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सर्जिकल आइटम की खरीदारी में ग्राहकों की जेब पर डाका

मुंगेर : जब भी कोई मरीज अस्पताल या निजी नर्सिंग होम में सर्जरी के लिए भर्ती होता है, तो उससे बेड चार्ज, सर्जरी चार्ज, ओटी चार्ज, ओटी असिस्टेंट चार्ज, नर्सिंग चार्ज, एनेस्थिसिया चार्ज आदि का खर्च लिया जाता है. जबकि इलाज में कई आवश्यक दवाइयां व सर्जिकल आइटम्स भी लगते हैं. सर्जिकल आइटम्स का खर्च […]

मुंगेर : जब भी कोई मरीज अस्पताल या निजी नर्सिंग होम में सर्जरी के लिए भर्ती होता है, तो उससे बेड चार्ज, सर्जरी चार्ज, ओटी चार्ज, ओटी असिस्टेंट चार्ज, नर्सिंग चार्ज, एनेस्थिसिया चार्ज आदि का खर्च लिया जाता है.

जबकि इलाज में कई आवश्यक दवाइयां व सर्जिकल आइटम्स भी लगते हैं. सर्जिकल आइटम्स का खर्च देखने में तो बहुत कम होता है. पर इसकी कीमतों का प्रभात खबर ने जब अध्ययन किया, तो आंकड़े काफी चौंकाने वाले मिले. सर्जिकल आइटम्स पर थोक विक्रेता 10 प्रतिशत तक की मार्जिन पर कारोबार करते हैं. वहीं खुदरा में 300-1000 प्रतिशत अधिक कीमत मरीजों से वसूली जाती है.
9.25 रुपये के आइवी सेट के लेते हैं 106 रुपये
सर्जिकल आइटम्स में आइवी सेट, ब्लड ट्रांसमिशन सेट (बीटी सेट), यूरीन बैग, सीरिंज, ग्लब्स, पेशाब के रास्ते में लगने वाला कैथेटर (फॉली ट्रेस), पेपर टेप, कॉटन, गॉज का ज्यादा कारोबार किया जाता है. ये मरीजों को एमआरपी पर बेचे जाते हैं. एमआरपी व वास्तविक मूल्य में 1000 प्रतिशत तक का अंतर होता है. आइवी सेट की कीमत होलसेल में 9.25 रुपये है, उसके लिए दुकानदार 106 रुपये वसूलते हैं. आइवी सेट बहुत ही कॉमन है और यह स्लाइन चढ़ाने के काम में आता है.
कॉटन की खरीद पर भी भारी लूट
अगर कॉटन यानी रूई की बात करें, तो 300 ग्राम के कॉटन के बंडल की होल सेल कीमत 80-90 रुपया है, लेकिन एमआरपी पर 195 रुपये लिखा होने के कारण मरीज को उतना ही पैसा देना पड़ता है. कॉटन की खरीद जब थोक विक्रेता से की गयी तो वहां 9 रुपये लिया गया़ जबकि उसका एमआरपी 105 रुपये है. ऑपरेशन में इस्तेमाल किये जाने वाले ग्लब्स अस्पताल 11 से 12 रुपये में खरीदते हैं. पर मरीजों से इसके लिए 50 रुपये तक लिये जाते हैं. मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिलने तक डॉक्टर और ड्रेसिंग करने वाले दर्जनों ग्लब्स का प्रयोग कर देते हैं.
कैसे चलता है कारोबार
दवा कंपनियों से सर्जिकल आइटम्स पहले सीएनएफ, फिर थोक विक्रेताओं के पास पहुंचता है. इस दौरान इसकी कीमत बहुत कम होती है. थोक विक्रेता 7 से 10 प्रतिशत तक के मुनाफे पर खुदरा व्यापारी को दे देते हैं. इसके बाद खुदरा दुकानदार उसे एमआरपी पर मरीजों को देते हैं. एमआरपी वास्तविक मूल्य से काफी अधिक होता है. आम तौर पर इसका उपयोग करनेवाले अधिकतर अस्पताल ही होते हैं.
एनपीपीए में नहीं होने से चल रहा यह खेल
सर्जिकल आइटम्स नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी (एनपीपीए) के दायरे में नहीं आता है. इस कारण कंपनियां अपने हिसाब से कीमतें तय करती हैं. एमआरपी व वास्तविक मूल्य में काफी अंतर होने के कारण मरीजों को अधिक पैसे देने पड़ते हैं. जानकार बताते हैं कि अगर सर्जिकल आइटम्स को एनपीपीए में शामिल कर लिया जाये, तो मरीजों के ऑपरेशन के खर्च काफी कम हो जायेंगे.

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