ताऊ ते तूफान की चपेट में आने से 17 मई को समुद्र में डूब जाने वाले वराप्रादा जहाज पर वायरलर मैन के रूप में कार्यरत करीब 28 वर्षीय युवक बैजू का शव 31 मई सोमवार को दोपहर साढ़े बारह बजे एम्बुलेंस से पैतृक गांव मुरैठा पहुंचा. एम्बुलेंस के रेल गुमटी पार करते ही लोगों का हुजूम मृतक के दरवाजे की ओर बढ़ने लगा. एम्बुलेंस के पहुंचने से पहले ही वहां काफी संख्या में लोग शव आने की प्रतीक्षा में खड़े थे. परिजनों के कारूणिक विलाप से लोगों का कलेजा दहल रहा था. जिससे दरवाजे पर जुटे अधिकांश लोगों की आंखें नम हो रही थी.
कुछ देर बाद दरवाजे पर एम्बुलेंस के पहुंचते ही आसपास के दर्जनों लोग लोग पहुंच गए. सभी युवक की एक झलक पाने को बेताब नजर आ रहे थे. भीड़ को हटाते हुए एम्बुलेंस से शव को उतार कर दरवाजे पर बांस से बनी चचरी पर रखा गया. दरवाजे पर शव रखते ही परिजन दहाड़ें मार कर रोने-चिल्लाने लगे. शव के समीप बैठी मां उसे एकटक निहार रही थी. वहीं हे भगवान, हमर बैजुआ केकरो नई किछु बिगाड़ने रहै, ओकर बच्चा से कोन दुश्मनी रहो, जे ओकरा अनाथ क देलहो. हमहू त केकरो नई किछु बिगाड़ने रहियै कहकर रोते ही जा रही थी. कई परिजन उन्हें ढाढस दिलाने को मशक्कत कर रहे थे. उधर, आंगन में कई परिजन बदहवास पत्नी और बच्चों को संभालने में लगे थे.
शव के मब्बी पहुंचने की जानकारी मिलने के बाद ग्रामीणों और पड़ोसी मृतक के दरवाजे के इर्द-गिर्द जुटने लगे थे. कई दूरदराज के नाते-रिश्तेदार भी पहुंच गए थे. आंगन में मां, पत्नी व अन्य परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल हो रहा था. परिजनों की करुण चित्कार से ग्रामीणों की आंखें भी नम हो रही थी. लोग कह रहे थे कि युवक की मौत से जहां पत्नी का सुहाग उजड़ गया, वहीं जवान बेटे को खोने के गम में पिता और पुत्र वियोग में मां का कलेजा छलनी हो रहा होगा. लोग किसी को भी इस तरह का दुर्दिन नहीं दिखाने की बात कह आंखें पोछने लगते थे.
इधर, कई ग्रामीण जल्द से जल्द शव को अंतिम संस्कार के लिए श्मसान घाट ले जाने के लिए कह रहे थे. इसी बीच महिलाओं द्वारा घर के भीतर से पति के अंतिम दर्शन के लिए पत्नी को शव के समीप लाया गया. पत्नी के कारूणिक विलाप से पहले से गमगीन माहौल और गमगीन हो गया. रोते-रोते वह बार-बार पति के शव को छूने का प्रयास कर रही थी. लोग उसे वहां से हटाकर घर के भीतर ले जाना चाह रहे थे, ताकि उसकी पहले से खराब तबियत और न बिगड़ जाए. पति के वियोग में वह इस तरह छटपटा रही थी, की तीन-चार लोगों के संभालने के बाबजूद संभल नहीं रही थी. फिर भी लोग मशक़्क़त कर ही रहे थे. लोग कह रहे थे कि पति के खोने का दर्द पत्नी ही बयां कर सकती है. आजकल में घर आने की बात कहने वाला इस तरह बक्से में बन्द होकर आएगा, उसे विश्वास नहीं हो रहा होगा.
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दरभंगा कमतौल से शिवेंद्र की रिपोर्ट