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भाजपा भगाओ रैली : लालू के मसले पर लेफ्ट की गाड़ी ‘लाइन’ पर फंसी

सियासत : माकपा ने कहा-केवल भाषण से भाजपा को परास्त करना मुश्किल, माले ने कहा- शिष्टाचार के नाते भेजी चिट्ठी अजय कुमार पटना : भाजपा भगाओ रैली लालू प्रसाद की थी और लाइन के सवाल पर लेफ्ट का अंतरविरोध सामने आ गया. माकपा जहां रैली से दूर रही, वहीं भाकपा की ओर से महासचिव सुधाकर […]

सियासत : माकपा ने कहा-केवल भाषण से भाजपा को परास्त करना मुश्किल, माले ने कहा- शिष्टाचार के नाते भेजी चिट्ठी
अजय कुमार
पटना : भाजपा भगाओ रैली लालू प्रसाद की थी और लाइन के सवाल पर लेफ्ट का अंतरविरोध सामने आ गया. माकपा जहां रैली से दूर रही, वहीं भाकपा की ओर से महासचिव सुधाकर रेड्डी और डी राजा ने शिरकत की. लालू प्रसाद की खिलाफत की लाइन पर चलने वाली भाकपा (माले) के महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य के संदेश का हवाला दिया गया. लालू को लेकर माले के नजरिये में आया यह बदलाव रेखांकित करने वाला है.
लंबे समय तक लालू प्रसाद के साथ रही भाकपा व माकपा ने बीते विधानसभा चुनाव में स्वतंत्र वाम एकता को मजबूत करने के इरादे से पहल की थी. माले सहित छह लेफ्ट पार्टियों के बीच समन्वय बना और एक हद तक सीटों पर तालमेल भी हुआ था. पर अब ऐसा लगता है कि लेफ्ट पार्टियां अलग-अलग लाइन पर हैं. लालू जब बेहद ताकतवर थे, तब लेफ्ट के विधायकों की टूट होती थी. मंडल के दौर में न सिर्फ वाम विधायकों ने पाला बदल किया, बल्कि उनके जनाधार में भारी क्षरण हुआ था. उससे अब तक ये पार्टियां उबर नहीं सकी हैं.
सबको आना होगा साथ: एक दौर में भाकपा विधानसभा में विपक्ष की बड़ी पार्टी हुआ करती थी. पिछले विधानसभा चुनाव में तो उसे एक भी सीट नहीं मिली. क्या लालू के सहारे ही सीट हासिल करने की रणनीति है?
इस सवाल पर भाकपा के राज्य सचिव सत्यनारायण सिंह कहते हैं कि हमारी लाइन साफ है. अगर भाजपा को परास्त करना है तो सभी वाम धर्मनिरपेक्ष दलों को एक साथ आना होगा. यह सीट हासिल करने से ज्यादा अहमियत वाली बात है. पर माकपा तो इससे अलग है? वह कहते हैं कि वहां अभी टू लाइन स्ट्रगल (दो लाइन का संघर्ष) है. प्रकाश करात और सीताराम येचुरी की दो लाइनें हैं. हम उम्मीद करते हैं कि धर्मनिरपेक्षता की रक्षा की लड़ाई में वह भी साथ आयेगी.
जमीन पर संघर्ष से हारेगी सांप्रदायिकता: लालू के प्रति हमलावर रही माले का स्टैंड क्या बदला है? यह सवाल लेकर जब हमने पार्टी के राज्य सचिव कुणाल से बात की तो उनका कहना था कि हमने शिष्टाचार के नाते लालू प्रसाद को चिट्टी भेजी थी. उन्होंने हमें रैली में शामिल होने को बुलाया था. हम मानते हैं कि चुनावी जोड़-घटाव से आप कोई लड़ाई नहीं जीत सकते. इसके लिए जमीन पर लड़ाई लड़नी होगी. इस हिसाब से गैर भाजपा दलों को नये सिरे से सोचना होगा.
लालू के साथ रहे तो हुआ नुकसान
माकपा मानती है कि लालू स्टाइल में सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती. पार्टी के राज्य सचिव मंडल के सदस्य अरुण मिश्र कहते हैं कि केवल भाषण से सांप्रदायिकता के खिलाफ कारगर लड़ाई नहीं हो सकती. इसके लिए वैकल्पिक राजनीति की जरूरत है. ऐसी राजनीति जो नवउदारवाद की नीतियों से मुकाबला कर सके.
हमने व्यवहार में देखा है कि क्षेत्रीय पार्टियां सत्ता में आने पर उन्हीं नवउदारवादी नीतियों को लागू करने लगती हैं. धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई ऐसी है जिसे महज चुनावी जोड़तोड़ के लिहाज से आगे नहीं बढ़ाया जा सकता. अरुण मिश्र कहते हैं कि लालू प्रसाद के अलावा देश में हम जहां भी क्षेत्रीय दलों के साथ गये, वहां हमें भारी नुकसान उठाना पड़ा. बिहार में इसके चलते हमारा पारंपरिक मासबेस कमजोर हुआ.

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