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गांव की गलियों में खनकने लगे पैकरों के घुंघरू

गांव की गलियों में खनकने लगे पैकरों के घुंघरू अलीगंज . मुहर्रम की सातवीं तारीख से ही शहरों एवं गांवों की गलियों पैकरों की घुंघरू की आवाज सुनाई देने लगी है और बुधवार से ही उनके पैंरो की घुंघरू खनकने लगी है. विभिन्न ईमामबाड़ो से फातिहा व नियाज कराने के बाद पैकर घुंघरू की खनक […]

गांव की गलियों में खनकने लगे पैकरों के घुंघरू अलीगंज . मुहर्रम की सातवीं तारीख से ही शहरों एवं गांवों की गलियों पैकरों की घुंघरू की आवाज सुनाई देने लगी है और बुधवार से ही उनके पैंरो की घुंघरू खनकने लगी है. विभिन्न ईमामबाड़ो से फातिहा व नियाज कराने के बाद पैकर घुंघरू की खनक से शहर सहित गांव की गलियों और सड़कों पर आवाज गुंजने लगी है. जानकारी के अनुसार हजरत इमाम हुसैन की याद में लोग पैकर बन कर शहर एवं गांवों के इमामबाड़ों का भ्रमण करते हैं या अली या हुसैन की नारे भी लगाते चलते है. यह सिलसिला मुहर्रम की दशवीं तारीख तक चलती है. ऐसी मान्यता है कि जिन लोगो की मुरादे पूरी होती है, वह पैकर बनते है. मुहर्रम की पहली तारीख से ही पैकर बनने वाले लोग बिना चप्पल पहने खुले पैर चलने अभ्यास करते है. पैकर बनने के बाद सभी ईमामबाड़ो का भ्रमण करते है. मौलाना ने बताया की मुराद पूरी होने के लिए लोग कबुलति करते है. उनलोगों में से ही कुछ लोग पैकर भी बनते है. कुछ लोग दो बार कबुलती के रूप में पूरा करते है तो कुछ लोग सारी उम्र पैकर बनने का इरादा करते है. ग्रामीण इलाके में पैकरों की आते देख छोटे छोटे बच्चे सड़क पर लेट जाते है. जिससे पैकरों द्वारा दुआ दी जाती है.

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