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हर सीट पर लड़ाई का अलग अंदाज
सीमांचल में कटिहार जिले का अपना अलग ही मिजाज है. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पांच सीटों पर सफलता मिली थी. जदयू एक सीट पर जीता था. इस बार भाजपा ने छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. वहीं जदयू को महागंठबंधन में दो सीटें मिली हैं. चार सीटों पर कांग्रेस चुनाव […]
सीमांचल में कटिहार जिले का अपना अलग ही मिजाज है. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को पांच सीटों पर सफलता मिली थी. जदयू एक सीट पर जीता था. इस बार भाजपा ने छह सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. वहीं जदयू को महागंठबंधन में दो सीटें मिली हैं.
चार सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ रही है. कटिहार में एनसीपी के सांसद तारिक अनवर का प्रभाव माना जाता है. कुछ सीटों पर भाकपा-माले और जअपा भी जनाधार माना जाता है. कटिहार के चुनावी हालात का जायजा लेती रिपोर्ट.
कटिहार कार्यालय
जिले में सात विधानसभा क्षेत्रों के लिए पांच नवंबर को अंतिम चरण के तहत मतदान होनाहै. नामांकन प्रक्रि या पूरी होने के बाद यह साफ हो गया है कि विधानसभा चुनाव के इस समर में कौन रथी और महारथी कूदे हुए हैं.
विधानसभा चुनाव को लेकर अब चर्चा गांव-कस्बों से लेकर शहरी क्षेत्र के चौक-चौराहा व चौपाल तक जोर-शोर से चल रही है. मुख्य रूप से चर्चा के केंद्र में एक तरफ भाजपा नेतृत्व वाला एनडीए है तो दूसरी तरफ राजद-जदयू व कांग्रेस का महागंठबंधन है. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में कटिहार जिले की सात सीटों में से पांच सीट भाजपा की झोली में गयी थी. जबकि एक-एक सीट जदयू व निर्दलीय को मिली थी.
2015 का यह विधानसभा चुनाव कई मायनों में बदला-बदला नजर आ रहा है. यूं तो अधिकांश सीटों पर परंपरागत प्रतिद्वंद्वी ही आमने-सामने दिख रहे हैं, लेकिन कई सीटों पर चेहरा व दल भी बदल गये हैं. नामांकन के बाद प्रत्याशी जनसंपर्क अभियान में जुट गये हैं. जबकि प्रमुख दलों के स्टार प्रचारकों के चुनावी सभा होने के बाद धुंधली पड़ी तसवीर कुछ साफ दिखेगी.
फिलहाल प्रत्याशी के जनसंपर्क अभियान में कार्यकर्ता व समर्थक अपने प्रत्याशी की जीत को लेकर उत्साहित दिखते हैं, लेकिन मतदाताओं की खामोशी व विकास को लेकर उठाये जा रहे सवाल उन्हें बेचैन कर देते हैं. हालांकि चुनाव की अंतिम परिणति क्या होगी, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा. लेकिन यह देखना दिलचस्प होगा कि 16 वीं विधानसभा के इस चुनाव में विकास के मुद्दे भारी पड़ते हैं या जातीय गणित के आधार पर मतदाता गोलबंद होते हैं.
फिलहाल जिले में एनडीए व महागठबंधन के बीच की लड़ाई को एनसीपी व अन्य दल त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय बनाने में जुटे हुए हैं. साथ ही विभिन्न दलीय व निर्दलीय प्रत्याशी भी अपने-अपने समीकरण के आधार पर लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने में जुटे हैं. भाकपा (माले) व पप्पू यादव की जअपा भी खम ठोककर चुनाव मैदान में है. दोनों पार्टियों को अपने पारंपरिक वोटरों पर भरोसा है.
(इनपुट : कटिहार से राजकिशोर)
कटिहार
अल्पसंख्यक वोटों पर नजर
पिछले चुनाव के प्रतिद्वंद्वी इस बार मैदान में हैं, जबकि महागंठबंधन के उम्मीदवार मेयर विजय सिंह पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं, जिन्होंने लड़ाई को रोमांचक बना दिया है. यहां इस सीट पर अल्पसंख्यक वोटरों पर सबकी निगाह है.
2010 के चुनाव में भाई समसुद्दीन एनसीपी के टिकट पर चुनाव लड़ कर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया था. इस बार भाई समसुद्दीन चुनावी समर से बाहर हैं. जबकि निर्दलीय के रूप में समरेंद्र कुणाल भी लड़ाई कूद चुके हैं.
कदवा
त्रिकोणीय मुकाबले के आसार
विधानसभा चुनाव 2010 में भाजपा के भोला राय विधायक बने थे. उनके निधन के बाद इस बार भाजपा ने नये चेहरे के रूप में चंद्रभूषण ठाकुर को मैदान में उतारा है. भाजपा के निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे हिमराज सिंह इस बार एनसीपी के टिकट पर मैदान में हैं.
