गया . मोक्ष की भूमि गयाधाम में पितृपक्ष मेले के 13वें दिन बुधवार को सूर्यास्त के समय सैकड़ों पिंडदानियों ने अंत:सलिला फल्गु नदी में दीप जला कर जल में प्रवाहित किया गया. इसे पितरों की दीपावली के नाम से भी जाना जाता है. दीपदान के साथ ही मानो पितर इतने खुश हो गये कि आकाश से बारिश होने लगी. रिमङिाम फुहारों के बीच पिंडदानियों ने अपने पितरों के लिए दीपदान कर फल्गु व देवघाट को जगमग कर दिया. इससे पहले सुबह पिंडदानियों ने फल्गु में स्नान कर पितृ तर्पण किया. साथ ही पितरों के निमित्त दूध में खीर बना कर ब्राrाणों को भोजन कराया गया.
ब्राrाणों की मानें, तो 13वें दिन यमलोक से पितरों को खीर खिलाने की मान्यता मिल जाती है. इसी मान्यता को ध्यान में रख कर इस तरह का धार्मिक अनुष्ठान किया गया. तीर्थयात्री ओड़िशा के कालाहांडी जिलांतर्गत भवानी पटवा के रहनेवाले दीनबंधु अग्रवाल व उनकी पत्नी शकुंतला अग्रवाल ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार, पूर्वजों को शांति व मोक्ष मिलने की मान्यता है. इसके मद्देनजर ब्राrाणों को खीर का भोजन कराया गया. यहां आने का उद्देश्य पूरा हो गया. इससे पितरों को भी संतुष्टि मिलेगी. 13वें दिन के महत्व के संबंध में उन्होंने बताया कि फल्गु में स्नान करने या जल से स्पर्श हो जाने पर भी पितरों को तृप्ति मिल जाती है. पितृपक्ष के अवसर पर पितरों को यह चाह रहती है. फल्गु व आसपास के मंदिरों में पूजा-अर्चना कर दीपदान किया गया. ऐसी मान्यता है कि दीपदान नहीं करने से उनके पितर अंधकार कूप में गोता लगाते रहते हैं. इस भय से पिंडदानियों ने शनिवार की शाम में दीपदान कर पितृयज्ञ का अनुष्ठान सफल किया. अमावस्या के दिन अक्षयवट में वटवृक्ष के नीचे पंडा पुरोहितों द्वारा यजमानों को सुफल करा कर अनुष्ठान को संपन्न कराया जाता है.