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”हमारे बच्चे और उनके बच्चे” यह सोच बाल श्रम उन्मूलन में बाधक

गया : जब कभी बाल श्रमिकों की बात होती है तो सिविल सोसाइटी, ब्यूरोक्रेसी, पॉलिसी मेकर इसके उन्मूलन की खूब बातें करते हैं, लेकिन जिस आधार पर बाल श्रम टिका है, उसे खत्म करने के लिए प्रयास होते ही नहीं. कास्ट व क्लास के आधार पर ही बाल श्रम आज बिहार समेत देश के लिए […]

गया : जब कभी बाल श्रमिकों की बात होती है तो सिविल सोसाइटी, ब्यूरोक्रेसी, पॉलिसी मेकर इसके उन्मूलन की खूब बातें करते हैं, लेकिन जिस आधार पर बाल श्रम टिका है, उसे खत्म करने के लिए प्रयास होते ही नहीं. कास्ट व क्लास के आधार पर ही बाल श्रम आज बिहार समेत देश के लिए एक गंभीर समस्या बना हुआ है.
ये बातें टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस पटना के प्रभारी प्रो पुष्पेंदु ने कहीं. वह रविवार को होटल मनीषा इंटरनेशनल में एक्शन मीडिया व सेंटर डायरेक्ट संस्था द्वारा बिहार डायलॉग कार्यक्रम के तहत बाल श्रम पर आयोजित परिचर्चा में बतौर मुख्य वक्ता बोल रहे थे. उन्होंने बाल श्रम उन्मूलन से जुड़े सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक पहलूओं पर बिंदुवार प्रकाश डाला. प्रो. पुष्पेंदु ने कहा कि बाल श्रम को समझने के लिए यह जरूरी है कि हम ‘हमारे बच्चे- उनके बच्चे’ जैसी जातिगत भावना से आगे बढ़ें.
गया में प्रदेश के सबसे ज्यादा बाल श्रमिक: उन्होंने 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए कहा कि गया बाल श्रम के मामले में प्रदेश में टॉप पर है. यहां 78 हजार 929 बाल श्रमिक हैं वहीं, अरवल में सबसे कम पांच हजार 732 बाल श्रमिक हैं, जबकि बाल श्रम के मामले में प्रदेश का स्थान देश में टॉप पांच राज्यों में है, जो वाकई चिंता का विषय है.
प्रो.पुष्पेंदु ने उन कारणों का जिक्र किया, जिसके कारण बाल श्रम पर काम करने वाले लोग व संगठन और बाल श्रम से पीड़ित अभिभावकों के बीच संवादहीनता की स्थिति बन जाती है. उन्होंने बाल श्रम को खत्म करने के लिए इस बात पर जोर दिया कि हर हाल में ऐसी शिक्षा का माहौल बनाया जाये, जहां जातिगत व वर्ग आधारित व्यवस्था का नामोनिशान न हो. इस कार्यक्रम में प्रश्न उत्तर का भी सेशन रखा गया था.
वयस्क श्रम से रुक सकता है बाल श्रम
प्रो. पुष्पेंदु ने कहा कि बाल श्रम को अगर रोकना है तो हमें हर हाल में वयस्क श्रम को बढ़ावा देना होगा. यानी यह थ्योरी कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से मजदूरी करवाना अपराध है, इसे सख्ती से लागू करना होगा. लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो पाता इसे इन आंकड़ों से समझा जा सकता है. जहां एक बाल मजदूर से महज 30 रुपये प्रतिदिन के भुगतान पर काम लिया जाता है वहीं एक वयस्क मजदूर को इसके लिए 150 रुपये का भुगतान करना होता है.
इसके अलावा बाल मजदूर बहुत विरोध भी नहीं कर सकते हैं. इसी सोच के खिलाफ लड़ाई लड़नी होगी. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन द्वारा वयस्क श्रम का जो खांका खींचा गया है उसे लागू करवाना होगा. इस कार्यक्रम की दूसरी वक्ता बेतिया में लंबे समय से समाज सेवा का काम कर रही सिस्टर एलिस थी. उन्होंने भी अपना अनुभव शेयर किया. कार्यक्रम का संचालन एक्शन मीडिया से व्यालोक ने किया. वहीं सेंटर डायरेक्ट के महासचिव पीके शर्मा ने सभी का आभार जताया.

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