी द्वारा एक एकड़ जमीन केबी सहाय हाई स्कूल को और पांच कट्ठा जमीन मिडिल स्कूल को और 15 कट्ठा की जमीन महाविद्यालय यानी प्लस टू के नाम की गयी. इसके बाद वर्ष 1989 में सरकार द्वारा हाई स्कूल को राजकीयकृत कर दिया गया अौर वर्ष 2005 से पल्स टू तक की पढ़ाई भी शुरू हो गयी. लेकिन पूर्व में स्थापित मध्य विद्यालय वैसा ही रह गया. इससे केबी सहाय नामक मूल और मातृ विद्यालय आज तक उपेक्षा का शिकार है.
390 में से बस रह गये 10-15 विद्यालय : बिहार में 390 विद्यालयों की स्थापना हुई थी.झारखंड अलग होने के बाद आधे से अधिक विद्यालय झारखंड में चले गये अौर करीब 101 विद्यालय बिहार में रह गये. इनमें 10-15 विद्यालय ही हैं, जाे अब तक संचालित हैं.
इन कारणों से नहीं हुआ सरकारीकरण
पूर्व में मिडिल, सेकेंडरी और हायर सेकेंडरी स्कूल के मंत्री अलग-अलग हुआ करते थे. सेकेंडरी के मंत्री द्वारा केबी सहाय के उच्च विद्यालय का सरकारी करण किया गया. वहीं, मिडिल के मंत्री द्वारा पूर्व में स्थापित केबी सहाय को सरकारी करण की सूची में शामिल नहीं करने से आज तक वह अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है. बाद में स्कूल के शिक्षकों द्वारा सरकारीकरण करने की मांगों को रखने के बाद सरकार द्वारा वर्ष 1971 में अनुदानित विद्यालय के रूप में अनुदान देने का निर्णय लिया गया. इससे वर्ष 1971 से 1992 तक स्कूल को डीए के रूप में शिक्षकों को 18 रुपये और प्राचार्य को 21 रुपये दिये जाने लगे. इसके बाद अनुदान की राशि बंद कर दी गयी. बिहार शिक्षा परियोजना द्वारा विद्यालय को पाठ्य पुस्तकें और छात्रवृत्ति और पोशाक राशि देने का आदेश जारी किया गया है. बावजूद न तो राशि दी जा रही है और न सरकारीकरण किया गया है .
सेवा भाव से पढ़ा रहे शिक्षक
स्कूल इसके लिए लंबी लड़ाई लड़ रहा है. पूर्व के ज्यादातर शिक्षक रिटायर हो चुके हैं. कई बार विभाग से इसके सरकारीकरण की मांग की गयी. पूर्व निदेशक, शिक्षा विभाग द्वारा इस स्कूल को भी सरकारी सुविधाओं से लैस करने की बात कही थी. इससे बच्चों को पुस्तकें, तो मिल रही हैं. पर अन्य योजनाओं का लाभ नहीं दिया जा रहा है. वहीं, शिक्षक बिना वेतन के सेवाभाव से अब तक पढ़ा रहे हैं.
विजय कुमार सिंह, संस्थापक, प्रबंधकारिणी समिति, केबी सहाय
अनुदानित घोषित किये जाने के बाद भी इसे अनुदान की राशि से वंचित किया जा रहा है. वर्तमान में स्कूल में आठ कमरे हैं और बच्चों की संख्या 260 है. इन्हें पढ़ाने वाले शिक्षकों की संख्या घट कर अब सात रह गयी है.
गिरिजा नंदन साहु, प्रधानाचार्य, केबी सहाय मध्य विद्यालय

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