बकाये के ऑक्सीजन पर चल रहे जिले के सरकारी अस्पताल
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अस्पतालों में भोजन, सफाई व बिजली व्यवस्था देख रही संस्था ने खींचा हाथ, मुश्किल में मरीज
बकाये के ऑक्सीजन पर चल रहे जिले के सरकारी अस्पताल गया : लंबे समय से भुगतान नहीं होने और कई दूसरे मसलों पर जारी खींचतान के बीच सोमवार को अस्पतालों में सर्विस देने वाली आउटसोर्सिंग एजेंसी आर्यभट्ट कंप्यूटर्स ने काम बंद कर दिया. जयप्रकाश नारायण अस्पताल, प्रभावती अस्पताल, खिजरसराय, फतेहपुर, बोधगया व चेरकी स्थित सरकारी […]
गया : लंबे समय से भुगतान नहीं होने और कई दूसरे मसलों पर जारी खींचतान के बीच सोमवार को अस्पतालों में सर्विस देने वाली आउटसोर्सिंग एजेंसी आर्यभट्ट कंप्यूटर्स ने काम बंद कर दिया. जयप्रकाश नारायण अस्पताल, प्रभावती अस्पताल, खिजरसराय, फतेहपुर, बोधगया व चेरकी स्थित सरकारी अस्पतालों में अपनी सभी सेवाएं बंद कर दी हैं. इन अस्पतालों में जेनरेटर, साफ-सफाई, भोजन व कपड़ा धुलाई का काम इसी एजेंसी के पास रहा है. इसके काम बंद कर देने से अस्पतालों में सबसे गंभीर समस्या बिजली और भोजन की पैदा हो गयी है. एजेंसी के प्रोपराइटर ने किसी भी स्थिति में काम नहीं करने की बात कह दी है.
उनके, मुताबिक लगभग 45 लाख रुपये का बाकी हो गये हैं. अब काम करना ही मुश्किल है. इतना ही नहीं, पता चला है कि जेपीएन और प्रभावती में ऑक्सीजन मुहैया करानेवाली संस्था को भी कई महीनों से भुगतान नहीं मिला है. इधर जिले के स्वास्थ्य महकमे के अफसरों के पास इस समस्या से निबटने का कोई उपाय भी नहीं है. इनके पास न तो कोई विकल्प है और न ही ये भुगतान करने की स्थिति में हैं. शायद यही कारण भी है कि विभाग के सीनियर अफसर मीडिया के सामने इस विषय में कुछ भी बोलने से बचने की कोशिश कर रहे हैं.
जिला प्रशासन पर खड़ा किया सवाल
इन अस्पतालों में काम करने के लिए इस आउटसोर्सिंग एजेंसी के साथ जुलाई 2014 में करार हुआ था. जून 2017 में एजेंसी का करार खत्म हो गया था. इसके बाद जिला स्वास्थ्य समिति के पास कोई दूसरा विकल्प नहीं होने की वजह से इसी एजेंसी से काम लिया जाता रहा. इस बीच कई जगहों पर लंबे समय तक भुगतान भी नहीं हुआ. प्रॉपराइटर रणविजय सिंह के मुताबिक प्रभावती अस्पताल में भुगतान को लेकर उन पर गड़बड़ी के भी आरोप लगाये गये. इसकी जांच भी करायी जा रही है. उन्होंने जिला प्रशासन पर ही सवाल खड़ा किया है. उन्होंने कहा है कि जब उन पर आरोप लगाते हुए जांच करायी जा रही है, तो उनसे काम क्यों लिया जा रहा है, उन्हें काम से मुक्त क्यों नहीं किया जा रहा. उन्होंने सवालिया लहजे में पूछा कि करार खत्म होने के बाद से ही वह लगातार काम करने में असमर्थता जताते रहे हैं, फिर भी उनसे काम क्यों लिया जाता रहा?
बोधगया व फतेहपुर में महीनों से सर्विस बंद
बोधगया सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में बीते 25 महीने से भुगतान नहीं होने की वजह से कई काम बंद हो चुके हैं. स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी डाॅ मनोज कुमार ने बताया कि अस्पताल में छह महीने से भोजन नहीं बन रहा है. यहां एक महीने से जेनरेटर सर्विस भी बंद है. कपड़ों की धुलाई भी नहीं होती. सफाई की भी स्थिति खराब है. उन्होंने कहा कि एजेंसी का लंबे समय से भुगतान बकाया है. इस संबंध में कई बार सिविल सर्जन को लिखित सूचना भी दी गयी है. पैसे नहीं मिलने की वजह से भुगतान नहीं हो पा रहा है. उधर, फतेहपुर पीएचसी में भी लंबे समय से मरीजों को भोजन नहीं मिल रहा है. यहां भी बकाया अधिक होने के चलते काम बंद है.
अलग-अलग अस्पतालों में बकाये की स्थिति
जय प्रकाश नारायण अस्पताल नौ महीने से भुगतान नहीं
प्रभावती अस्पताल पांच महीने से भुगतान नहीं
खिजरसराय पीएचसी 13 महीने से भुगतान नहीं
फतेहपुर पीएचसी 10 महीने से भुगतान नहीं
बोधगया सीएचसी 25 महीने से भुगतान नहीं
चेरकी एपीएचसी 10 महीने से भुगतान नहीं
45 लाख रुपये का हो गया है बकाया !
