पड़ताल. कोसी बैराज से छोड़ा गया पानी, तो तिलयुगा का बांध रेत की तरह ढहा
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केले के थंब पर गुजारे छह दिन
पड़ताल. कोसी बैराज से छोड़ा गया पानी, तो तिलयुगा का बांध रेत की तरह ढहा मधुबनी : लौकहा प्रखंड की धनछीहा पंचायत का नवका टोल. करीब पांच सौ घर की आबादी. गांव के बीचों बीच होकर बह रही तिलयुगा नदी. हर साल इस नदी की पानी इस गांव के किसानों के लिये अमृत के समान […]
मधुबनी : लौकहा प्रखंड की धनछीहा पंचायत का नवका टोल. करीब पांच सौ घर की आबादी. गांव के बीचों बीच होकर बह रही तिलयुगा नदी. हर साल इस नदी की पानी इस गांव के किसानों के लिये अमृत के समान रहता. लोग इसी से सिंचाई करते. अपने परिवार का भरण पोषण करते. पर पता नहीं इस साल इस गांव के लोगों ने क्या गुनाह किया कि इस साल तिलयुगा नदी ने रौद्र रूप पकड़ लिया. गांव में बाढ़ का ऐसा रौद्र रूप पकड़ा कि लोग कई दिनों तक लोग भूख से जूझते रहे.
गांव के महाबीर मंडल बताते हैं कि नेपाल के कोसी बैराज यहां से 19 किलोमीटर दूर है. इस बार सीधे तौर पर इस गांव के बीच से होकर गुजर रही तिलयुगा नदी में पानी का ऐसा उफान आया कि जगह-जगह से तिलयुगा नदी का बांध टूट गया.
एक पुल से कितना पानी निकलता. अचानक ही पूरे गांव में करीब दस फुट में पानी आ गया. लोगों के बचने का कोई जरिया ही नहीं बचा. न समय बचा और न ही रास्ता. एक नाव तक नहीं थी जिससे लोग निकल पाते. बताते है कि तीस साल बाद बाढ इस प्रकार आयेगी इसका किसी को अंदाजा ही नहीं था. सो एक भी नाव गांव के लोगों के पास नहीं थी. जब चारों ओर से पानी ने घेर लिया, तो जिसका पक्का का मकान था, कुछ लोग वहां चले गये. कुछ ने बांस को पकड़ कर अपना दिन गुजारा. पांच एकड़ में लोगों ने केले की खेती कर रखी थी. यही केला गांव के
करीब पांच सौ से अधिक लोगों के जीवन का जरिया बना. लोगों ने केले के थंब को ही काट कर जोड़ा और गांव के बीच में लगे बांस के बीट (बगीचे) में रस्सी से थंब को बांध कर पांच दिन गुजारा.
बताते हैं कि छह दिन तक लोगों ने केला व बचे खुचे भीगा दाना खाकर जीवन गुजारे. छह दिन बाद जब दूर भूतहा चौक से कुनौली जाने वाले बांध पर राहत कैंप चलाने की जानकारी मिली, तो कुछ लोग वहां पर खाना लाने गये. पर दूसरे गांव के छुटभैया नेताओं ने गाली गलौज भगा दिया. दुबारा नहीं गये. अब तक गांव में सरकारी स्तर पर राहत नहीं पहुंच सकी है.
भाजपा नेता ने दिया चावल तो सात दिन बाद बना खाना
जिस समय हम गांव में थे. उसी समय भाजपा के प्रदेश महासचिव डीएन मंडल राहत का सामान लेकर पहुंचे. उनके पहुंचने की जानकारी जैसे ही लोगों को हुई पूरा गांव एक दरवाजे पर उतर गया. बच्चे, औरत बूढे सभी बेसब्री से मानों राहत का इंतजार कर रहे थे. भाजपा नेता ने दो बोरी चावल, चूड़ा, गुड़, दाल, गैस सहित खाना बनाने का अन्य सामान मुहैया कराया. सामान मिलते ही पूरा गांव खाना बनाने में जुट गया. मानों उन्हें भय था कि कहीं कोई इस चावल को उनसे छीन न ले. देखते ही देखते सक ही जगह पर पूरे गांव का खाना बनना शुरू हुआ और लोगों ने सात दिन बाद पेटभर खाना खाया.
भीगा चावल व कच्चा केला खाकर गुजारे पांच दिन
महावीर कहते हैं कि दो दिनों तक तो लोग अपनों को बचाने व खोज-खोज कर उन्हें अपने पास रखने, रहने के लिये थंब को जोड़ने में गुजारे. किसी को भूख का एहसास ही नहीं हुआ. दो दिन बाद जब भूख से पेट में दर्द व ममोड़ देने लगा, तो दाना पानी की खोज शुरू हुई. पर अधिकांश लोगों के घरों में तो पांच से सात फुट तक पानी था. फूस के घरों के नीचे से मिट्टी तक बह गयी थी. खाना या अनाज कहां से मिलता. जिनके घर पक्के के थे और छज्जी या ड्राम में रखा अनाज था, वह भी पानी में भीग गया. लोगों ने भीगे चावल को ही खाना शुरू किया. पर लोग अधिक, अनाज कम. यह भी कम पड़ गया. लोग केले के बगान से कच्चा केला तोड़-तोड़ कर लाने लगे. किसी के हाथ चार केले लगे, तो किसी के हाथ दो. मजबूरी में कच्चा केला ही खाकर लोगों ने दिन गुजार दिये.
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