जमुई: जिले के लक्ष्मीपुर प्रखंड क्षेत्र में कई जगहों पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की जाती है. लेकिन सबसे अलग नावाबांध स्थित दुर्गा मंदिर सबसे पुराना है. यहां मनोकामना पूर्ण होती है इसके लिए प्रसिद्ध है. यूं कहें कि यहां जो भी भक्त सच्चे मन से मां की पूजा अर्चना करता है. उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं.
मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि यहां के स्व ठाकुर भूपनारायण सिंह को संतान नहीं था. एक दिन मां ने उन्हें संतान प्राप्ति का स्वपA दिया. बाद में उन्हें पुत्र रत्न की भी प्राप्ति हुई. जिसके बाद उन्होंने सन 1875 में मंदिर की स्थापना करवाया और उसी समय से इस मंदिर में मां की प्रतिमा स्थापित कर धूमधाम से पूजा अर्चना की जाने लगी. बाद में स्व ठाकुर भूपनारायण सिंह के पुत्र स्व ठाकुर जंगबहादुर सिंह तथा आज भी उनके ही परिवार के सदस्य अपने पूर्वजों की परंपरा को बनाये हुए मां की मूर्ति स्थापित कर पूजा अर्चना करते आ रहे हैं. यहां अष्टमी व नवमी के दिन हजारों पाठा की बलि दी जाती है.
दूर-दूर से आते हैं श्रद्धालु
नावाबांध स्थित मां दुर्गा मंदिर में यूं तो प्राय: भक्तों की मन्नत मांगने को लेकर आना जाना लगा रहता है. लेकिन नवरात्र के दौरान इस मंदिर की महत्ता और भी बढ़ जाती है. काफी संख्या में यहां महिला व पुरुष श्रद्धालु मां को दंडवत देने पहुंचते है. मान्यता है कि यहां जो भी श्रद्धालु सच्चे मन से मां को अराध्य करता है. उसकी सारी मनोकामना पूर्ण हो जाती है.
मेला का भी होता है आयोजन
दुर्गा पूजा के मौके पर यहां एक विशाल मेला का भी आयोजन किया जाता है. पूजा समिति के सदस्यों ने बताया कि आसपास के गांव पवना, खिलार,करमटॉड़,दिग्घी,घोरलाही आदि के अलावे सीमावर्ती बांका जिला के भी कई गांवों से लोग मेला देखने यहां आते हैं. मेला के दौरान आदिवासी समुदाय के पुरुष एवं महिलाओं द्वारा प्रस्तुत पारंपरिक नृत्य एवं गीत मेला का आकर्षण को और बढ़ा देता है.