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खतरनाक : सब्जियों में केमिकल का इस्तेमाल, थाली में परोस रहे बीमारी का निवाला

गया: अगर आप मार्केट में हरी व ताजी सब्जियां देख कर खरीदने का सोच रहे हैं, हरे-हरे खीरे देख कर सलाद बनाने की योजना बना रहे हैं, तो जरा ठहरिइए. सोचिए और थोड़ा विचार कर लीजिए कि बाजार में मौजूद करैला, भिंडी, खीरा, लौकी व परवल कहीं ज्यादा हरा तो नहीं है, पालक इतना फ्रेश […]

गया: अगर आप मार्केट में हरी व ताजी सब्जियां देख कर खरीदने का सोच रहे हैं, हरे-हरे खीरे देख कर सलाद बनाने की योजना बना रहे हैं, तो जरा ठहरिइए. सोचिए और थोड़ा विचार कर लीजिए कि बाजार में मौजूद करैला, भिंडी, खीरा, लौकी व परवल कहीं ज्यादा हरा तो नहीं है, पालक इतना फ्रेश कैसे है.

और भी बहुत कुछ. अगर आप इन बातों पर ध्यान नहीं दे रहे हैं, तो विश्वास करिए कैंसर जैसी खतरनाक बीमारियों को दावत दे रहे हैं. ये हम नहीं कह रहे, बल्कि डॉक्टर व कृषि वैज्ञानिक इन बातों को प्रमाणित कर रहे हैं. उनका कहना है कि बाजार में हरी-ताजी दिखनेवाली सब्जियां शरीर में कई प्रकार के रोग पैदा करती हैं, क्योंकि इन सब्जियों के उत्पादन व उन्हें फ्रेश लुक देने के लिए धड़ल्ले से केमिकल का इस्तेमाल हो रहा है. ये केमिकल एलर्जिक रिएक्शन के साथ-साथ कई गंभीर बीमारियों के वाहक हैं. डॉक्टर बाबू की माने तो इन सब्जियों के सेवन से लीवर व पेट को ज्यादा खतरा है.

सरसों का तेल व केमिकल से सब्जियों पर चढ़ाया जाता है रंग:
एक सब्जी विक्रेता के ही मुताबिक, एक बरतन में पहले पानी भर कर उसमें रंग घोला जाता है. इसके बाद उसमें सरसों का तेल व केमिकल मिलाया जाता है. इसके बाद उसी पानी में सब्जियां डूबा कर निकाली जाती हैं. इससे उनका रंग और गहरा हो जाता है. 10 मिनट तक उस पानी में डूबे रहने के बाद निकलीं सब्जियां कई दिन हरी व ताजी नजर आयेंगी. इनके अलावा सब्जियों को जल्द तैयार करने के लिए उनमें हार्मोन इंजेक्ट किया जाता है. इससे सब्जियों का ग्रोथ रातोंरात बढ़ जाता है. कई बार तो खेत की मिट्टी में ही केमिकल मिला दिया जाता है.
केमिकल का ज्यादा प्रयोग पहुंचा रहा नुकसान
कृषि वैज्ञानिक डाॅ गोविंद कुमार ने बताया कि सबसे पहले तो यह कि कई ऐसे केमिकल हैं, जिनका प्रयोग पूरी तरह वर्जित है. लेकिन, कुछ किसान इसका प्रयोग करते हैं. दूसरा यह कि कई ऐसी दवाएं हैं, जो वर्जित तो नहीं हैं, लेकिन किसान द्वारा उसका ज्यादा प्रयोग नुकसानदेह साबित हो जाता है. इसे एेसे समझा जा सकता है कि आॅफ सीजन में कोई सब्जी उगायी जा रही हो, तो मौसम अनुकूल नहीं होने के कारण सब्जी खराब हो सकती है.
ऐसे में किसान उन पर अधिक और बार-बार केमिकल का प्रयोग करते हैं. केमिकल का असर समाप्त होने से पहले ही वह सब्जी बाजार में पहुंच जाती है और वहां से घरों में. केमिकलवाली सब्जी का ही लोग सेवन कर रहे होते हैं. उन्होंने कहा कि एेसे केमिकलों का सबसे ज्यादा प्रयोग बैगन व फूलगोभी के उत्पादन में किया जाता है.
जिन सब्जियों पर चढ़ाया जाता है रंग
करैला, लौकी, नेनुआ, भिंडी, मिर्च पर हरा रंग चढ़ाया जाता है. इन सब्जियों की बिक्री ज्यादा होती है, इसी वजह से ही दुकानदार अधिक मात्रा में इन सब्जियों की खरीद करता है. एक-दो दिन में यह सूखने लगते हैं, इनकी चमक बरकरार रखने व उन्हें फ्रेश रखने के लिए ही हरे रंग के केमिकल से इन्हें रंग दिया जाता है.
हरा रंग व मोम कैंसर के कारण
डाॅ गोविंद कुमार के मुताबिक, आज कल सब्जियों को ताजा-हरा दिखाने के लिए जिस तरह से हरे रंग का प्रयोग हो रहा है. वह मनुष्य के शरीर में कैंसर का एक बड़ा कारण हो सकता है. उन्होंने कहा कि हरा रंग बेहद खतरनाक होता है. शरीर में जाने के बाद यह पाचनतंत्र को बुरी तरह से प्रभावित करता है. डाॅ कुमार ने कहा कि सबसे खतरनाक तो यह है कि कई ऐसी सब्जियां व फल हैं, जिनका हम सीधा सेवन करते हैं, मतलब बिना पकाये. इससे केमिकल सीधे शरीर में प्रवेश कर जाता है. दूसरी ओर सेव जैसे फलों को फ्रेश लुक देने के लिए उन पर मोम या वैसलीन का लेयर चढ़ा दिया जाता है. व्यक्ति इसे सीधा सेवन करता है, जो शरीर में जा कर आंतों को नुकसान पहुंचाता है.

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