* विश्व योग सम्मेलन तीसरा दिन
।। राणा गौरी शंकर ।।
मुंगेर : सत्यानंद योग पद्धति जीवन में बदलाव लाने का जरिया है. इससे मनुष्य मन, वचन और कर्म से पूर्ण हो सकता है. विश्व योग सम्मेलन के तीसरे दिन देश विदेश से आये संत व महात्माओं ने अपने-अपने रिसर्च को दुनिया के सामने रखा.
उन्होंने बताया कि योग ही वह साधना है, जिससे हम परम सुख, शांति व समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं. यही कारण है कि फ्रांस के विद्यालयों में सत्यानंद योग पद्धति की शिक्षा को सिलेबस में शामिल किया गया है.
सम्मेलन का तीसरा दिन भी गुरु वंदना से प्रारंभ हुआ. बिहार योग विद्यालय के पीठाधीश्वर परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि मुंगेर आज विश्व के ज्ञान का केंद्र बन गया है और पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है. सत्यानंद योग पद्धति को विश्व भर में माना जा रहा है. यह योग पद्धति मानव के लिए कल्याणमय है.
* धर्म पर आधारित शिक्षा वजिर्त : फ्रांस से आये विद्वान शिक्षाविद् संन्यासी योग भक्ति सरस्वती ने कहा कि फ्रांस में धर्म व अध्यात्म पर आधारित शिक्षा पूरी तरह वजिर्त है. किंतु योग के महत्व एवं उससे होने वाले अलौकिक परिवर्तन को स्वीकारते हुए फ्रांस सरकार ने स्कूलों के सिलेबस में सत्यानंद योग पद्धति को शामिल किया है. इससे बच्चों में सजगता, एकाग्रता व ज्ञान की वृद्धि होगी.
* योग के चार सूत्र उपयोगी : स्वामी माधवानंद
चिन्मय मिशन, रांची के स्वामी माधवानंद ने योग के चार सूत्र कर्म योग, अष्टांग योग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग को जीवन के लिए अत्यंत ही उपयोगी बताया. उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से मनुष्य जीवन में शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिकता को संतुलित करते हुए परम सत्य को प्राप्त करता है. घंटाली योग केंद्र से आये स्वामी सत्यकर्मानंद सरस्वती ने युवाओं के लिए योग के बहुमुखी प्रयोग को विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि कर्मठ के लिए बुढ़ापा और मृत्यु कभी अभिशाप नहीं है.
योग को जीवन शैली के रूप में अपना कर अंतिम अवस्था में सुख की प्राप्ति होती है. योगा रिसर्च फाउंडेशन की संचालिका डॉ स्वामी निर्मलानंद सरस्वती ने सत्यानंद योग पद्धति को मानव जीवन के लिए अमूल्य देन बताया. उन्होंने कहा कि इस योग पद्धति से सजगता का भाव तो प्राप्त होता ही है, सर्वांगिणता से साधना व सिद्धि भी प्राप्त होती है.
बाल योग मित्र मंडली के बच्चों ने मस्तिष्क के संदर्भ में जो अध्ययन किया उससे बच्चों में सूचनातक शक्ति का विकास हुआ है. योग के आसन, प्राणायाम का गर्भवती महिलाओं पर रिसर्च में यह प्रमाणित हो चुका है कि गर्भवती मां व गर्भस्थ शिशु पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. तीसरे दिन के प्रथम सत्र में देश-विदेश के 10 हजार से अधिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया.
* फ्रांस के स्कूलों में होगी सत्यानंद योग पद्धति की पढ़ाई
* आसन व प्राणायाम का गर्भवती महिलाओं व उनके गर्भ में पल रहे बच्चे पर भी सकारात्मक प्रभाव
आनंद का चरम बिंदु है योग
– तीसरा विश्व योग सम्मेलन का दूसरा दिन
मुंगेर : मंगल कामना और गुरु वंदना के साथ गुरुवार को पोलो मैदान में विश्व योग सम्मेलन के दूसरे दिन की शुरुआत हुई. प्रथम सत्र में लोगों को स्वस्थ रहने, विज्ञान और योग के जुड़ाव और उसके जरिये मानव जीवन के कल्याण का पैगाम दिया गया.
