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गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न, बार-बार टूट रहा तटंबध

– वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नहर पुनर्स्थापना कार्य योजना की शुरूआत की थी – विभागीय अधिकारियों से मिल कर संवेदकों ने काम के नाम पर की खानापूर्ति – बार – बार टूटते रहे हैं जिले में नहरों के तटबंध मधेपुरा : गुरूवार को जिले के आलमनगर प्रखंड में कारूबाबा थान के निकट […]

– वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नहर पुनर्स्थापना कार्य योजना की शुरूआत की थी
– विभागीय अधिकारियों से मिल कर संवेदकों ने काम के नाम पर की खानापूर्ति
– बार – बार टूटते रहे हैं जिले में नहरों के तटबंध
मधेपुरा : गुरूवार को जिले के आलमनगर प्रखंड में कारूबाबा थान के निकट नहर के टूट जाने से मक्के और गेहूं की फसल पूरी तरह डूब गयी. हालांकि सिंचाई विभाग ने देर रात नहर की मरम्मत कर पानी के बहाव को रोक दिया.
इस घटना के ठीक चार दिन पहले दस जनवरी को बिहारीगंज के मधुकरचक पंचायत में चौसा वितरणी नहर टूट गया था. हैरत की बात है कि जनता की गाढ़ी कमाई में से करोड़ों रूपये खर्च कर कोसी क्षेत्र में नहरों की मरम्मत ही नहीं बल्कि पुनर्स्थापन कार्य कराया गया. पर स्थिति जस की तस है.
नहर पुनर्स्थापन कार्य में भारी पैमाने पर गड़बड़ी की गयी. गड़बडि़यों से संबंधित खबर कई बार प्रकाशित की गयी थी. अधिकारियों का जवाब हर बार यही होता कि काम गुणवत्तापूर्ण हो रहा है. सवाल यह है कि काम अगर गुणवत्तापूर्ण हुआ तो नहर का तटबंध टूटता क्यों है? वर्ष 2011 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नहर पुनर्स्थापना कार्य योजना की शुरूआत की थी. उन्होंने वीरपुर में विशाल आमसभा कर कार्यारंभ कराया था. करीब 753 करोड़ की योजना में बराज के पास कोसी नदी से सिल्ट हटाना, कोसी निरीक्षण भवन बनाना और पूर्वी नहर प्रणाली के अंतर्गत आने वाले सभी नहरों की पुनर्स्थापना करना आदि शामिल था. नहर के काम के लिए ग्लोबल टेंडर किया गया. काम जेकेएम कंस्ट्रक्शन को मिला. कार्य 31 मार्च 2012 तक पूर्ण होना था.
कार्य पूरा करने की खानापूर्ति : मधेपुरा जिले में ही नहर पुनर्स्थापन कार्य करोड़ों रूपये के उठाव हुए. फाइल पर काम पूरा भी हो गया. विभागीय अधिकारी की मिलीभगत से संवेदक मालामाल हो चुके हैं. लेकिन किसान नहर के जगह-जगह टूटने की वजह से फसल खराब होने का दंश झेलते रहते हैं.
मुरलीगंज डिवीजन में 67 करोड़ से हुई मरम्मत: मुरलीगंज नहर डिवीजन में 67 करोड़ की राशि से कार्य होना था. काम टुकड़ों में पेटी कांट्रैक्टर को दे दिया गया. अगर राज्य सरकार की सोच के अनुसार पचास फीसदी कार्य भी हुआ होता तो सचमुच नयी कोसी का निर्माण हो जाता लेकिन विभाग के भ्रष्ट अधिकारी और संवेदकों ने इस योजना को पलीता लगा कर अपनी झोली भर ली.
लेकिन नहीं बदली तसवीर: नतीजा यह है कि नहरों की स्थिति में जरा सा ही फर्क आया है. अब भी टूटे नहर से पानी का रिसाव आम बात है. जगह – जगह नहर के तटबंध टूटने की सूचना मिलती रहती है. छोटे स्तर पर टूटने पर मामले को वहीं रफा दफा कर दिया जाता है.

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