मुजफ्फरपुर: जिले के सैकड़ों दवा दुकानें बिना लाइसेंस के चल रही है. इन दुकानों में जीवन रक्षक दवाओं को रखने के लिए फ्रिज भी नहीं है. ऐसे दुकानों से सेल टैक्स व इनकम टैक्स भी नहीं जाता. सूत्रों की मानें तो शहर के अलावा गांवों में करीब दो हजार से अधिक दुकानें बिना लाइसेंस के ही चल रही है.
इन दुकानों में औषधि एक्ट का पालन नहीं होता. इनके यहां फार्मासिस्ट नहीं होते, लेकिन विभाग की ओर से कभी कोई कार्रवाई नहीं की जाती. जब कोई शिकायत पत्र सिविल सजर्न कार्यालय व डीएम के जनता दरबार में आता है तो विभाग एक-दो दिनों के लिए हरकत में आता है. संबंधित दुकानों की जांच कर कोरम पूरा कर लिया जाता है. इन दुकानों से एक्सपायर दवा बिक रही है या मानक के अनुसार, उसे तापमान में रखा जा रहा है या नहीं, इसकी जांच नहीं होती.
ड्रग इंस्पेक्टर आठ
प्रतिष्ठानों की जांच के लिए विभाग की ओर से आठ ड्रग इंस्पेक्टर बहाल हैं. ये ड्रग इंस्पेक्टर एक महीने तक की योजना सिविल सजर्न को सौंपते हैं. इसमें क्षेत्र व जांच किये जाने का ब्योरा होता है, लेकिन कार्रवाई एक दवा दुकानदार पर भी नहीं होती. बिना लाइसेंस दुकान चलाने वाले लोग अपने स्तर से हर महीने मैनेज करते हैं. बिहार केमिस्ट ड्रगिस्ट एसोसिएशन ने भी कई बार बिना लाइसेंस दुकानों को बंद किये जाने का मुद्दा उठाया था, लेकिन विभाग की ओर से कार्रवाई नहीं हुई.
तीन हजार लाइसेंसी
जिले में पांच हजार से अधिक दवा की दुकानें चल रही है. लेकिन लाइसेंसी दुकानें तीन हजार ही है. इसमें ढ़ाई हजार दुकानें बिहार केमिस्ट ड्रगिस्ट एसोसिएशन के सदस्य है. जिले में रोज एक-दो दवा की दुकानें खुल रही हैं. इसका आंकड़ा नहीं हैं. हालांकि, किस इलाके में कितनी दवा की दुकानें चल रही है, यह जानकारी संबंधित क्षेत्र के ड्रग इंस्पेक्टर को होती है. लेकिन इसका आंकड़ा विभाग के पास नहीं है. बगैर लाइसेंसी दुकानें होल सेल से दवाओं की खरीदारी करती हैं. लेकिन इनके पास सीएसटी व बीएसटी नंबर नहीं होता.
गुमटी को लाइसेंस
दवा दुकान खोले जाने के लिए ड्रग एक्ट के अनुसार कम से कम 120 स्क्वायर फीट का पक्का मकान चाहिए. दुकान में फार्मासिस्ट होना चाहिए. दवाओं के लिए फ्रिज होना चाहिए. लेकिन इन नियमों को धत्ता बताते हुए विभाग ने गुमटी में भी दवा दुकान खोलने का लाइसेंस दे दिया. जानकारों की माने तो जिले में ऐसी लाइसेंसी दुकानों की संख्या 500 से अधिक है. लाइसेंस लेने के पहले ड्रग इंस्पेक्टर संबंधित जगह की जांच करते हैं. उसके बाद उनकी अनुशंसा पर लाइसेंस निर्गत किया जाता है. लेकिन हकीकत में यह जांच नहीं होती. सब कुछ गुपचुप तरीके से हो जाता है.