मोतिहारी : मोतिहारी शहर को दो भागों में बांटने व प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए बदहाल मोतीझील की याद एक बार फिर आने लगी है. विधान सभा चुनाव का बिगुल बजते ही वायदों का पिटारा फिर से खुलने लगा है.
कभी कश्मीर के डल झील से तुलना की जाने वाली यह झील अभी पूरी तरह से अतिक्रमण का शिकार हो गयी है और अपना वजूद बचाने के लिए संघर्ष कर रही है.
छह दशक पूर्व यहां कमल खिलते थे और खुशगवार माहौल होता था जहां जिले के शायर व कवि शब्दों का खेल खेलते थे.
जानकार बताते हैं कि यह मोतीझील 246.47 एकड़ जमीन पर फैली है और करीब आठ दर्जन लोगों का अवैध कब्जा इस मोतीझील की जमीन पर है.
जिला प्रशासन द्वारा अतिक्रमणकारियों को चिन्हित भी किया गया और कुछ पर कार्रवाई भी हुई किंतु नतीजा शून्य रहा.तीन एकड़ साढे 11 डिस्मिल जमीन पर घर भी अवैध तरीके से बना हुआ है.मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपने सेवा यात्रा के क्रम में इस मोतीझील का जाएजा भी लिया था और अधिकारियों को अतिक्रमण हटवाने समेत कई निर्देश भी दिये थे.
मुख्यमंत्री न इस झील को राष्ट्रीय स्तर पर विकसित कराने का आश्वासन दिया था. लेकिन उसका भी असर नहीं के बराबर रहा.सीएम के आदेश का सिर्फ इतना असर रहा कि उसकी पैमाइश करायी गयी और अतिक्रमणकारियों को नोटिस किया गया.
नगरपालिका प्रशासन द्वारा भी पिछले साल मोतीझील के बचाने के लिए मोतीझील महोत्सव का आयोजन किया गया.अभी हालत यह है कि मोतीझील पूरी तरह से सिमटती जा रही है और शहर के कचड़ों को उसमें फेंका जा रहा है जिससे उसकी गहराई भी काफी कम हो गयी है.
अब बाढ आने पर यह झील मोतिहारीवासियों की रक्षा कैसे कर पायेगी यह कहना काफी मुश्किल है.