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टीवी चैनलों व मोबाइल ने लोगों के सोच को बदला
जीवन मे खुशियों के रंग भरने के लिए मनोरंजन के साधनों का अपना विशेष महत्व है. नयी तकनीक के बढ़ते प्रभाव ने मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन लाया है. लोगों की रुचि लगातार नये साधनों की ओर रहती है. आधुनिकता के दौर में सिनेमा घरों में जाकर परिवार के साथ फिल्म देखना अब धीरे-धीरे कम […]
जीवन मे खुशियों के रंग भरने के लिए मनोरंजन के साधनों का अपना विशेष महत्व है. नयी तकनीक के बढ़ते प्रभाव ने मनोरंजन के साधनों में परिवर्तन लाया है. लोगों की रुचि लगातार नये साधनों की ओर रहती है. आधुनिकता के दौर में सिनेमा घरों में जाकर परिवार के साथ फिल्म देखना अब धीरे-धीरे कम हो रहा है.
नवादा (नगर) : मनोरंजन के साधनों में सिनेमाघर प्रमुख रूप से सामने आता है. सिनेमा का सुनहरा अध्याय बायां करनेवाले सिनेमाघरों की स्थिति अब पहले की अपेक्षा बिगड़ रही है. दर्शकों की लगातार घटती संख्या इसका परिचायक है. इसमें लोगोंकी रुचि घट रही है. फिल्म या अन्य कार्यक्रमों को देखने के लिए बढ़ते साधनों के कारण सिनेमा हॉल का क्रेज कम हुआ है.
इंटरनेट के बढ़ते प्रभाव, टीवी चैनलों की भरमार, मोबाइल की आम लोगों तक पहुंच ने सिनेमाघर के प्रति लोगों की सोच को बदला है. नये दौर में सिनेमाघरों तक आनेवाले लोगों की संख्या घटने के लिए कई हद तक व्यवस्था भी जिम्मेवार लगती है.
आमदनी में हुई है कमी : सिनेमा घरों से दर्जनों परिवारों का रोजगार जुड़ा हैं. जिस प्रकार सिनेमा घरों के दर्शकों की कमी हुई है.
इससे रोजगार प्रभावित हो रहा है. सिनेमाघरों की आमदनी की स्थिति लगातार घट रही है. सिनेमा का संचालन करने वाले के मुताबिक 2012 के मुकाबले सिनेमा घरों में दर्शकों की संख्या आधी से भी कम हो गयी है. सिनेमा का संचालन करना अब घाटे का सौदा बनता जा रहा है. सिनेमा घर की व्यवस्था को मेंटेंन करना व कर्मचारियों की सेलरी आदि खर्च करने के बाद भी दर्शकों का रुझान सिनेमा घरों की ओर नहीं दिखता है.
मोबाइल का असर : मोबाइल पर इंटरनेट का प्रभाव काफी बढ़ा हैं. इसके कारण हर हाथ में बातचीत का साधन के साथ मनोरंजन का साधन भी पहुंच गया है. लोग आसानी से अपने मनपसंद फिल्मों को मोबाइल के माध्यम से देख पाते हैं. इंटरनेट एक ऐसा साधन बना है, इसमें पायरेसी कर चिप के माध्यम से 10 से 15 रुपये में पांच से छह फिल्में लोड करा लेते हैं और घरों में बैठ कर परिवार के साथ देखते हैं.
दर्शक वर्ग बदला : सिनेमा हॉल तक अब ऐसे दर्शक ही पहुंच पा रहे हैं जो अब भी टीवी, मोबाइल या अन्य मनोरंजन के साधनों का इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं. खास कर कुछ चर्चित फिल्मों को छोड़ दें तो लगभग फिल्मों में अब एक विशेष वर्ग के दर्शक वर्ग ही इन फिल्मों के मुख्य दर्शक होते हैं. अच्छे परिवारों के लोग व्यवस्था में कमी या छेड़छाड़ जैसी घटनाओं के कारण भी सिनेमाघरों तक जाने से बचते दिखते हैं.
क्या कहते हैं हॉलवाले
सिनेमा हॉल संचालित करना काफी मुश्किल होता है. दर्शक लगातार कम हो रहे हैं. पिछले वर्षों की तुलना में यह संख्या कम हो रही है. सरकार के टैक्स के साथ, सिनेमा हॉल के रखरखाव, स्टाफ का वेतन आदि महंगा पड़ता है. यदि पायरेसी पर रोक नहीं लगायी गयी तो सिनेमा हॉल बंद करने की स्थिति आ सकती है.
राजेंद्र सिंह, संचालक नीभा टॉकिज
इंटरनेट के कारण पायरेसी बढ़ी है. सीडी या चिप में लोगों को आसानी से 10 से 20 रुपये में फिल्में मिल जाती है. इसका मजा वे घर में परिवार के साथ ले लेते हैं. सिनेमा घरों में हर फिल्म सुल्तान जैसी फिल्में नहीं लग सकती, जिसमें दर्शकों की भीड़ आयेगी. हालात में सुधार नहीं हुए तो सिनेमा हॉल के बंद होने का सिलसिला जारी रहेगा.
संतोष भट्ट, संचालक, विजय सिनेमा
बंद हुए कई सिनेमाघर
मनोरंजन के इस साधन का असर घटने का कारण है कि जिले में संचालित हो रहे पवन टॉकिज ,सीमा टॉकिज जैसे सिनेमा हॉल बंद हो गये. कभी जिले में 12 सिनेमा हॉल संचालित होते थे. अब इसकी संख्या मात्र चार रह गयी है. इसमें से तीन जिला मुख्यालय में व एक हिसुआ मे संचालित हो रहा है.
पायरेसी का बढ़ा है प्रभाव
पायरेसी के कारण भी सिनेमाघरों तक लोगों की पहुंच कम हो रहा है. वीडियो पायरेसी के कारण लोगों को आसानी से रिलीज के साथ ही फिल्में नेट के माध्यम से उपलब्ध हो जाती है. सस्ते दरों पर मिलने वाली यह सुविधा भले ही गैरकानूनी है, लेकिन इसके प्रति लोगों को आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा है.
सिनेमाघरों में फिल्म देखने के लिए चार से पांच घंटे का समय लोगों को बीतानापड़ता है. समय के अभाव के कारण भी लोग सिनेमा घरों से दूर होते जा रहे हैं. चैनलों के बढ़ते प्रभाव के कारण इनमें भी आपसी प्रतिस्पर्धा दिखती है. फिल्म रिलीज के कुछ दिन बाद ही चैनलों पर प्रसारित किये जाने के कारण भी लोगों का रुझान सिनेमा घरों से कम होता जा रहा हैं.
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