महागंठबंधन की ओर से कांग्रेस के शकील अहमद खान पहली बार यहां से चुनाव लड़ रहे हैं. पिछले विधानसभा चुनाव में राजद-लोजपा गंठबंधन के तहत राजद के बहाउद्दीन चुनाव लड़े और तीसरे स्थान पर थे.
बलरामपुर
हर दल कर रहा जीतने का दावा
पिछले चुनाव में भाजपा से यह सीट जदयू ने ले ली थी. तब भाजपा के प्रबल दावेदार रहे दुलालचंद्र गोस्वामी ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गये. भाजपा-जदयू गठबंधन टूटने के बाद गोस्वामी ने नीतीश सरकार को समर्थन दिया. उस चुनाव में माले के महबूब आलम उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी थे.
विधानसभा चुनाव 2015 में गोस्वामी और आलम आमने-सामने हैं. इस बार श्री गोस्वामी जदयू के टिकट पर मैदान में हैं. सीधी लड़ाई त्रिकोणीय बनाने में भाजपा के वरुण झा व एनसीपी के हबीबूर्रहमान जुटे हुए हैं. हालांकि एआइएमआइएम व जन अधिकार पार्टी सहित अन्य दलीय उम्मीदवार भी चुनावी लड़ाई को दिलचस्प बनाने में जुटी है.
प्राणपुर
रोचक मुकाबले के आसार
पिछले चुनाव में इस सीट पर मामूली अंतर से भाजपा के विनोद कुमार सिंह जीते थे. 2010 के चुनाव में लोजपा-राजद की तरफ से पूर्व मंत्री महेंद्र नारायण यादव मैदान में थे. इस बार टिकट नहीं मिलने से वह निर्दलीय लड़ रहे हैं. इस बार भाजपा व एनसीपी ने क्र मश: श्री सिंह व इशरत परवीन को फिर से अपना प्रत्याशी बनाया है. महागंठबंधन की ओर से कांग्रेस के तौकीर आलम है.
चुनाव को त्रिकोणीय व चतुष्कोणीय बनाने में आइएमसी के शाहिदा कुरैशी, निर्दलीय सुदर्शन चंद्र पाल, जन अधिकारी पार्टी सहित अन्य उम्मीदवार भी लगे हुए हैं.
मनिहारी (अजजा)
पुराने प्रतिद्वंद्वी आमने-सामने
पिछले चुनाव में भाजपा-जदयू की तरफ से जदयू की टिकट पर मनोहर सिंह यहां से चुनाव जीते थे. जबकि एनसीपी की गीता किस्कू निकटतम प्रतिद्वंद्वी थी. इस बार भी दोनों आमने-सामने हैं. पिछले चुनाव में राजद-लोजपा की तरफ से लोजपा के टिकट पर चंपई किस्कू तीसरे स्थान पर थे.
इस बार लोजपा ने अनिल उरांव को उतारा है. इस बार चंपई किस्कू निर्दलीय मैदान में हैं. पिछले चुनाव में कांग्रेस ने सिकंदर मंडल को उतारा था. इस बार मंडल निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं. इस क्षेत्र में अल्पसंख्यक मतदाता जीत-हार में फैक्टर बनते हैं. खासकर शेरशाहवादी वोटर चुनाव में जीत-हार को लेकर खास भूमिका निभाते रहे हैं. हालांकि इस क्षेत्र में यादव वोटरों की भूमिका भी महत्वपूर्ण रहती है.
बरारी
नये समीकरण से मुकाबला दिलचस्प
पिछले चुनाव में इस सीट पर राजद के मंसूर आलम चुनाव लड़े थे. वह तीसरे स्थान पर थे. इस चुनाव में आलम की जगह राजद ने नीरज कुमार को उतारा है. वहीं भाजपा के विभाष चंद्र चौधरी व एनसीपी के मो शकूर फिर आमने-सामने हैं. इस क्षेत्र में भी अल्पसंख्यक वोटर जीत-हार का फैसला करते हैं. खासकर शेरशाहवादी वोटरों की एकजुटता या बिखराव परिणाम पर प्रभाव डालता रहा है. अतिपिछड़ा मतदाताओं की गोलबंदी भी परिणाम को प्रभावित करती है. हालांकि चुनाव में कई और दलीय व निर्दलीय प्रत्याशी भी भाग आजमा रहे हैं.
कोढ़ा
पाला बदल कर बढ़ाई मुश्किल
पिछले चुनाव में इस सीट पर भाजपा के महेश पासवान व कांग्रेस की सुनीता देवी आमने-सामने थी. इस बार भाजपा ने श्री पासवान को फिर से मैदान में उतारा है. जबकि कांग्रेस ने पूनम कुमारी को टिकट दिया है.
पिछले चुनाव में नंदर दो रहीं सुनीता देवी इस बार एनसीपी से चुनाव मैदान में हैं. वहीं पिछले चुनाव में तीसरे स्थान पर रही एनसीपी प्रत्याशी मंजू देवी इस बार आइएमसी से लड़ रही है. जन अधिकार पार्टी से वकील दास भी चुनाव मैदान में हैं. इस क्षेत्र में भी अल्पसंख्यक मतदाता परिणाम प्रभावित करते हैं.
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