बीते एक साल में लगभग आठ बार जिला स्वास्थ्य समिति और सिविल सर्जन को पत्र लिखा गया. हर बार मौखिक आश्वसन मिला. 20 अप्रैल को लिखित में भी कहा गया कि वैकल्पिक व्यवस्था के तौर पर काम करते रहें. काम जारी रखा. सवाल है कि इतने लंबे समय से भुगतान बकाया होने पर कब तक सर्विस संभव है. हमें भी कर्मचारियों को वेतन देना है, डीजल खरीदना है. अब तक 45 लाख रुपये का बकाया हो चुका है. कोषागार से कुछ भुगतान को मंजूरी दे दी गयी है, बावजूद अभी तक पैसे नहीं मिले हैं. करार 2017 जून में खत्म हो गया. फिर भी काम लिया जा रहा है. पैसे मांगे, तो गड़बड़ी का आरोप लगा. जांच भी शुरू हुई. काम भी ले रहें है. सब एक साथ कैसे संभव है?
रणविजय सिंह, प्रोपराइटर, आउटसोर्सिंग एजेंसी
जान गयी, तो कौन होगा जिम्मेदार?
यह मामला सामान्य नहीं है. गौर करने वाली बात यह है कि अस्पतालों में सर्जरी के दौरान अगर बिजली चली गयी, संकट की स्थिति पैदा हो जायेगी. ऐसे में क्या होगा ? जेनरेटर सर्विस है नहीं, तो फिर ऑपरेशन होगा कैसे? इस पर शायद ही कोई सोच रहा हो. जय प्रकाश नारायण अस्पताल में आॅपरेशन थियेटर में बंध्याकरण कर रहीं डॉ शहला नाजनीन ने कहा कि अगर एजेंसी के काम बंद करने की जानकारी अधिकारियों को मिल गयी थी, तो सिविल सर्जन को चाहिए था कि वह वैकल्पिक इंतजाम करें. दिन में तो किसी तरह काम हो जायेगा, लेकिन रात में? अगर इमरजेंसी में आॅपरेशन करना पड़े और बीच में ही बिजली चली गयी,
तो क्या होगा? ऑक्सीजन को लेकर भी अगर बात बिगड़ गयी, तो क्या होगा? ऐसे में तो किसी की जान भी जा सकती है. पर, सवाल है उसकी मौत का जिम्मेदार कौन होगा? वह डाॅक्टर, जो बिना किसी सुविधा के मरीज की जान बचाने के लिए आॅपरेशन कर रहा है या फिर वह अफसर, जो सब कुछ जानते हुए भी बिना किसी वैकल्पिक व्यवस्था के निश्चिंत होकर हाथ पर हाथ धरे चैन की वंशी बजा रहा है.
दोष प्रशासन का, भुगत रही है जनता
अस्पताल में सुविधा नाम की कोई भी चीज नहीं है. वार्ड की सफाई नहीं हुई. गरमी से परेशान हैं. लोग बोल रहा है कि कर्मचारी लोग हड़ताल पर हैं.
कुमारी प्रतिभा, जय प्रकाश नारायण अस्पताल.
कहीं कोई ठीकठाक व्यवस्था ही नहीं है. एक तो तकलीफ लेकर आये हैं, ऊपर से बार-बार बिजली जाती है तो गरमी मर्ज को और बढ़ा रही है. . बाप रे बाप, बहुते खराब है इहां का हाल.
सोनवा देवी, जय प्रकाश नारायण अस्पताल.
सुबह से खाने को कुछ भी नहीं दिया गया. चादर भी नहीं बदला है. दिन है तो कट रहा है, रात को बिजली नहीं होगी, तो क्या करेंगे.
फुलमंती देवी, प्रभावती अस्पताल.
इतनी गरमी में अस्पताल में बिजली नहीं होने से परेशानी हो रही है. सुबह से कई बार बिजली गयी. दोपहर का खाना भी नहीं मिला.
जुली कुमारी, प्रभावती अस्पताल
यही कारण है कि सरकारी अस्पतालों से लोगों का भरोसा उठ जाता है. हर रोज यहां कुछ न कुछ समस्या है. लेकिन समाधान पर कोई बात नहीं.
सोनी देवी, फतेहपुर पीएचसी
भुगतान बकाया है, तो यह तो प्रशासनिक विफलता है. एक मरीज का क्या दोष? जो टैक्स देता है, वह इसकी सजा क्यों भुगते. अधिकारियों को तो अपने मनचाही सुविधा मिल रही है. भोग जनता रही है.
विभा कुमारी, फतेहपुर पीएचसी
बोलने से बच रहे सिविल सर्जन
इस मामले में सिविल सर्जन डाॅ राजेंद्र प्रसाद सिन्हा कुछ भी बोलने से बच रहे हैं. सोमवार को एजेंसी द्वारा काम बंद कर दिये जाने के बाद से उनसे लगातार संपर्क करने का प्रयास किया गया, लेकिन बात नहीं हो सकी. जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीओ मनीष कुमार ने भी पूरा मामला सिविल सर्जन के स्तर पर होने की बात कह पल्ला झाड़ लिया. क्षेत्रीय उप निदेशक डाॅ विनय कुमार यादव ने कहा कि सिविल सर्जन को समस्या से निबटना चाहिए. वित्तीय मामले सीएस के पास हैं. सूत्रों के हवाले से पता चला है कि इस बीच सिविल सर्जन ने एक बार फिर से एजेंसी को पत्र लिख कर काम जारी रखने का अनुरोध किया है.
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