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धान की कटनी शुरू होते ही खुली अगहनुआ दुकान

धान की कटनी शुरू होते ही खुली अगहनुआ दुकान करपी(अरवल). धान कटनी शुरू होते ही चौक-चौराहे पर अगहनुआ दुकानें खुल गयी है. इन स्थानों पर खुले आसमान के नीचे मानक बंटखारे न होकर ईंट पत्थर के बंटखरे से धान एवं चावल की खरीदारी की जाती है. जिसे लोग देहाती भाषा में अगहनुआ दुकान कहते हैं. […]

धान की कटनी शुरू होते ही खुली अगहनुआ दुकान करपी(अरवल). धान कटनी शुरू होते ही चौक-चौराहे पर अगहनुआ दुकानें खुल गयी है. इन स्थानों पर खुले आसमान के नीचे मानक बंटखारे न होकर ईंट पत्थर के बंटखरे से धान एवं चावल की खरीदारी की जाती है. जिसे लोग देहाती भाषा में अगहनुआ दुकान कहते हैं. इस प्रकार की दुकानों पर मजदूर वर्ग के लोग ही दो-चार, पांच किलो धान चावल बेच अपनी रोजमर्रा के सामान बाजारों से खरीदते हैं. छोटी सी पोटली में धान बेचने जा रहे एक मजदूर से बताया कि क्या करें साहब हमलोग के पास उतना धान या चावल कहां है जिसे बाजारों में गोला में ले जाकर बेचें . ऐसे में दुकान खोलकर बैठे लोगों का इमान ही बता सकता है कि उनका बंटखरा सही है या गलत. लेकिन एक बात तो जरूर है कि इस दुकान खोलकर बैठे लोग कहीं न कहीं मजदूरों को उचित दाम या उचित वजन में कमी कर रहे हैं. लेकिन पदाधिकारियों का ध्यान शायद ही इस ओर जाता है.

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