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”गंगा बहा दो, मैं यहां खुद बस जाऊंगा”

नमन. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर कलाकारों का जमावड़ा आज वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज के आॅडिटोरियम में होगा कार्यक्रम डुमरांव : आज खां साहब की जन्म शताब्दी समापन समारोह पर वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज में संगीत नाटक अकादमी, नयी दिल्ली (संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार) की ओर से सुषिरोत्सव कार्यक्रम का […]

नमन. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की जयंती पर कलाकारों का जमावड़ा आज

वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज के आॅडिटोरियम में होगा कार्यक्रम
डुमरांव : आज खां साहब की जन्म शताब्दी समापन समारोह पर वीर कुंवर सिंह कृषि कॉलेज में संगीत नाटक अकादमी, नयी दिल्ली (संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार) की ओर से सुषिरोत्सव कार्यक्रम का आयोजन होगा, जिसमें प्रसिद्ध कलाकार शेसम्पटि टी शिवलिंगम, नागास्वरम वाद्ययंत्र पर अपनी कला बिखेरेंगे. जबकि कोलकता से सुदीप चट्टोपाध्याय हिंदुस्तानी बांसुरी की तान छेड़ेंगे.
चेन्नई से आ रे सिक्किम माला चंद्रशेखर, कर्नाटक बांसुरी की जादू बिखेरेंगे. मुंबई की सोमा घोष, हिंदुस्तानी गायन करेंगी. वाराणसी से आ रहे कृष्णा राम चौधरी शहनाई व छन्नु लाल मिश्र हिंदुस्तानी गायन करेंगे. सोलापुर से आ रहे भीमंणा जाधव सुंदरी पर अपनी कला बिखरेंगे. कार्यक्रम काॅलेज के आॅडिटोरियम में पांच बजे से शुरू होगा. इस तरह का कार्यक्रम पहली बार होने से स्थानीय लोगों में उत्साह है.
उस्ताद ने कई फिल्मों में काम : खां साहब संगीत तो बहुत सी फिल्मों में दी, मगर बतौर संगीतकार सन्नाधि अपन्ना (तमिल), गूंज उठी शहनाई तथा डुमरांव में बनी बक्सर जिले की पहली फिल्म बाजे शहनाई हमार अंगना महत्वपूर्ण है. उनके जाने के बाद अब बनारस में उनके पांच बेटों में एक नैयर खां ने शहनाई की विरासत संभाल कर उसे सहेजने का प्रयास जारी रखा है.
डुमरांव. कैसा युग आ गया, लोग मंदिर-मसजिद करते फिर रहे हैं. मैंने तो जिंदगी का अधिक वक्त मंदिरों में ही गुजारा, किसी ने कोई बात नहीं कही. ईश्वर के आशीर्वाद और लोगों के प्यार से इतनी दूरी तय कर पाया हूं. इसलिए कहता हूं कि इससे उपर उठकर संगीत सीखो. सब एक हो जाओंगे. ये शब्द भारत रत्न शहनाई उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के हैं. मेरा बनारस यहां बसा दो, गंगा बहा दो, मैं खुद यहां बस जाऊंगा. यह वाक्य खां साहब से एक अमेरिकी पूंजीपति ने वहां बस जाने का न्योता दिया था, तब कहीं थी. इसके अलावे बाजे शहनाई हमार अंगना की एक गीत दिल का खिलौना हाय टूट गया.
आज भी यह गीत लोगों को खां साहब की याद दिलाती है. 2016 में खां साहब के जन्मस्थली को परिजन नहीं संजोये और रख-रखाव करनेवाले डुमरांव निवासी के हाथों बिक्री कर दी, जिससे खां साहब की यादें केवल शहनाई रह गयी. 22 अप्रैल 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने उस्ताद के नाम पर शहीद स्मारक के पास टाउन हाल का शिलान्यास किया था, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते टाउन हाल तो नहीं, लेकिन आज बिहार सरकार शहीदों के नाम पर आदमकमद प्रतिमा व पटना लोहिया पार्क के तरह यहां निर्माण कार्य करा रही है. खां साहब के नाम अनुमंडल प्रशासन ने प्रखंड मुख्यालय परिसर में स्मृति पर ई-किसान भवन के समीप आर्ट गैलरी और आॅडिटोरियम निर्माण को लेकर बिहार सरकार को डीपीआर तैयार कर भेज दिया है. 21 अंक उस्ताद के लिए खास रहा. तभी तो जन्म 21 मार्च 1916 को ठठेरी बाजार स्थित किराये के मकान में हुआ और 21 अगस्त 2006 को बनारस हेरिटेज अस्पताल में अंतिम सांस ली. खां साहब के अब्बा डुमरांव राज के मुलाजिम थे, जिसके चलते हब्बीबुल्ला खां की गली में जमीन मुहैया करायी. शहनाई वादक पैगंबर बख्श उर्फ बचई मियां के घर दो बेटे शम्सुदीन तथा कमरूदीन हुए. कमरूदीन ही बिस्मिल्लाह के नाम से जाने गये. गरीब तंग उनके अब्बा ने उन्हें मामू अली बख्श के यहां बनारस भेज दिया,
जहां शहनाई वादन की विधिवत शिक्षा उन्हें मिली. 14 साल की उम्र में अखिल भारतीय संगीत सभा, इलाहाबाद में शहनाई वादन कर सभी को मंत्रमुग्ध कर डाला. 1937 में हुई कोलकता संगीत सभा के बाद उन्होंने पीछे मूड कर नहीं देखा. 15 अगस्त 1947 को दिल्ली के दीवान ए खास से शहनाई बजा कर उन्होंने जैसे भारतीय जनता की आजादी का विजय उद्घोष किया. 1962 में खां साहब अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर निकले. उन्होंने अफगानिस्तान और पाकिस्तान में कार्यक्रम प्रस्तुत किये.
उनके नाम पर ईरान में एक आॅडिटोरियम का नाम रखा गया. लेकिन, आज तक भारत में इनके नाम पर कुछ नहीं बना. 2001 में उस्ताद को देश के सबसे बड़े सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. देखना यह है कि आनेवाले समय में इनके यादों को संजोने में सरकार सफल हो पाती है या नहीं. डीएम रमण कुमार भी खां साहब के पैतृक भूमि पर पहुंच जमीन मिलने पर संग्रहालय बनाने की बात कही थी, लेकिन खां साहब के परिजनों ने जमीन को रखवाली करनेवाले सुल्तान मियां के हाथों बिक्री कर दी.

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