गया: जान पर खेल कर सरकारी रुपये की रक्षा करनेवाले वनपाल बिफन विश्वकर्मा के क्रियाकलापों को पर्यावरण व वन विभाग के अधिकारी भूल गये और 1993 में वेतन वृद्धि का आदेश देने के बाद विभाग ने करीब 21 साल बाद इस रद्द करने का फैसला लिया है.
इससे औरंगाबाद वन प्रमंडल में पोस्टेड वनपाल बिफन विश्वकर्मा मर्माहत हैं. वन विभाग के क्रियाकलापों से क्षुब्ध गया जिले के डुमरिया थाने के महुड़ी के वनपाल श्री विश्वकर्मा बताते हैं कि 25 मार्च 1983 को गया स्थित भारतीय स्टेट बैंक से उनके विभाग के अधिकारियों ने लाखों रुपये की निकासी की. रुपये लेकर राजगीर जाना था. कोतवाली थाने के पंचायती अखाड़ा मुहल्ले में राजगीर जाने के लिए बस का इंतजार कर रहे थे. इसी दौरान लुटेरों ने हमला कर दिया और अधिकारियों से रुपये से भरे बैग छीनने का प्रयास किया. लेकिन, अपनी जान की परवाह किये बगैर वह लुटेरों से भिड़ गये और रुपये लुटने से बचा लिये. लेकिन, लुटेरों ने उन्हें सिर में गोली मार दी. इससे वह गंभीर रूप से जख्मी हो गये. तीन से अधिक वर्षो तक पटना व रांची उनका इलाज हुआ.
उन्होंने बताया कि इस बहादुरी को लेकर वन विभाग के अधिकारियों ने 20 मई 1985 को उन्हें एक हजार रुपये का इनाम व एक पदोन्नति देने की अनुशंसा की. 15 सितंबर 1993 को सरकार के संयुक्त सचिव डीएन वर्मा ने एक हजार रुपये का पुरस्कार व एक अतिरिक्त वेतनवृद्धि का इनाम देने की घोषणा की. लेकिन, 10 फरवरी 2014 को सरकार के उप सचिव रत्नेश झा ने पुरस्कार के रूप में एक अतिरिक्त वेतनवृद्धि व एक हजार रुपये के भुगतान की स्वीकृति को रद्द कर दिया. उन्होंने बताया कि विभाग ने अतिरिक्त वेतन वृद्धि के आदेश को वापस ले लिया है. वनपाल श्री विश्वकर्मा ने बताया कि उन्होंने पर्यावरण व वन विभाग के वरीय अधिकारियों से इस मामले में कार्रवाई करने की मांग की है.