मुजफ्फरपुर: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पहल पर सर्वोदय ग्राम, कन्हौली में कांग्रेसियों द्वारा स्थापित सार्वजनिक प्राकृतिक चिकित्सा गृह आज धूल फांक रहा है. प्राकृतिक पद्धति (नेचुरोपैथ)से इलाज के लिए कभी यहां तूती बोलती थी. आज महीने में महज 100 से 150 मरीज ही यहां आ पाते हैं. इसकी जद में केंद्र की जीर्ण-शीर्ण अवस्था, संसाधनों की कमी और अव्यवस्था है. कर्मचारियों की भी कमी है. यदि सबकुछ व्यवस्थित रहता तो यह परिसर मरीजों से भरा होता.
विस में गूंजी थी आवाज
गैर सरकारी विकल्प के तहत इस चिकित्सा केंद्र के उत्थान के लिए नगर विधायक सुरेश शर्मा ने 2011 में दो-दो बार विधान सभा में सवाल उठाये थे. विकास के लिए एक करोड़ रुपये की मांग भी की. इसे गंभीरतापूर्वक लेते हुए सरकार ने जिलाधिकारी के माध्यम से जांच भी करवायी. यह रिपोर्ट दे दी गई कि यह संस्थान प्राइवेट है. नतीजतन इसके विकास की फाइल दब गयी.
स्थापना का उद्देश्य
बापू ने प्राकृतिक चिकित्सा में ही आरोग्य का दर्शन किया था. सो, नमक सत्याग्रह के दौरान चंपारण जाने के क्रम में वे बालूघाट स्थित आश्रम में ठहरे थे. उत्तर बिहार की जनता की प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथ) के लिए उन्होंने मुजफ्फरपुर में इस केंद्र की स्थापना की परिकल्पना की. उसे तत्कालीन कांग्रेसी नेता रमा चरण ने अन्य साथियों की मदद से 15 अगस्त 1946 को मूर्त्त रुप दिया. 1950 में इसका निबंधन कराया गया. तत्पश्चात यहां मिट्टी, पानी और वायु से कब्ज, मोटापा, मधुमेह, दमा, बाबासीर, आर्थराइटिस, रक्तचाप, अवसाद, अनिद्रा, गठिया, उदर रोग, चर्मरोग आदि रोगों के इलाज का जो क्रम शुरू हुआ वह आज तक जारी है.
लंबा-चौड़ा है क्षेत्र
16 कट्ठा में अवस्थित इस चिकित्सा केंद्र की 7 कट्ठा जमीन समाजसेवी कौशल सहाय ने दान दी थी. वहीं 9 कट्ठा जमीन खरीदी गई. पहले यहां 10 रोगियों के ही रहने की व्यवस्था थी. 1956 में 12 और वर्तमान में 20 के रहने की व्यवस्था है. इसमें कई निवास के अलावा उपचार में उपयोग के लिए स्नान घर, कटि स्नान घर, एनिमा घर, उपचार घर, भाप घर आदि भी हैं. लेकिन सभी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है.