मुजफ्फरपुर : पता नहीं कितने जीवनदाता उसके पास से गुजरे होंगे. रोज दर्जनों, 15 दिनों में सैकड़ों. आत-जाते लोगों से जीवन की गुहार भी लगी. लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा. बीमारी से जूझते हुए जब उसने दम तोड़़ दिया तो उसकी लाश को कचरे के ठेले में रख कर फेंक दिया गया. यह कहानी नहीं. हमारे शहर की तस्वीर है. बात एसकेएमसीएच की है.
यहां परिसर स्थित एक बुजुर्ग महिला पिछले 15 दिनों से बीमार पड़ी थी. उसके शरीर में उठने की ताकत नहीं थी. वह पार्क से ही चिल्लाती, डॉक्टर देखते व आगे बढ़ जाते. सेवा की बात तो दूर रही, किसी के मन में इंसानियत भी नहीं जागा. इलाज के अभाव में जब वह मर गयी तो उसे कचरे की ट्रॉली में ठूंसकर उसे पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया. विडंबना यह रही कि मानवता को शर्मशार करने वाली घटना की जानकारी के बाद भी सभी अनभिज्ञ नहीं रहे. अस्पताल के वरीय अधिकारियों ने ऐसा नहीं होना चाहिए कह कर खुद को जवाबदेही से मुक्त कर लिया.
एसकेएमसीएच के पार्क में 15 दिनों तक तड़पती रही थी बीमार बुजुर्ग महिला
लावारिस शव के लिए कहां गया फंड
विडंबना यह है कि जीते जी उसे कोई डॉक्टर देखने नहीं आया. मरने के बाद भी उसकी लाश को सम्मान नहीं मिला. लावारिस लाश को पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाने के लिए शव वाहन भी अस्पताल प्रशासन ने नहीं दिया. उसे कचरे के ठेले में रख कर पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया. सवाल यह यह है कि लावारिश लाश के लिए जो सरकारी फंड आता है, उसका क्या होता है. अस्पताल में शव वाहन उपलब्ध होने के बाद भी उसका उपयाेग क्यों नहीं किया गया. हालांकि इन सवालों पर स्वास्थ्य विभाग के कोई अधिकारी सही जवाब से मुकरते नजर आये.
अस्पतालों में शव वाहन उपलब्ध है. लावारिस लाश को ले जाने के लिए कचरे के ठेले का इस्तेमाल करना मानवता के विरुद्ध है. एेसा किया गया है तो गलत है.
डॉ ललिता सिंह, सिविल सर्जन
माली के कहने पर भी नहीं आये चिकित्सक
पार्क की देखरेख करने वाले माली कंचन के कहने पर चिकित्सक बीमार महिला का इलाज करने नहीं आये. माली कंचन ने बताया कि पार्क में 15 दिनों से बुजुर्ग महिला पड़ी थी. वह ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी. बस रुक-रुक कर चिल्लाती थी. ऐसा लग रहा था उसे असहाय पीड़ा हो रही है. उसने कई बार उसे देखने के लिए चिकित्सकों से अनुरोध किया. लेकिन कोई उसे देखने नहीं आये. अगर किसी चिकित्सक ने उसे देख लिया होता तो शायद महिला बच जाती.