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मुश्किलों के बीच पढ़ाई का जुनून

मुजफ्फरपुर: विपरीत परिस्थितियों में भी विस्थापित गरीब परिवार के बच्चों में पढ़ कर कुछ कर गुजरने की तमन्ना है. यहां सरकारी स्तर पर शिक्षा की माकूल व्यवस्था नहीं है. इसके कारण निजी स्तर पर ही बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. एक तरफ विस्थापन का दर्द तो दूसरी तरफ गरीबी का दर्द ङोल रहे इन बच्चों […]

मुजफ्फरपुर: विपरीत परिस्थितियों में भी विस्थापित गरीब परिवार के बच्चों में पढ़ कर कुछ कर गुजरने की तमन्ना है. यहां सरकारी स्तर पर शिक्षा की माकूल व्यवस्था नहीं है. इसके कारण निजी स्तर पर ही बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं. एक तरफ विस्थापन का दर्द तो दूसरी तरफ गरीबी का दर्द ङोल रहे इन बच्चों में पढ़ाई का जुनून देख उनके परिजन मासिक शुल्क देकर भी शिक्षा दे रहे हैं. इस क्षेत्र में पढ़ाई के प्रति समर्पित बच्चों व उनके परिजनों की हिम्मत समाज के लिए प्रेरणा देने वाली है. हम बात कर रहे हैं औराई के बेनीपुर गांव के बागमती परियोजना के बांध पर वर्षो से विस्थापन का दर्द ङोल गुजर बसर कर रहे उन परिवारों की, जिनके रहने का कोई ठौर-ठिकाना नहीं है. इन परिस्थितियों के बावजूद इन परिवारों ने बच्चों की पढ़ाई बाधित नहीं होने दी है. आवास व भोजन की समस्याओं के बीच बच्चों को फीस देकर पढ़ा रहे हैं.

बाढ़ में जमींदोज हुए तीन स्कूल
इस क्षेत्र में तीन सरकारी स्कूल हैं. तीनों विद्यालय बाढ़ के कारण जमींदोज हो चुके हैं. एक छोटी सी झोपड़ी में उत्क्रमित मध्य विद्यालय बेनीपुर दक्षिणी को चलाया जा रहा था. सरकारी स्तर पर किराया नहीं मिलने के कारण प्रधानाध्यापिका आशा शर्मा व चार शिक्षक अपने पास से मिलाकर तीन सौ रुपये किराया दे रहे थे. उस झोपड़ी मालिक ने अपनी झोपड़ी खाली करा दी. अब बच्चों के सामने पढ़ने का संकट है.

झोंपड़ी में चलता है स्कूल
जीवाजोड़ के शंभु शरण प्रसाद पांच किमी की दूरी तय कर बांध स्थित शिविर की एक छोटी सी झोपड़ी में बच्चों को पढ़ाते हैं. इसके बदले सौ रुपये मासिक लेते हैं. प्रधान शिक्षिका आशा शर्मा बताती हैं कि झोपड़ी की स्थिति खराब हो गयी थी. मरम्मत के लिए जब झोपड़ी मालिक को कहा गया तो उसने स्कूल चलाने से मना कर दिया. इसके बाद पढ़ाना संकट हो गया है. इस संबंध प्रखंड शिक्षा पदाधिकारी मीना कुमारी को अवगत करा दिया गया है. मीना कुमारी वैकल्पिक व्यवस्था होने तक जनाढ़ मुसहर विद्यालय में बेनीपुर उत्क्रमित विद्यालय शिफ्ट करने की बात कर रही हैं. यदि ऐसा होता है तो बच्चे एक और परेशानी से घिर जायेंगे. उन्हें स्कूल पहुंचने के लिये चार किलोमीटर पैदल चलना होगा.

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