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Flood in Bihar: बागमती व गंडक नदी का पानी खतरे के निशान से ऊपर, जिला मुख्यालय से 20 गांवों का संपर्क टूटा

Flood in Bihar: नेपाल में लगातार हो ही बारिश के बाद क्षेत्र से होकर गुजरने वाली सिकरहना, दुधौरा, बंगरी, तिलावे नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो गयी है. सिकरहना नदी के सुंदरपुर घाट पर बना चचरी पुल पानी की तेज धार में बह गया. जिससे जिला मुख्यालय से 20 गांवों का संपर्क टूट गया है.

मुजफ्फरपुर. नेपाल समेत उत्तर बिहार के जलग्रहण क्षेत्रों में हो रही बारिश से बागमती नदी खतरे के निशान के ऊपर चली गयी है. गंडक व बूढ़ी गंडक के जलस्तर में भी वृद्धि हुई है. जिले के पूर्वी इलाके औराई, कटरा व गायघाट में लोग दहशत में हैं. शुक्रवार की दोपहर तक बागमती के जलस्तर में डेढ़ मीटर की वृद्धि होने से नदी कटौझा में खतरे के निशान से 80 सेमी तो बेनीबाद में 70 सेमी ऊपर पहुंच गयी. हालांकि, दोपहर बाद से इसके जलस्तर में मामूली कमी आने की बात कही जा रही है. इधर, बूढ़ी गंडक का बहाव तेज हो गया है.

गंडक नदी के जलस्तर में भी वृद्धि

अखाड़ा घाट में पानी के साथ जंगली घास बह कर आ रही है. झील नगर की तरफ पानी बढ़ रहा है. जल संसाधन विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, नेपाल में अधिक बारिश होने से शुक्रवार की दोपहर तक वाल्मीकिनगर बराज से 1.42 लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया. बराज से दो दिन लगातार पानी छोड़े जाने से गंडक नदी के जलस्तर में वृद्धि हो रही है. गंडक नदी का जलस्तर जिले के रेवा घाट में खतरे के निशान (54.41 मीटर) से 79 सेमी नीचे 53.62 मीटर पर बह रही है.

सिकरहना नदी के सुंदरपुर घाट पर बना चचरी पुल बाढ़ के पानी में बहा

पूचं. नेपाल में लगातार हो ही बारिश के बाद क्षेत्र से होकर गुजरनेवाली सिकरहना, दुधौरा, बंगरी, तिलावे नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो गयी है. सिकरहना नदी के सुंदरपुर घाट पर बना चचरी पुल शुक्रवार को सुबह पानी की तेज धार में बह गया. किसी के हताहत होने की सूचना नहीं है. अब नदी के उस पार की चार पंचायतों फुलवार उत्तरी, फुलवार दक्षिणी, रोहिनिया, पंचरूखा पूर्वी सहित मोतिहारी प्रखंड के कई गांवों का प्रखंड व जिला मुख्यालय से संपर्क टूट गया है. सभी गांवों के लोगों का आवागमन का एक मात्र सहारा नाव ही रह गयी है.

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दो बार हो चुकी है इस घाट पर नाव दुर्घटना

सुगौली होकर मोतिहारी जाने की मजबूरी है. जानकारी के अनुसार प्रत्येक वर्ष ग्रामीण लाखों रुपये इकट्ठा कर अपने सपने का पुल (चचरी) बनाते हैं. बाढ़ जलस्तर बढ़ने के बाद चचरी पुल को बहा ले जाती है. फिर अक्तूबर-नवंबर में ग्रामीण श्रमदान करके चचरी का पुल बनाकर आवागमन सुचारू करते हैं. बता दें कि 2000 और 2006 में दो बार इस घाट पर नाव दुर्घटना हो चुकी है. उसमें आधा दर्जन से अधिक की जान जा चुकी है. 2000 में आधा दर्जन तथा 2006 में नाव पलटने से दो व्यक्तियों की मौत हो गई थी. कई लोग लापता हो गए थे.

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