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रंगमंच से निर्देशक तक का सफर

गया: साहित्यकार से रंगमंच पर प्रस्तुति देती दुर्बा ने अपना ट्रैक बदल लिया. दुर्बा सहाय को लघु फिल्में बनाने में बड़ा मजा आ रहा है. 1993 में फिल्म पतंग बनाने के बाद वह लघु फिल्मों के प्रति अपना रुख किया. फिल्म ‘पतंग’ को 1994 में राष्ट्रीय अवार्ड मिल गया. ‘प्रभात खबर’ को दिये इंटरव्यू में […]

गया: साहित्यकार से रंगमंच पर प्रस्तुति देती दुर्बा ने अपना ट्रैक बदल लिया. दुर्बा सहाय को लघु फिल्में बनाने में बड़ा मजा आ रहा है. 1993 में फिल्म पतंग बनाने के बाद वह लघु फिल्मों के प्रति अपना रुख किया. फिल्म ‘पतंग’ को 1994 में राष्ट्रीय अवार्ड मिल गया.

‘प्रभात खबर’ को दिये इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वर्ष 1911 में लघु फिल्म ‘ द पेन’ व 1912 में ‘एन अननोन गेस्ट’ और अब ‘द मेकेनिक’ की स्क्रिप्ट लिखीं तथा निर्माता व निर्देशन भी किया. द पेन 64वें कान्स फिल्म फेस्टिवल व एन अननोन गेस्ट 65वें कान्स फिल्म फेस्टिवल में प्रदर्शन के लिए चुनी गयी थीं. 11वें इंटरनेशनल फिल्म में भी प्रदर्शन कर चुकी हैं.

दुर्बा कहती हैं कि आने वाला समय लघु फिल्मों का ही है. समय व पैसे की बचत होती है. जरूरत है इसके प्रोमोशन व आम लोगों के बीच तक पहुंचाने की. द पेन 20 मिनट की व एन अननोन गेस्ट 22 मिनट की फिल्म है. वह दो और फिल्में कर रही हैं.

इसमें एक फिल्म 14 मिनट की और दूसरी फिल्म 35 मिनट की बनायी जायेंगी. पांच फिल्मों का कोलाज सीडी बना कर हाल में भी प्रदर्शन किया जा सकता है. फिल्मों में गाने से भी आजिज कर देते हैं. अब लोग फिल्म देखना ही ज्यादा पसंद करने लगे हैं. वह बड़ी फिल्में भी करेंगी. फिल्म द मैकेनिक को भी बड़ा करने की मांग आ रही है. इसके मद्देनजर वह इसका विस्तार करेंगी. इसके लिए प्लाट तैयार है.

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