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अनुदानिक मक्का बीज से नहीं निकला अंकुर, किसान हताश

अनुदानिक मक्का बीज से नहीं निकला अंकुर, किसान हताशफोटो नं. 42 कैप्सन-किसान खेत में हतास होकर दिखाते प्रतिनिधि, मनसाही, कृषि अनुदान के तहत वितरित किये जा रहे मक्का बीज में अंकुरण नहीं होने के कारण प्रखंड क्षेत्र के लाभुक किसान की मेहनत से लेकर उनका समय और पैसा सब बरबाद हो रहा है. प्रखंड कृषि […]

अनुदानिक मक्का बीज से नहीं निकला अंकुर, किसान हताशफोटो नं. 42 कैप्सन-किसान खेत में हतास होकर दिखाते प्रतिनिधि, मनसाही, कृषि अनुदान के तहत वितरित किये जा रहे मक्का बीज में अंकुरण नहीं होने के कारण प्रखंड क्षेत्र के लाभुक किसान की मेहनत से लेकर उनका समय और पैसा सब बरबाद हो रहा है. प्रखंड कृषि विभाग द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा योजना के तहत किसानों को दिया गया मक्का बीज उनके लिए सरदर्द साबित हुआ. गौरतलब है कि प्रखंड मुख्यालय के ट्राइसेम भवन में इन दिनों किसानों के बीच मक्का, गेहूं व धान बीज का वितरण किया जा रहा है. इनका वितरण एक एजेंसी द्वारा किया जा रहा है. इसके खिलाफ वर्मी कंपोस्ट के नाम पर बोरे में भर कर मिट्टी बेचने समेत अन्य मामले सामने आये हैं. प्रभात खबर द्वारा इस मामले को प्रमुखता से प्रकाशित करने के बाद से ये चर्चा में है. वहीं एजेंसी द्वारा मुहैया बायोसीड नामक मक्का बीज से किसानों को हुई क्षति ने इस मामले को और उलझा दिया है. इस बाबत कुरसेला के किसान अकबर अली ने प्रभात खबर से अपनी पीड़ा बताते हुए कहा कि उन्होंने एक एकड़ जमीन में अनुदान में मिला मक्का बीज लगाया था. इसमें अंकुरण नहीं के बराबर हुआ है. उन्होंने बताया कि मक्का तीन हफ्ते पहले लगाया था लेकिन खेत में इक्का-दुक्का पौधा ही आया. इस कारण उनकी फसल मारी गयी. समय बीत जाने एवं अन्य खर्चे बरबाद होने के कारण वे हताशा की स्थिति में है. अब तक 51कार्यालय से प्राप्त सूचना के अनुसार कुल लक्ष्य 200 में से अब तक 51 लोगों ने मक्का बीज लिया है. अपुष्ट सूचना के अनुसार ज्यादातर किसानों के साथ यही हुआ है. कहते हैं जानकारकृषि कार्य एवं तकनीकी तौर पर जानकार किसानों का मानना है कि हाइब्रिड बीजों के उत्पादित अंश को पुन: बीज के रूप में इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं है. क्योंकि इसमें 10-20 फीसदी से ज्यादा अंकुरण नहीं होता. परंपरागत बीजों के साथ ऐसा नहीं है. वे पुन: उत्पादन में इस्तेमाल किये जा सकते हैं. अंकुरण नहीं होने का मामला प्रथम दृष्टया इसी श्रेणी में आता है. स्थानीय स्तर पर उत्पादित हाइब्रिड बीज से प्राप्त फसल को पैक कर बीज के रूप में बेचने की संभावना सबसे ज्यादा है. कैसे होता है वितरणवितरण को लेकर संबंधित एजेंसी का चयन विभाग द्वारा किया जाता है. चूंकि किसानों को अपनी लागत बैंक अकाउंट के जरिये वापिस मिल जाती है. इसलिए ज्यादातर लोग इस मामले को लेकर उदासीन रहते हैं. वहीं एजेंसी द्वारा विभागीय मिलीभगत से घटिया खाद-बीज एवं दवा बेचने और सरकारी खजाने में सेंधमारी का खेल चलता रहता है. 20 फीसदी हुआ है अंकुरण प्रखंड कृषि पदाधिकारी एवं विभागीय आकलन के अनुसार बीज में अंकुरण 20 फीसदी है. कार्यालय द्वारा जिला कृषि कार्यालय को इसकी रिपोर्ट भेजी जा रही है. कहते हैं प्रमुखमक्का बीज में अंकुर नहीं निकलने के मामले को लेकर प्रखंड प्रमुख अमित कुमार भारती ने अपनी कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि एजेंसी एवं कृषि विभाग की मिलीभगत से सरकारी राशि की लूट का खेल जारी है. वे किसानों के साथ चल रहे ऐसे कुचक्र को कतई बर्दाश्त नहीं करेंगे. उन्होंने जिलाधिकारी से अविलंब इस मामले में कार्रवाई की मांग की है.

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