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सभी अस्पताल रहें अलर्ट आशा हर घर पर रखें नजर

गया : जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) को लेकर जिले के सभी अस्पतालों को अलर्ट किया गया है. सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व उप केंद्रों में काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को सचेत किया गया है. इन सभी को जिम्मेदारी दी गयी है कि अपने-अपने क्षेत्रों में नजर बनाये रखें. आशा […]

गया : जापानी इंसेफ्लाइटिस (जेई) को लेकर जिले के सभी अस्पतालों को अलर्ट किया गया है. सभी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र व उप केंद्रों में काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों को सचेत किया गया है. इन सभी को जिम्मेदारी दी गयी है कि अपने-अपने क्षेत्रों में नजर बनाये रखें.
आशा फैसिलिटेटर के तौर पर काम कर रही महिलाओं को भी क्षेत्र में घूमने का निर्देश है. इन्हें कहा गया है कि कोई भी बच्चा, जिसमें एइएस के लक्षण दिखें, उसे तुरंत वहां के स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती करायें. चूंकि स्वास्थ्य केंद्र में पर्याप्त जांच व इलाज की व्यवस्था नहीं है, इसलिए बीमार बच्चे का प्राथमिक उपचार कर उसे तुरंत जिला मुख्यालय रेफर किया जाये. यहां मगध मेडिकल काॅलेज में उस बच्चे का इलाज किया जायेगा. गौरतलब है कि हर साल माॅनसून आने से पूर्व व दौरान जिले में बड़ी संख्या में बच्चे जेइ के शिकार होते हैं.
अब तक 363 बच्चों ने खोयी जिंदगी
बीते दस साल के रिकाॅर्ड पर नजर डालें तो एइएस व जेइ की वजह से अब तक 363 बच्चों की जिंदगी समाप्त हो गयी. इन दस सालों में कुल 1447 मामले सामने आये. यह आंकड़े ही बताते हैं कि गया समेत आस-पास के जिलों में जेई का कितना खतरनाक प्रभाव है. जून का अंत होते-होते कई घरों के लोगों में इस बीमारी का डर सताने लगता है. माॅनसून के साथ ही मौसम में नमी आती है. यही वह वक्त होता है जब जेइ वायरस एक्टिव होते हैं. मच्छरों के माध्यम से यह वायरस लोगों के घरों तक पहुंचता है. वायरस का मुख्य वाहक सूअर को माना जाता है. विशेषज्ञों के मुताबिक यह वायरस सूअरों के शरीर में होता है. मच्छर इनके शरीर से होते हुए जब किसी बच्चे के शरीर पर अपना डंक चुभाता है तो वायरस उस बच्चे के शरीर में प्रवेश कर जाता है. इसके बाद ही बच्चा जेई की चपेट में आ जाता है. गांव में लोग इसे दिमागी बुखार भी कहते हैं.

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