हरलाखी (मधुबनी) : ” कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों”. दुष्यंत कुमार की लिखी इस पंक्ति को बिरले ही हकीकत का रूप दे पाते हैं. ये काम तो बस वहीं करते हैं जिनमें परिस्थिति से जूझने का हौसला, कुछ अलग करने की तमन्ना और दुख से हार नहीं मानने का जज्बा हो.
ऐसा ही होनहार हैं हरलाखी के 27 वर्षीय दिव्यांग युवक सुरेंद्र कुमार भगत.
भगवान ने जन्म से ही इनकी दोनों आंखों में रोशनी नहीं दी. इनके अंधेपन पर खुद इनके माता पिता और भाई बंधु भी दुखी थे, पर आज यही लड़का जब कंप्यूटर के की बोर्ड पर अपनी अंगुली चलाता है, तो सामान्य लोग दांतों तले अंगुली काटने को
आंखों में रोशनी मजबूर हो जाते हैं. दिमाग इतना तेज की एक बार फोन पर जिसकी आवाज सुन ली फिर उसकी आवाज इसके जेहन में बस जाती है. दुबारा महीनों बाद यदि वह व्यक्ति इसे फोन करता है, तो आवाज सुन कर ही झट से पहचान लेता है. मोबाइल में किसी का नंबर सेव करना, किसी को फोन करना मानों इसके लिये कुछ परेशानी है ही नहीं.
सुरेंद्र हौसला से भर रहा उड़ान, शिक्षक बनने की है तमन्ना, इग्नू से कर रहा एमए की पढ़ाई
जन्म से िदव्यांग है सुरेंद्र
हरलाखी के विंदेश्वर भगत के दूसरे पुत्र सुरेंद्र की दोनों आंखों में रोशनी जन्म से ही नहीं है. लेकिन, उसने अपनी इस लाचारी को किसी के ऊपर बोझ नहीं बनाया. उसका बड़ा भाई विजय भगत एक छोटा-सी दुकान चलाता है. उसकी मां राम प्यारी देवी गृहिणी है. छोटा भाई मजदूरी करता है. गरीब परिवार में पले बढ़े होने के बावजूद सुरेंद्र