– योग से इंद्रियों को नियंत्रित करने की चेतना आती है : अलेक्स हेंकी
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल शेखर दत्त ने कहा कि सत्य का अन्वेषण और अनुसंधान हमारे जीवन का प्रयास हो. सत्य को प्राप्त कर हम अपने आप को नयी अवस्था में ले जा सकते हैं. अच्छे समाज की कल्पना कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि योग भी एक तरह का विज्ञान है, जो हमें मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखता है. योग आनंद का चरम है.
हमारी परंपरा है योग : दत्त ने कहा कि ब्रह्म हमारे भीतर हैं, हमें यह समझना होगा. हर कोई खुश रहे, निरोग रहे, यही मेरी मंगल कामना है. योग हमारी परंपरा है और इसमें हम सभी को सामान्य रूप से भागीदारी देनी चाहिए. योग हमें जीवन जीने की कला भी सिखाता है. हम सत्य और अध्यात्म के मार्ग पर चलना चाहिए.
जब हम आध्यात्मिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ होंगे, तभी समाज को कुछ दे पायेंगे और एक स्वस्थ और समग्र समाज का निर्माण हो पायेगा. अध्यात्म का भी जीवन में बड़ा महत्व है. ऐसे कई अनुसंधान हुए हैं, जिसमें योग और अध्यात्म का विज्ञान से नाता के बारे मे बताया गया है. इस अवसर पर बिहार योग विद्यालय के प्रमुख स्वामी निरंजनानंद ने मोमेंटो देकर उन्हें सम्मानित किया.
योग और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक : स्वामी विवेकानंद केंद्र के कुलपति डॉ एचआर नागेंद्र ने भारत की आध्यात्मिक शक्ति, आधुनिक विज्ञान में योग का महत्व व विवेकानंद के नजरिये को रखा. उन्होंने कहा कि योग और अध्यात्म एक दूसरे के पूरक हैं. योग व अध्यात्म के जरिये हम ऊर्जा और चेतना के उत्तम स्तर को प्राप्त कर सकते हैं. यहां स्वामी विवेकानंद योग सेंटर बेंगलुरु के अलेक्स हेंकी ने भारतीय ज्योतिष, वेदांत, आयुर्वेद, योग, भौतिक विज्ञान के बारे में विस्तार से बताया.
उन्होंने कहा कि इससे इंद्रियों को नियंत्रित करने की चेतना आती है. पटना हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति नवनीति प्रसाद सिंह ने योग के अपने अनुभव, जीवन में योग का आधार व योग की महत्ता, योग का अध्यात्म से जुड़ाव, योग के चिकित्सीय पहलू पर विचार व्यक्त किये. न्यायमूर्ति आनंद धरमा (नवल किशोर अग्रवाल) ने बिहार योग विद्यालय और रिखियापीठ से अपने जुड़ाव के बारे में बताया.
गुफाएं छोड़ो, जनता को जोड़ो
।। अजय कुमार ।।
मुंगेर : बिहार योग विद्यालय के पीठाधीश्वर स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा है कि आध्यात्मिकता एवं संसारिकता के समन्वय से ही मानव का समग्र विकास होगा. योग सिर्फ आसन, प्राणायाम या व्यायाम नहीं, बल्कि इससे व्यक्तित्व का निर्माण होता है.
विश्व योग सम्मेलन के दूसरे दिन उद्घाटन सत्र में स्वामी निरंजन ने कहा कि जीवन में अध्यात्म व संसारिकता का समन्वय उसी प्रकार जरूरी है, जिस प्रकार पक्षी के दो पंख होते हैं और दोनों ही पंख का महत्व बराबर होता है. उन्होंने कहा कि योग से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक शांति और भावनात्मक संतुलन प्राप्त होता है. साथ ही इससे आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त होती है.
उन्होंने योग को विस्तार से समझाते हुए कहा कि योग का अर्थ कदापि सांसारिक दायित्व से दूर होना नहीं, बल्कि उसके समीप जाना है. भारत की परंपरा साधु,संत व ऋषियों की परंपरा रही है, जहां साधना का लाभ समाज को समर्पित करने का है. उन्होंने कहा कि जब महर्षि दयानंद ने अपने गुरु से हिमालय पर्वत पर जाकर साधना करने की अनुमति मांगी थी, तो गुरु ने कहा था कि तुम्हारी साधना का प्रकाश हिमालय की कंदराओं में कुंद हो जायेगा.
इसलिए तुम चौराहे पर खड़ा होकर अपनी साधना करो, ताकि उसका प्रकाश चारों ओर से आनेवाले लोगों को मिल सके. यही सच्ची साधना होगी. स्वामी निरंजनानंद ने कहा कि मानव मन की ऊर्जा चारों और छितराई रहती है. यदि इसे हम एक बिंदु पर संकलित करें, तो आंतरिक जीवन का विकास होगा और वह विकास मानव समाज के लिए सुख, शांति व संपदा प्रदान करेगा.
.. और आनंद में झूम उठा पूरा पंडाल
मुंगेर : विश्व योग सम्मेलन के कार्यक्रम स्थल पोलो मैदान में सम्मेलन के दूसरे दिन गुरुवार को आनंद और अध्यात्म का विराट स्वरूप उस समय देखने को मिला जब गुरु के आनंद में जय बोलो श्री गुरुदेव की.. संकीर्तन शुरू हुआ.
पंडाल में उपस्थित सारे लोग आनंदित होकर मस्ती से झूम रहे थे. उनका हौसला अफजाई तथा उनको आनंद के चरम बिंदु पर ले जाने के लिए उनका साथ दे रहे थे स्वामी निरंजनानंद. जब जय बोलो श्री गुरु देव की.. तथा शिव गुरु की महिमा अपरंपार है, शिवानंद और सत्यानंद की महिमा गाओ.. संकीर्तन हो रहा था, उस समय वहां का दृश्य देख कर अलौकिक अनुभूति हो रही थी.
सारे लोग एकाग्रचित हो दिन दुनिया से बेखबर अध्यात्मिक दुनिया में मस्त थे. गुरु के प्रति भक्ति, प्रेम आस्था, समर्पन और एकाग्रचितता के दर्शन और अनुभव वहां पर हो रहा था.
गेरुआ, पीला, सफेद और रंगबिरंगे वस्त्रों में पहुंचे देशी–विदेशी योग प्रेमी अध्यात्म और भारतीय दर्शन तथा गुरु परंपरा की इंद्रधनुषीय छटा बिखेर रहे थे. कोई हौले–हौले थिरक रहा था, तो कोई ताली की ताल पर अपने को गुरु के और करीब ले जा रहा था. लोग आनंद विभोर हो गुरु की महिमा का बखान कर रहे थे तथा गुरु वंदना के जरिये उस नैसर्गिक आनंद की प्राप्ति कर जीवन को आनंदित कर रहे थे.
परिचय एक नजर में
– स्वामी शिवानंद सरस्वती
स्वामी शिवानंद सरस्वती दशनामी संन्यास परंपरा के प्रणोता थे. उन्होंने वेदांत, योग एवं अध्यात्म को जन–जन तक पहुंचाने के लिए 300 से अधिक पुस्तकें लिखीं. उन्होंने योग को एक ऐसे जीवन उपयोगी विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया, जिसे हर व्यक्ति सरलता से अपने जीवन में आत्मसात कर सके.
उन्होंने योग और वेदांत की व्यावहारिक शिक्षाओं को समिश्रित कर योग की प्रभावशाली प्रणाली तैयार की, जिसके माध्यम से उन्होंने हजारों साधकों को दिव्य जीवन जीने के लिए प्रेरित किया. ऋषिकेश आश्रम में रहने वाले स्वामी शिवानंद ने कहा था कि अध्यात्म का लक्ष्य संपूर्ण व्यक्तित्व का विकास है.
– स्वामी सत्यानंद सरस्वती
बिहार योग के प्रणोता स्वामी शिवानंद ने योग को जन–जन तक पहुंचाने का कार्य किया. सन् 1923 में अल्मोड़ा में जन्म लेनेवाले स्वामी सत्यानंद को 6 वर्ष की अवस्था में ही आध्यात्मिक अनुभूति होने लगी थी. 12 सितंबर, 1912 को स्वामी शिवानंद के ऋषिकेश आश्रम में परमहंस संन्यास में दीक्षा ली थी.
वे 1944 से 1956 तक ऋषिकेश आश्रम में ही रहे और 12 वर्ष पूर्ण होने पर वे योग के प्रचार के लिए निकल गये. उन्होंने बिहार योग परंपरा का सृजन किया तथा सन् 1963 में मुंगेर की पावन धरती पर बिहार योग विद्यालय की स्थापना की. उन्होंने मुंगेर में सन् 1973 में प्रथम विश्व योग सम्मेलन किया तथा देवघर के समीप रिखिया पीठ की स्थापना की.